Monday, February 24, 2025
14.1 C
Faridabad
इपेपर

रेडियो

No menu items!
HomeEDITORIAL News in Hindiवर्ष 2025 में आख़िर कैसा रहेगा राजनीतिक मतभेदों का पारा ?

वर्ष 2025 में आख़िर कैसा रहेगा राजनीतिक मतभेदों का पारा ?

Google News
Google News

- Advertisement -


-डॉ. सत्यवान सौरभ

वर्ष 2025 चुनावों से परे देखने का एक अवसर प्रदान करता है। 2024 में, भारत, में राजनीति ने आश्चर्यजनक मोड़ लिया। ये घटनाक्रम कुछ जगहों पर अभूतपूर्व थे, दूसरों में तेज़ या अप्रत्याशित थे। इसने दिखा दिया कि भारतीय राजनीति में अब क्षेत्रीय दलों की ताकत लगातार बढ़ रही है और भविष्य में ये दल राष्ट्रीय राजनीति में अहम भूमिका निभा सकते हैं। 2025 में चुनावों से परे देखने का मौका मिलेगा। यह शायद ऐसा साल होगा जिसमें शासन केंद्र में होगा। 2024 के लोकसभा चुनाव का एक संदेश यह था कि लोग संयम के साथ निरंतरता को प्राथमिकता देते हैं। लेकिन ऐसा लगता है कि भाजपा और कांग्रेस दोनों ने जानबूझकर जनादेश को ग़लत तरीके से पढ़ने का विकल्प चुना है। उनकी राजनीतिक स्थिति सख्त हो गई है और उन्होंने अपनी कटु प्रतिद्वंद्विता को रोज़मर्रा की राजनीति, संसद और उससे परे तक ले गए हैं।
संसद में घिनौना हंगामा और विपक्ष के नेता राहुल गांधी के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने से दुश्मनी और बढ़ेगी। हालात सामान्य होने के लिए दोनों पक्षों को अपने-अपने राजनीतिक और वैचारिक लक्ष्यों को आगे बढ़ाने के साथ ही संवाद और बातचीत के लिए कोई बीच का रास्ता निकालना होगा। ऐसा लगता नहीं है कि मंदिर और मस्जिद पर राजनीति 2025 में ख़त्म हो जाएगी। 10 मस्जिदों / मजारों से जुड़ी कम से कम 18 याचिकाएँ इस समय अदालतों में लंबित हैं। मुस्लिम स्थलों पर हिंदू अधिकारों का दावा करने वाले नए मुकदमों में से अधिकांश उत्तर प्रदेश में दायर किए गए हैं। विधानसभा चुनाव अभी दो साल से ज़्यादा दूर हैं, लेकिन उत्तर प्रदेश में राजनीतिक परिदृश्य अभी से गरमाने लगा है।
2025 में होने वाले प्रमुख विधानसभा चुनाव तीन प्रमुख राजनीतिक ब्रांडों-नीतीश कुमार, अरविंद केजरीवाल और नरेंद्र मोदी के लिए एक परीक्षा होंगे। अक्टूबर-नवंबर 2025 में होने वाला बिहार विधानसभा चुनाव ब्रांड नीतीश के लिए एक बड़ी परीक्षा होगी, जिनका राजनीतिक निधन एक से ज़्यादा बार लिखा जा चुका है। चुनाव में तेजस्वी यादव की राजनीतिक क्षमता का भी परीक्षण होगा, जो लंबे समय से बिहार के मुख्यमंत्री बनने की प्रतीक्षा कर रहे हैं। 2013 से दिल्ली में सत्ता में काबिज अरविंद केजरीवाल आप को लगातार तीसरी बार सत्ता में ला पाएंगे? आज, केजरीवाल की छवि और उनकी राजनीति का ब्रांड दोनों ही दांव पर हैं। प्रधानमंत्री की ब्रांड वैल्यू भी बिहार और दिल्ली दोनों में परखी जाएगी। 2014 से तीन बार सभी सात लोकसभा सीटें जीतने के बावजूद भाजपा ढाई दशक से अधिक समय से दिल्ली में राजनीतिक रूप से निर्जन है।
लोकसभा और विधानसभा चुनावों को एक साथ कराने के लिए एक राष्ट्र, एक चुनाव विधेयक-जिसे अब संसद की संयुक्त समिति को भेजा गया है-भाजपा की इस बात की परीक्षा लेगा कि वह इस मामले में अपनी बात मनवा पाती या नहीं। पिछले 10 वर्षों में, भाजपा विवादास्पद कानून पारित करवाने में सफल रही है, जिसमें जम्मू-कश्मीर को विभाजित करने और (पूर्ववर्ती) राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों में बदलने का विधेयक भी शामिल है। अब स्थिति अलग है। लगभग पूरा विपक्ष एक राष्ट्र, एक चुनाव प्रस्ताव के खिलाफ एकजुट है। जाति, जनगणना, यूसीसी ऐसे वर्ष में जब केंद्र सरकार विलंबित दशकीय जनगणना अभ्यास शुरू करने का इरादा रखती है, जाति पर बयानबाजी और भी तीखी हो जाएगी। बड़ा सवाल यह है कि क्या सरकार जनगणना में जाति को शामिल करेगी।
जाति और सामाजिक न्याय का मुद्दा भाजपा के हिंदुत्व के अभियान का मुकाबला कर सकता है और इसी कारण से भाजपा “बटेंगे तो कटेंगे” और “एक हैं तो सुरक्षित हैं” जैसे राजनीतिक नारे दे रही है। यूसीसी को आगे बढ़ाने के प्रयास राजनीति में नई दरार पैदा कर सकते हैं। बी आर अंबेडकर की विरासत को लेकर संसद में बयानबाजी से संकेत मिलता है कि दस्ताने पूरी तरह से बंद हो चुके हैं। प्रधानमंत्री ने मौजूदा “सांप्रदायिक नागरिक संहिता” के बजाय “धर्मनिरपेक्ष नागरिक संहिता” की ओर बढ़ने की आवश्यकता पर ज़ोर दिया। 2024 का साल भारतीय राजनीति में महत्त्वपूर्ण बदलावों और घटनाओं से भरा रहा। यह साल ख़ास तौर पर लोकसभा चुनाव, विपक्षी एकजुटता, राज्यों में राजनीतिक बदलाव और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार के लिए चुनौतियों का साल रहा। साथ ही, यह दिखाता है कि बीजेपी को राज्यों में अपनी पकड़ बनाए रखने के लिए लगातार कड़ी मेहनत करनी होगी।
2024 भारतीय राजनीति के लिए एक महत्त्वपूर्ण साल था, जिसमें भारतीय जनता पार्टी ने अपनी सत्ता बरकरार रखी, लेकिन विपक्षी दलों ने भी अपनी चुनौती पेश की। राज्य चुनावों, किसान आंदोलनों, राष्ट्रीय सुरक्षा और सामाजिक मुद्दों ने राजनीति को नया मोड़ दिया। यह साल यह दिखाता है कि भारतीय राजनीति अब केवल दो प्रमुख दलों तक सीमित नहीं रही, बल्कि क्षेत्रीय और समाजवादी दल भी राष्ट्रीय राजनीति में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। 2024 ने यह साबित किया कि भारतीय राजनीति में 2025 में और अधिक बदलाव और संघर्ष देखने को मिल सकता है।

- Advertisement -
RELATED ARTICLES
Desh Rojana News

Most Popular

Must Read

वासुदेव अरोड़ा वार्ड नम्बर 37 के मतदाताओं की एक मात्र पंसद

समस्याओं का एक ही समाधान, तीर कमान तीर कामन फरीदाबाद। नगर निगम के वार्ड नम्बर 37 के र्निदलीय उम्मीदवार वासुदेव अरोड़ा को मतदाताओं का भरपूर समर्थन मिल रहा है उनके समर्थकों के तूफान की तेज हवाओं में बाकि सभी उम्मीदवारों की हवा निकल रही है। वार्ड नम्बर 37 में मतदाताओं की एकमात्र पंसद वासुदेव अरोड़ा हैं और वार्ड की जनता जान चुकि है कि समस्याओं का एक ही समाधान तीर कमान। वासुदेव अरोड़ा ने सैक्टर 9 के डोर टू डोर अभियान में मतदाताओं को कहा कि वह अपने वार्ड की सभी समस्याओं से अच्छी तरह वाकिफ हैं और इन समस्याओं के समाधान के लिये 2 मार्च को आप मेरे चुनाव चिन्ह तीर कमान के सामने वाला बटन दबाकर मुझे नगर निगम में पार्षद के रूप में भेजें। समाजसेवी हरीश चन्द्र आज़ाद ने कहा कि वासुदेव अरोड़ा पिछले 25 वर्षों से बिना किसी पावर के अपने वार्ड की समस्याओं का समाधान करते रहते है इसलिये आज हम सभी का कर्तव्य बनता है कि वासुदेव अरोड़ा की सेवाओं को सरकारी ताकत देकर अपने वार्ड के विकास को गति प्रधान करें। सैक्टर 9 में डोर टू डोर अभियान में हर घर से लोग उनको वोट देने का वादा करके उनके साथ समर्थन में उनके हक में वोट की अपील करने उनके साथ निकलते जा रहे थे और वहाँ के लोगों का कहना है कि बाकि नेता केवल वोट के समय नजऱ आते है लेकिन वासुदेव अरोड़ा हर समय उनके सुख-दुख में साथ खड़े रहते हैं इसलिये इस बार उनके बहुत ही भारी मतों से एकतरफा जीत के साथ नगर निगम पंहुचायेंगें। वासुदेव अरोड़ा

महिला की पहचान नाम से होगी या ‘तलाकशुदा’ से?

- सोनम लववंशी समाज में भाषा केवल अभिव्यक्ति का माध्यम नहीं है। यह सोच, संस्कार और व्यवस्था का दर्पण होती है। जब भाषा में...

Recent Comments