हीरे-जवाहरात से महंगा पत्थर
अशोक मिश्र
किसी भी वस्तु का मूल्य उसकी उपयोगिता पर ही निर्भर होनी चाहिए, लेकिन हमारे सामान्य जीवन में ऐसा बिल्कुल नहीं होता है। हम तमाम फालतू वस्तुओं को जीवन भर बहुमूल्य समझकर सहेजते रहते हैं, लेकिन उसका उपयोग कभी नहीं कर पाते हैं। हम जिन वस्तुओं का रोज उपयोग करते हैं, जिनके बिना हमारा जीवन संभव नहीं है, हम उनकी उपेक्षा करते हैं, उनकी उपयोगिता को हम समझ नहीं पाते हैं। एक बार की बात है। एक राजा के यहां एक साधु पहुंचा। राजा ने उसकी खूब आवभगत की। उसे अपना पूरा महल घुमाया। महल के बारे में उसने जानकारी देते हुए कहा कि इसे बनवाने में काफी पैसा खर्च करना पड़ा। साधु राजा की बात सुनकर चुप रहा। रात में जब साधु सोने के लिए जाने लगा, तो उसने राजा से कहा कि वह उनका राजकोष देखना चाहता है। राजा ने कहा कि कल सुबह दिखवा दूंगा। अगले दिन साधु को लेकर राजा अपने कोषागार में लेकर गया। कोषागार में हीरे-जवाहरात, सोने-चांदी के आभूषण और ढेर सारा सोना रखा हुआ था। इन सबको देखकर साधु ने राजा से पूछा कि इन पत्थरों से आपको कितनी कमाई हो जाती है। राजा ने कहा कि यह पत्थर नहीं हैं। सोना, चांदी, हीरे-जवाहरात हैं। इनसे कमाई नहीं होती है, उलटा इन की रखवाली के लिए पैसे खर्च करने पड़ते हैं। साधु ने कहा कि मैं आपको इनसे कीमती पत्थर दिखा सकता हूं जिनकी सुरक्षा पर एक भी पैसा खर्च नहीं करना पड़ता है। वह राजा को लेकर एक कुटिया में गया, जहां एक बूढ़ी औरत चक्की से आटा पीस रही थी। साधु ने चक्की की ओर इशारा करते हुए कहा कि इस पत्थर की ओर देखिए, इससे इस महिला का गुजारा होता है। जितनी उपयोगिता इस पत्थर की है, उतनी उपयोगिता आपके सोने चांदी की नहीं है। राजा यह सुनकर शर्मिंदा हो गया।
अशोक मिश्र