संजय मग्गू
हमारे पूर्वजों ने नदियों में, हमने नलों और बोतल में पानी को देखा, हालात नहीं सुधरे, तो भावी पीढ़ी पानी को कैप्सूल में देखेगी। यह कहना है राजस्थान हाईकोर्ट के जस्टिस अनूप कुमार ढंड का। जस्टिस ढंज ने जो कहा है, वह सचमुच चिंताजनक है। अगर यह कहा जाए कि पूरा समाज पानी को लेकर लापरवाह हो चला है, तो कोई गलत बात नहीं होगी। हमारे सनातन धर्म में नदियों, नालों, कुओं तालाबों की पूजा का प्रावधान किया गया है। आज भी उत्तर भारत के कई प्रदेशों में जब किसी का विवाह होता है तो उसे कुएं इर्द-गिर्द घुमाया जाता है। आज भले ही यह एक रस्म बनकर रह गई हो, लेकिन इसके पीछे पानी का समुचित उपयोग करने का जो संदेश था, वह विलुप्त हो गया। हमारे पूर्वजों ने हमेशा नदियों, तालाबों, कुओं और अन्य जलस्रोतों की रक्षा की, उनका ख्याल रखा। पूजा के बहाने वे भावी पीढ़ी को जल संरक्षण का संदेश दे गए। लेकिन भारत में सन 1980 के बाद जिस तरह जल दोहन किया गया, उसका नतीजा यह हुआ कि बहुत सारी छोटी नदियां, तालाब और कुएं सूख गए। ऊपर से घर या कालोनी बसाने की नीयत से लोगों ने इन जगह पर कब्जा करके आवासीय कालोनी, दुकान, मॉल खड़े कर लिए। जल दोहन इतना ज्यादा हुआ कि भारत के कई राज्यों में जमीन ही धंसने लगी। जब भूगर्भ जल का अंधाधुंध दोहन हो रहा हो और बदले में ही उतनी मात्रा में जल वापस धरती को नहीं मिल पा रहा हो, तो जमीन के अंदर एक वैक्यूम पैदा होता है। उस पर घर, सड़क या कालोनी बसाने पर बने बोझ से वह हिस्सा धंसने लगता है। दिल्ली एनसीआर में कई शहरों में जगह-जगह जमीन के धंसने की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है। दिल्ली में कापसहेड़ा, फरीदाबाद में नाहर सिंह क्रिकेट स्टेडियम और अन्य जगहों पर जमीन धंस रही है। दिल्ली, चंडीगढ़, अंबाला, गांधीनगर, कोलकाता सहित देश के तमाम शहरों और राज्यों में भूगर्भ जल का इतना ज्यादा दोहन कर लिया गया है कि इन शहरों के धंसने का खतरा पैदा हो गया है। यह समस्या कोई भारत में ही नहीं दिख रही है। चीन के आधे शहर धंस रहे हैं। आस्ट्रेलिया, अमेरिका जैसे विकसित देश भी इनसे बच नहीं पाए हैं। ऐसी स्थिति में सबसे जरूरी यह है कि जितना पानी जमीन के नीचे से निकाला जाए, उतना पानी वापस जमीन के अंदर जाना चाहिए। लेकिन हो ऐसा कतई नहीं रहा है। जल का दोहन तो दिनोंदिन बढ़ता जा रहा है, लेकिन वर्षा जल हो या पर्वतीय इलाकों से बाढ़ के रूप में आया पानी, नदियों और नालों के माध्यम से समुद्र तक पहुंच रहा है। जमीन इस पानी का केवल दस-बीस प्रतिशत हिस्सा ही सोख पा रही है। यदि यही स्थिति रही, तो आगामी दो-चार दशकों में क्या स्थिति होगी, इसका अंदाजा लगाया जा सकता है। सचमुच, हमारी भावी पीढ़ी को पानी का कैप्सूल खरीदकर अपनी प्यास बुझानी पड़ सकती है। राजस्थान हाईकोर्ट के जस्टिस अनूप कुमार ढंड की चिंता बिल्कुल जायज है।
संजय मग्गू