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बेरोजगारी दूर करने का कोई ठोस उपाय चाहते हैं हरियाणवी छोरे

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संजय मग्गू
हरियाणा में भाजपा ने 48 सीटें जीतकर वाकई एक करिश्मा कर दिखाया है। तीन निर्दलीय विधायकों का समर्थन भी हासिल हो गया है। 17 अक्टूबर को मुख्यमंत्री पद का शपथ ग्रहण समारोह भी प्रस्तावित है। स्वाभाविक रूप से भाजपा इसे भव्य समारोह बनाएगी। इसमें पीएम नरेंद्र मोदी सहित कई केंद्रीय मंत्री और भाजपा के वरिष्ठ पदाधिकारी भी भाग ले सकते हैं। वैसे भी भाजपा ने लगातार तीसरी बार हरियाणा में सरकार बनाकर इतिहास तो रच ही दिया है। सन 2014 में मोदी लहर से भी ज्यादा सीटें जीतने के बाद भाजपा वैसे भी उत्साह और आत्मविश्वास से लबरेज है। ऐसा होना स्वाभाविक भी है। लेकिन कुछ बातें ऐसी भी हैं जिन पर भाजपा और प्रदेश सरकार को अभी से ध्यान देना होगा। वैसे सीएम नायब सिंह सैनी ने चुनाव प्रचार के दौरान यह दावा किया था कि शपथ ग्रहण करने के बाद सबसे पहला काम 24 हजार पदों पर भर्तियां कराने का होगा। अभी चूंकि शपथ ग्रहण समारोह होना बाकी है, तो ऐसी स्थिति में इस बारे में कुछ कहना निरर्थक है। लेकिन भाजपा को इस बात आगे भी ध्यान रखना होगा कि भाजपा के पिछले कार्यकाल से प्रदेश का युवा खुश नहीं था। मनोहर लाल सरकार और सैनी सरकार के दौरान युवाओं में कुछ ज्यादा ही रोष देखने को मिला था। सरकार भले ही दावा करती रही कि उसकी सरकार ने बिना पर्ची-बिना खर्ची के निष्पक्ष योग्यता के अनुसार भर्तियां की हैं, लेकिन बार-बार पेपर का लीक होना, बार-बार अदालतों में जाकर भर्तियों का बाधित हो जाना, युवाओं को पसंद नहीं आ रहा था। इस बार भी चुनाव के दौरान बेरोजगारी एक प्रमुख मुद्दा था। राजनीतिक बयानबाजी और दावों-प्रतिदावों के बीच प्रदेश के युवाओं की अपेक्षा इस बार कुछ ठोस कदम उठाए जाने की है। उसकी मंशा है कि कुछ ऐसा किया जाए जिससे युवाओं को लगे कि सरकार उनकी बेरोजगारी को लेकर कोई ठोस उपाय कर रही है और वह ठोस उपाय होता हुआ जमीनी स्तर पर दिखे। साल 2022 मेें हरियाणा बेरोजगारी के मामले में पूरे देश में अव्वल रहा है। हालांकि पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर लाल इस बात को बराबर नकारते रहे हैं। सरकार ने हरियाणा कौशल रोजगार निगम के माध्यम से कुछ नौकरियां युवाओं को दी जरूर लेकिन इनमें से ज्यादातर संविदा वाली थीं। इन नौकरियों से युवाओं को दीर्घकालिक सामाजिक सुरक्षा का बोध नहीं हुआ। वे कुछ ऐसा चाहते हैं कि जब एक उम्र हो जाए, तो उनके जीवन यापन के लिए उन्हें भटकना न पड़े। संविदा की नौकरी इस बात का आश्वासन नहीं दे सकती है। यही वजह है कि पहली बार वोट डालने वाले युवाओं ने भाजपा के मुकाबले कांग्रेस को 43 फीसदी समर्थन दिया और भाजपा के खाते में कुल 33 प्रतिशत वोट गया। बाकी बचे युवा असमंजस वाली स्थिति में रहे।

संजय मग्गू

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