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क्रोध मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु
अशोक मिश्र

क्रोध को सभी तरह के झगड़ों की जड़ माना जाता है। कई बार क्रोध के चलते बनते हुए काम भी बिगड़ जाते हैं। क्रोधी व्यक्ति को कभी सुकून नहीं मिलता है। समाज में लोग उसे पसंद भी नहीं करते हैं। वह जहां कहीं भी जाता है, लोग उसका अनादर करते हैं। यही वजह है कि हमारे प्राचीन ग्रंथों में क्रोध को मनुष्य का सबसे बड़ा दुश्मन माना गया है। लोगों को इससे दूर रहने की सलाह दी गई है। एक बार की बात है। किसी जगह पर एक संत रहते थे। वैसे तो संत के कई शिष्य थे, लेकिन संत का नियम था कि वह अपने लिए भिक्षा वह खुद मांगकर लाते थे। एक दिन संत भिक्षा मांगने निकले तो वह एक सेठ के दरवाजे पर जा खड़े हुए। संत को देखकर सेठ ने उनकी झोली में एक कटोरी चावल डाल दिया। सेठ काफी उदार और धर्मभीरू था। वह संतों और लोगों की हरसंभव सहायता भी किया करता था। लोग सेठ के व्यवहार और आचरण से काफी खुश भी रहते थे तो उसके यहां से ही लोग अपनी जरूरत की चीजों को खरीदते थे। सेठ ने संत को दान देने के बाद कहा कि मैं आपसे एक सवाल पूछूं? संत ने कहा कि पूछिए। सेठ ने कहा कि लोग आपस में लड़ते झगड़ते क्यों हैं? यह सुनते ही संत ने कहा कि मैं यहां भिक्षा मांगने आया हूं या तुम्हारी बकवास सुनने। तुम मुझसे फालतू बातें क्यों कर रहे हो। यह सुनकर सेठ को गुस्सा आ गया। उसने कहा कि मैंने तुम्हें दान दिया और तुम मेरे सवाल को फालतू कह रहे हो। इसके बाद सेठ ने गुस्से में संत को खूब भला बुरा कहा, यहां तक गालियां भी दीं। थोड़ी देर बाद जब उसका क्रोध शांत हुआ, तो उसने संत की ओर देखा। वह मुस्कुरा रहे थे। उन्होंने कहा कि लोग क्रोध की वजह से लड़ते हैं। क्रोध के चलते ही मनुष्य अपने को बरबाद कर लेता है।

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