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‘एंटीहीमोफीलिक फैक्टर’ इंजेक्शन के बारे में रिपोर्ट दाखिल करे केंद्र और दिल्ली सरकार: हाई कोर्ट

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Delhi High Court Orders Report on Anti-Hemophilic Factor: दिल्ली उच्च न्यायालय ने केंद्र और दिल्ली सरकार को निर्देश दिया है कि वे दुर्लभ आनुवांशिक रक्त विकार, हीमोफीलिया से पीड़ित व्यक्तियों को दिए जाने वाले ‘एंटीहीमोफीलिक फैक्टर’ (एएचएफ) इंजेक्शन के स्टॉक की स्थिति के बारे में रिपोर्ट दाखिल करें। यह आदेश 28 नवंबर को पारित किया गया था, जब अदालत ने इस मामले की सुनवाई के दौरान सरकारों को यह रिपोर्ट देने का निर्देश दिया। न्यायमूर्ति संजीव नरूला ने यह आदेश देते हुए कहा कि सरकारों को इंजेक्शन के स्टॉक और अस्पतालों में इसकी आपूर्ति शृंखला की स्थिति के बारे में एक विस्तृत रिपोर्ट दाखिल करनी चाहिए, और यह रिपोर्ट 10 दिनों के भीतर दाखिल की जानी चाहिए।

यह मामला हीमोफीलिया रोग से पीड़ित व्यक्तियों द्वारा दायर की गई याचिका से जुड़ा हुआ है। याचिकाकर्ताओं ने अदालत में यह दावा किया कि हीमोफीलिया का इलाज महंगा है और इसके उपचार के लिए एंटीहीमोफीलिक फैक्टर (एएचएफ) के इंजेक्शन की आवश्यकता होती है। हालांकि, उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि सरकारी अस्पतालों में इन इंजेक्शनों की आपूर्ति अक्सर अपर्याप्त रहती है, जिससे मरीजों की जान को खतरा हो सकता है। याचिकाकर्ताओं का कहना है कि एएचएफ के इंजेक्शनों की आपूर्ति में अक्सर रुकावटें आती हैं, जिसके कारण हीमोफीलिया के रोगियों को समय पर उपचार नहीं मिल पाता।

हीमोफीलिया एक गंभीर आनुवांशिक रक्त विकार है, जिससे रक्त का थक्का बनने की प्रक्रिया प्रभावित होती है। इस कारण प्रभावित व्यक्तियों को अत्यधिक रक्तस्राव का सामना करना पड़ता है, और इस स्थिति का इलाज केवल एंटीहीमोफीलिक फैक्टर इंजेक्शन से किया जा सकता है, जो खून के थक्के बनने में मदद करता है।

याचिका में केंद्र और दिल्ली सरकार से यह मांग की गई थी कि वे एएचएफ इंजेक्शन की आपूर्ति शृंखला की निगरानी करें और किसी भी प्रकार की रुकावट को रोकने के लिए उचित कदम उठाएं। याचिकाकर्ताओं ने यह भी कहा कि सरकारी अस्पतालों में इस उपचार की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए एक स्थिर और सशक्त आपूर्ति शृंखला की आवश्यकता है। अदालत ने इस मामले की अगली सुनवाई के लिए 12 दिसंबर की तारीख तय की है, जब सरकारों से रिपोर्ट की प्राप्ति की जांच की जाएगी।

इस निर्णय से यह स्पष्ट हो गया है कि अदालत सरकारों को इस गंभीर मुद्दे पर जवाबदेह ठहराने की प्रक्रिया में है, ताकि मरीजों को समय पर और सही उपचार मिल सके।

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