कहते हैं कि यह कलाकार जन्म से ही कलाकार होता है और कल के लिए उसकी सतत और संघर्ष कभी खत्म नहीं होते ऐसे ही भारतीय राष्ट्रीय संगीत के उज्ज्वलित सितारे प्रतिष्ठित तबला वादक जाकिर हुसैन जो अब हमारे बीच नहीं रहे आज हम उनके जीवन के कुछ अनोखे किस्सों को जानेंगे।
73 साल की उम्र में उनका निधन सेन फ्रांसिस्को के एक अस्पताल में हुआ। वह लंबे समय से ऑडियोपेथिक पलमोनरी फाइब्रोसिस से जूझ रहे थे।
उनके परिवार ने इस दुखद खबर की पुष्टि करते हुए कहा,”ज़ाकिर हुसैन का योगदान भारतीय संगीत में अमूल्य रहेगा। वह न केवल एक महान कलाकार थे, बल्कि एक प्रेरणास्रोत भी थे।
और वाकई में यह कहने में कोई हर्ज़ नहीं है कि उनके निधन से भारतीय शास्त्रीय संगीत जगत को कपूर ने नुकसान हुआ है जिसको उन्होंने अंतरराष्ट्रीय मंच पर भी पहचान दिलाई।
उनके कलम विशेष रूप से तबला वादन दुनिया भर में सराही गई।
भारतीय संगीत के शिखर पुरुष उनका जाना सिर्फ एक व्यक्ति का जाना नहीं है बल्कि एक युग का समापन है। उनका बचपन मुंबई में ही बीता। बचपन से ही उनका रुख कला जगत की ओर हुआ और 12 साल की उम्र से ही उन्होंने तबले पर अपनी झंकार की धुन बिखर ने शुरू कर दी वह महान तबला वादक उस्ताद अल्लरख के के पुत्र थे। 6 साल की उम्र से ही अपनी कला में पारखी हासिल करने शुरू कर दी, और 12 साल की उम्र में अपना पहला प्रदर्शन दिया।
1970 के दशक में अमेरिका की यात्रा की और हर साल 150 से भी ज्यादा संगीत के कार्यक्रम किया अपनी कला का देश और दुनिया में परचम लहराने के बाद भी वह हमेशा जमीन से ही जुड़े रहे तीन ग्रैमी अवॉर्ड्स पद्म भूषण पद्म विभूषण और पद्मश्री से सम्मानित होने के बाद बावजूद भी वह हमेशा जमीन से ही जुड़े रहे 1973 में उनका पहला एल्बम आया जिसका नाम था, लिविंग इन द मैटेरियल वर्ल्ड। उन्होंने कहा कि भारतीय संगीत स्टेडियम के लिए नहीं है यह कमरे का संगीत है। शायद ही ऐसा कोई देश बचा है जहां पर जाकिर साहब ने अपने कल| की झंकार का फन न बिखर हो मात्र 37 वर्ष की उम्र में उन्हें पद्मश्री से नवाज़ित किया गया 2023 में पद्म विभूषण से नवाज़ा गया निधन 73 वर्ष की आयु में हुआ जाकिर हुसैन की अद्वितीय संगीत कौशल ने उन्हें ग्रामिया अवार्ड सहित कई अंतरराष्ट्रीय सम्मान दिलाए वह पहले भारतीय हैं जिन्हें ऑल स्टार ग्लोबल कंसर्ट में भाग लेने के लिए पूर्व हमारे के राष्ट्रपति बराक ओबामा की ओर से व्हाइट हाउस में भी आमंत्रित किया गया था उन्हें कई पुरस्कारों से भी सम्मानित किया जा चुका है। वहीं, संगीत की दुनिया का सबसे बड़ा ग्रैमी अवॉर्ड उन्हें दो बार, साल 1992 में ‘द प्लेनेट ड्रम’ और 2009 में ‘ग्लोबल ड्रम प्रोजेक्ट’ के लिए मिल चुका है।
तबला बजाने में तो unki दिलचस्पी थी ही, sath hi उन्हें एक्टिंग का भी शौक था। 1983 में ज़ाकिर हुसैन ने फिल्म ‘हीट एंड डस्ट’ से एक्टिंग में डेब्यू किया। इसके बाद 1988 में ‘द परफेक्ट मर्डर’, 1992 में ‘मिस बैटीज चिल्डर्स’ और 1998 में ‘साज’ फिल्म में भी उन्होंने एक्टिंग में अपना हाथ आजमाया।जाकिर हुसैन का निधन संगीत प्रेमियों के लिए एक दुखद पल है। उन्होंने भारतीय शास्त्रीय संगीत को न केवल समृद्ध किया, बल्कि उसे दुनिया भर में एक नई पहचान दी। उनका निधन भारतीय संगीत के इतिहास में एक महत्वपूर्ण अध्याय का समापन है। हुसैन के योगदान से भारतीय संगीत को वैश्विक मंच पर जो सम्मान मिला, वह हमेशा याद किया जाएगा।उनकी विरासत हमेशा भारतीय संगीत के इतिहास में जीवित रहेगी।
तबला सम्राट ज़ाकिर हुसैन
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