संजय मग्गू
चुनाव प्रचार खत्म होने में बस एक ही दिन बचा है। कल छह बजे से चुनावी शोर हरियाणा में बंद हो जाएगा। विभिन्न राजनीतिक दलों के चुनावी वायदों पर मतदाता गौर करेंगे और यह तय करेंगे कि किसकी नैया पार लगानी है, किसकी डुबो देनी है। लोकतांत्रिक व्यवस्था में हर पांच साल बाद मतदाता ही एक दिन के लिए नेताओं का भाग्य विधाता बनता है और इसके बाद पूरे पांच साल यही नेता जनता के भाग्य विधाता बन जाते हैं। इसलिए मतदाताओं को चाहिए कि वे जाति, धर्म, भाषा, संप्रदाय जैसे मुद्दों को दरकिनार करके सिर्फ उन्हें चुने जो उसका और उसके क्षेत्र का विकास करने में रुचि रखते हों। हरियाणा विधानसभा चुनाव के दौरान सबसे ज्यादा चर्चा किसानों, नौजवानों और पहलवानों के साथ-साथ जाट और दलित मतदाताओं को लेकर की गई। सबने इन वोट बैंक वाले मतदाताओं को रिझाने के लिए हर संभव प्रयास किया। अगर जातीय आधार मतदाताओं का आकलन छोड़कर व्यवसायगत मतदाताओं की बात करें, तो हरियाणा में सबसे ज्यादा किसान मतदाता हैं। इन किसानों में सवर्ण है,दलित हैं, जाट हैं, पंजाबी हैं, ओबीसी हैं। कहने का मतलब है कि किसान समुदाय सभी जातियों का एक समुच्चय है। हरियाणा का 65 प्रतिशत हिस्सा ग्रामीण है। प्रदेश के सबसे बड़े मतदाता किसान हैं। ऐसी स्थिति में भाजपा, कांग्रेस से लेकर अन्य क्षेत्रीय दल तक किसानों को रिझाने और मनाने में लगे हुए हैं। भाजपा अपने को किसान हितैषी सरकार बताते हुए नहीं थकती है। वह अपनी तमाम कृषि और किसान से जुड़ी योजनाओं को गिनाने के साथ-साथ केंद्र सरकार द्वारा हर चार महीने पर दो हजार रुपये खाते में डालने की बात करती है। प्रदेश में सभी 24 फसलों को एमएसपी पर की जाने वाली खरीद को भाजपा भुनाने का हर संभव प्रयास कर रही है। वहीं, कांग्रेस का दावा है कि केंद्र में जब उसकी सरकार आएगी, तो सबसे पहले पूरे देश के किसानों को एमएसपी पर खरीद की कानूनी गारंटी देगी। कांग्रेस ने चुनाव प्रचार के दौरान और अपने घोषणा पत्र में किसानों को कई प्रकार के लाभ दिलाने और कर्ज माफी की बात कही है। जब से चुनाव प्रचार शुरू हुआ है, राजनीतिक दलों के नेताओं ने अपनी चुनावी रैलियों में ट्रैक्टर पर चढ़कर प्रचार किया है। रोड शो भी ट्रैक्टर पर चढ़कर किए गए हैं। दरअसल, आज के युग में ट्रैक्टर खेती-किसानी का सबसे महत्वपूर्ण साधन बन गया है। अपने को किसान हितैषी साबित करने के लिए ट्रैक्टर रैली निकाली जा रही है। वैसे राजनीतिक हलके में चर्चा है कि इस बार तीन कृषि कानूनों और आंदोलन के दौरान प्रदेश सरकार के व्यवहार से नाराज किसान भाजपा को नुकसान पहुंचा सकते हैं। किसान ही इस बार के विधानसभा चुनाव के दौरान राजनीतिक दलों के भाग्य का फैसला करने वाले हैं।
संजय मग्गू