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कृषि वैज्ञानिकों का जलवायु परिवर्तन से फसलों को बचाने का प्रयास सराहनीय

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संजय मग्गू
एक पखवाड़ा पहले खबर आई थी कि हरियाणा का तापमान सामान्य से सात-आठ डिग्री अधिक होने की वजह से इस बार रबी की फसलों का उत्पादन प्रभावित होने की आशंका है। गेहूं आदि फसलों का उत्पादन कम हो सकता है। रबी की फसलों को इन दिनों जितनी ठंडक चाहिए, उससे कहीं अधिक गर्मी पड़ने से निकट भविष्य में गेहंू की बालियों में दाने कम होने की आशंका है।  कृषि वैज्ञानिक तो यह भी कहने लगे थे कि यदि तापमान जल्दी नहीं गिरा तो गेहूं उत्पादन इस साल 15 प्रतिशत तक घट सकता है। और इसका कारण जलवायु परिवर्तन को बताया गया था। जलवायु परिवर्तन के कारण मौसम में काफी बदलाव आ रहा है। गर्मी के दिनों में लगातार बढ़ोतरी हो रही है। बरसात और सर्दी के दिनों में कमी आती जा रही है जिसके कारण खेती में भी काफी बदलाव आ रहा है। जलवायु परिवर्तन के कारण फसलों का उत्पादन प्रभावित हो रहा है। फसल उत्पादन में आ रही कमी की वजह से भारत और दुनिया भर के कृषि वैज्ञानिक चितिंत हैं। वे ऐसी फसलों को इजाद करने में लगे हुए हैं जिन पर जलवायु परिवर्तन का प्रभाव कम से कम हो। भारत में भी यह प्रयास काफी दिनों से हो रहा था। भविष्य में भी प्रयास जारी रहेगा। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद ने जलवायु परिवर्तन और रासायनिक खादों के दुष्प्रभाव के चलते खराब होने वाली फसलों को बचाने के लिए कई तरह के अनुसंधान किए हैं। इसके नतीजे भी सकारात्मक आए हैं। अनुसंधान परिषद ने केंद्रीय और राज्य कृषि विश्वविद्यालयों और विभिन्न कृषि संस्थानों की मदद से खेत में उगाई जाने वाली 524 फसलें और बागवानी वाली फसलों की 167 नई और संकर किस्में विकसित की हैं। इन नई और संकर किस्मों पर जलवायु परिवर्तन का कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। इन नई और संकर किस्मों की खूबी यह है कि यह जलभराव, सूखा, बाढ़, अत्यधिक गर्मी और भयंकर ठंड  में भी उगाई जा सकती हैं। जो जमीनें लवणीय हैं या जिनमें फास्फोरस की कमी है, उन जमीनों पर यह फसलें उगाई जा सकती हैं। बंजर जमीन पर भी इन फसलों की खेती की जा सकती है। अनुसंधान परिषद द्वारा तैयार कई गई संकर किस्मों में गेहूं, धान, मक्का, सरसों, ज्वार, जौ सहित कई तरह की फसलें हैं। इनमें कुछ सब्जियां और तिलहन भी हैं। कृषि वैज्ञानिकों की यह कोशिश निस्संदेह प्रशंसनीय और स्वागतयोग्य है। लेकिन हमें इस बात पर भी जोर देना चाहिए कि जलवायु परिवर्तन के कारणों को दूर करने का भी जोर-शोर से प्रयास होना चाहिए। फसलों की नई किस्में तैयार करने से अनाज की समस्या भले ही हल हो जाए, लेकिन स्वास्थ्य और अन्य समस्याएं तो मौजूद ही रहेंगी। सबसे बड़ी समस्या तो खुद जलवायु परिवर्तन है और इससे हर हाल में निपटना होगा।

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