लाचित बोरफुकन ने मुगल सेना को खदेड़ा
अशोक मिश्र
असम भारतीय गणराज्य का एक महत्वपूर्ण प्रदेश है। पूर्वोत्तर भारत में स्थित असम का अपना एक गौरवशाली इतिहास रहा है। मुगल काल में कई बार असम को अपने आधीन करने का प्रयास मुगल शासकों ने किया, लेकिन हर बार उन्हें मुंह की खानी पड़ी। असम में एक वीर सेनापति हुए थे लाचित बोरफुकन। इनका जन्म 24 नवंबर 1622 को मोमई तामुली बोरबरुआ के सबसे छोटे बेटे के रूप में हुआ था। लाचित बोरफुकन अपनी वीरता और साहस के लिए प्रसिद्ध थे। इसी वजह से एक समय वह असम के राजाओं के सेनापति और बोरफुकन यानी वायसराय के पद तक पहुंचे थे। वह ताई धर्म को मानते थे जो हिंदू धर्म से अलग था। सन 1228 में एक ताई राजकुमार सुकफा ने इस धर्म की शुरुआत की थी जो एक कबीलाई धर्म था। असमिया लोगों का यह अपना धर्म है। सन 1671 में मुगल सेना ने असम के सरायघाट पर हमला किया। मुगल सेना का कमांडर हिंदू सेनापति मिर्जा राजा राम सिंह प्रथम थे जो कश्मीर के वायसराय भी थे। मुगल सेना ने जब असम पर धावा बोला, उस समय लाचित बोरफुकन को तेज बुखार था। वह खड़े नहीं हो पा रहे थे। लेकिन जब उन्हें मुगल सेना के हमले की सूचना मिली, तो उन्होंने राज ज्योतिषी को बुलाकर युद्ध का मुहूर्त निकालने को कहा। ज्योतिषी ने कहा कि अब शुभ समय नहीं है। तब लाचित ने ज्योतिषी को डांटा। आखिरकार ज्योतिषी ने मुहूर्त निकाला और अपनी तलवार उठाकर लाचित अपनी सेना के साथ सरायघाट पर आ डटा। मुगल सेना बहुत ज्यादा थी। इसके बावजूद लाचित अपनी सेना के साथ लड़ता रहा। लेकिन लाचित की सेना लड़ नहीं पाई और भाग खड़ी हुई। तब लाचित अकेला ही मुगल सेना के सामने आ डटा। इसे देख उसकी सेना चार गुना जोश से वापस लौटी और मुगल सेना को खदेड़ दिया। लाचित असम में वीरता का प्रतीक बन गया। इसके एक साल बाद ही 25 अप्रैल 1672 में उसकी मौत हो गई।
अशोक मिश्र