संजय मग्गू
ईरान ने एक अक्टूबर की देर रात दो सौ मिसाइलों से इजरायल पर हमला कर दिया है। इन हमलों में इजरायल को कितना नुकसान हुआ, इसकी पूरी खबर बाहर आने वाली नहीं है। इजरायल भारी नुकसान को भी कमतर बताएगा, यह सभी जानते हैं। जब लेबनान में मौजूद हिजबुल्लाह के चीफ हसन नसरल्लाह की इजरायली कार्रवाई में मौत हुई थी, तभी यह आशंका जाहिर की जाने लगी थी कि गाजा और लेबनान के खिलाफ इजरायली हमले से नाराज ईरान जरूर इस जंग में कूदेगा। ईरान के भी कुछ वरिष्ठ कमांडरों की हत्या में इजरायल का हाथ माना जा रहा है। भारत का रवैया एक निष्पक्ष और शांति प्रिय देश जैसा है। वह हर हाल में चाहता है कि ईरान और इजरायल के बीच युद्ध न हो, दुनिया में शांति कायम रहे, लेकिन सिर्फ भारत के चाहने से कुछ नहीं होता है। अगर ईरान और इजरायल दोनों खुलकर युद्ध के मैदान में आ खड़े होते हैं, मध्य पूर्व देशों के साथ-साथ भारत पर भी इसका प्रभाव पड़ना तय है। वैसे भारत पर इन दोनों देशों के बीच युद्ध शुरू होने पर सामरिक रूप से कोई फर्क नहीं पड़ेगा, लेकिन यदि युद्ध लंबा खिंचा, तो भारतीय नागरिकों को महंगाई का सामना करना पड़ेगा। युद्ध के दौरान सबसे ज्यादा पेट्रोलियम पदार्थों के दाम बढ़ेंगे और इसके बढ़ने का मतलब है कि उपयोग में आने वाली हर वस्तु के दाम में बढ़ोतरी। एक अक्टूबर को हमले से पहले जब ईरान के हमला करने की आशंका जताई जा रही थी, तभी अंतर्राष्ट्रीय बाजार में तेल की कीमतें तीन फीसदी बढ़ गई थीं। मंगलवार को हमले के बाद अंतर्राष्ट्रीय कारोबार में पांच फीसदी का उछाल दर्ज किया गया। युद्ध के दौरान स्वाभाविक है कि तेल उत्पादक देश अपने यहां तेल का उत्पादन घटा देंगे। ओआईसी यानी आर्गनाइजेशन आफ इस्लामिक कारपोरेशन की बैठक अभी कुछ ही दिनों पहले हुई है। भारत का ईरान और इजरायल दोनों देशों के साथ अच्छे संबंध है। भारत को सबसे ज्यादा तेल निर्यात करने वालों में ईरान सबसे ऊपर है। ऊपर से ईरान में स्थित चाबहार बंदरगाह भारत के लिए सामरिक दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण है। अगर युद्ध लंबा खिंचता है, तो स्वाभाविक है कि चाबहार प्रोजेक्ट पर ईरान उतना ध्यान नहीं दे पाएगा। प्रोजेक्ट लटक जाएगा। यदि भारत का थोड़ा बहुत झुकाव इजरायल के पक्ष में दिखाई देता है, तो ईरान नाराज हो सकता है। यही स्थिति ईरान की तरफ झुकाव होने पर इजरायल के साथ है। भारत को स्वाभाविक रूप से ऐसी हालात में काफी संतुलित रवैया अख्तियार करना होगा, जैसा कि अब तक रूस और यूक्रेन के बीच चल रहे युद्ध के दौरान अपनाता आया है। दोनों के बीच एक संतुलित दूरी और समांजस्य ही इन देशों में रह रहे भारतीय नागरिकों को निकालने में काम आ सकती है। मध्य पूर्व देशों में भारी संख्या में भारतीय नागरिक रह रहे हैं और वहां से काफी विदेशी मुद्रा भारत को प्राप्त होती है। ऐसे में इन देशों से प्राप्त होने वाली विदेशी मुद्रा पर भी प्रभाव पड़ेगा।
संजय मग्गू