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पार्टी की छवि को बिगाड़ रहे नेता प्रतिपक्ष पद के लिए लड़ते कांग्रेसी

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संजय मग्गू
हरियाणा में चुनाव हारने के बाद भी कांग्रेस की अंदरूनी कलह खत्म होती नजर नहीं आ रही है। आगामी तेरह नवंबर को विधानसभा का सत्र शुरू होने जा रहा है। अभी तक नेता प्रतिपक्ष किसे बनाया जाए, यह तक तय नहीं कर पाई है। चुनाव परिणाम आने के बाद कांग्रेस हाईकमान ने जो बातें कही थीं, उससे लगा था कि प्रदेश कांग्रेस में आमूलचूल परिवर्तन होने वाला है। लेकिन चुनाव परिणाम आए लगभग डेढ़ महीने होने वाले हैं, लेकिन अभी तक कुछ हुआ नहीं। कांग्रेस नेता आज भी हार का ठीकरा एक दूसरे के सिर पर फोड़ने में लगे हुए हैं। हुड्डा गुट और सैलजा गुट आए दिन एक दूसरे की आलोचना-प्रत्यालोचना करते हुए देखे जा सकते हैं। कांग्रेस हाईकमान इन दिनों झारखंड और महाराष्ट्र चुनावों में व्यस्त है। ऐसी स्थिति में नेता प्रतिपक्ष कौन होगा, इसके लेकर कांग्रेस नेताओं के बयान अलग-अलग आ रहे हैं। कांग्रेस प्रवक्ता बाल मुकुंद शर्मा ने आज ही दावा किया है कि नेता प्रतिपक्ष भूपेंद्र सिंह हुड्डा को नहीं बनाया जाएगा। पार्टी संगठन में नेता प्रतिपक्ष के लिए हुड्डा के नाम पर विचार नहीं किया जा रहा है। थानेसर से चार बार विधायक रहे अशोक अरोड़ा और पूर्व सीएम चौधरी भजन लाल के बेटे चंद्र मोहन बिश्नोई नेता प्रतिपक्ष की दौड़ में आगे हैं। इन्हीं दोनों में से किसी एक नाम पर विचार किया जा सकता है। हालांकि यह भी सही है कि अशोक अरोड़ा पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा के काफी करीबी माने जाते हैं। दो हफ्ते पहले भी चंद्र मोहन बिश्नोई को नेता प्रतिपक्ष बनाने की चर्चा चली थी। उस समय राजनीतिक गलियारों में चर्चा थी कि कांग्रेस हाई कमान कुमारी सैलजा को प्रदेश कांग्रेस की कमान सौंपना चाहता है। इसकी तैयारी भी कर ली गई है। इसके साथ-साथ चंद्र मोहन बिश्नोई को नेता प्रतिपक्ष का पद सौंपने की चर्चा चली थी। यह भी कहा जा रहा था कि हुड्डा गुट अपने प्रभाव का इस्तेमाल करके सैलजा और चंद्र मोहन को रेस से हटाना चाहता था। हुड्डा गुट के माने जाने वाले कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष उदयभान ने अब हार का ठीकरा ईवीएम और प्रदेश प्रभारी दीपक बावरिया ही फोड़ दिया है। उनका कहना है कि बावरिया के चलते ही प्रदेश में कांग्रेस का संगठन खड़ा नहीं हो पाया। वह जब भी प्रदेश के पदाधिकारियों की सूची उनको सौंपते थे, वह उसे दबाकर बैठ जाते थे जिसकी वजह से प्रदेश में संगठन खड़ा नहीं हो पाया। वह सूची को हाई कमान के सामने पेश ही नहीं करते थे। कांग्रेस के अंदरूनी हालात जो भी हो, लेकिन राजनीति में इन बातों को बाहर नहीं आने देना चाहिए। सार्वजनिक मंच पर एक दूसरे के खिलाफ बोलने से माहौल खराब होता है। इस मामले में कांग्रेस को भाजपाइयों से सीखना चाहिए। भीतर ही भले ही कितना मतभेद हो, वह सार्वजनिक मंच पर अपनी बात नहीं रखते हैं।

संजय मग्गू

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