कैलाश शर्मा
आजकल अमीर-गरीब सभी चाहते हैं कि उनका बच्चा प्राइवेट स्कूल, वह भी नामी गिरामी स्कूल में पढ़ाई करे। इसके लिए वह हर संभव प्रयास करते हैं। यहां तक कि वे कर्ज लेकर भी अपने बच्चों का दाखिला प्राइवेट स्कूल में कराते हैं। हालांकि अब सरकारी स्कूलों में भी ठीक पढ़ाई होती है। उनका स्तर भी काफी आधुनिक हो गया है, लेकिन एक तो भेड़चाल, दूसरा स्टेटस संबल के चलते पेरेंट्स आज भी प्राथमिकता प्राइवेट स्कूलों को देते हैं। पेरेंट्स की इसी मजबूरी का फायदा स्कूल संचालक उठाते हैं। अब प्रश्न यह है कि स्कूल संचालक अपनी जिस क्वालिटी शिक्षा का बखान करके पेरेंट्स को अपने बच्चे का दाखिला प्राइवेट स्कूल में कराने के लिए आकर्षित करते हैं, क्या वह क्वालिटी शिक्षा उनके स्कूल में मिलती है?
अगर उनकी क्वालिटी शिक्षा इतनी अच्छी है तो फिर क्यों उनके स्कूल की पढ़ाई के बाद पेरेंट्स अपने बच्चों को ट्यूशन कराने पर मजबूर हैं। सच्चाई यह है कि अगर पेरेंट्स अपने बच्चों को ट्यूशन ना करायें तो वे पास ही नहीं हो सकते हैं। प्राइवेट स्कूल हर महीने अभिभावकों से मोटी ट्यूशन फीस वसूलते हैं, उसके बाद पेरेंट्स से कहते हैं कि अपने बच्चे का ट्यूशन कराओ। फिर उनकी क्वालिटी शिक्षा के क्या मायने? दरअसल स्कूल वाले सिर्फ गॉड गिफटेड और प्रतिभाशाली क्रीम को ही दाखिला देते हैं, उन्हीं छात्रों पर ही ध्यान केंद्रित करते हैं। अपनी क्वालिटी शिक्षा का प्रयोग उन्हीं पर करते हैं। जैसे ही उन्हें लगा कि किसी बच्चे की टेस्ट या मंथली एग्जाम में परफार्मेंस बिगड़ रही है तो वे बच्चे के साथ ही अभिभावकों पर कई तरह से दबाव बनाना शुरू कर देते हैं। उनका ट्यूशन लगाने को कहते हैं। ऐसा ना होने पर बच्चों को स्कूल से निकालने तक की धमकी दी जाती है।
अपने स्कूल का दसवीं-बारहवीं का रिजल्ट सौ फीसदी रहे, इसलिए कमजोर बच्चों को नौवीं-ग्यारहवीं में ही चिन्हित कर लिया जाता है। ऐसे बच्चों के माता-पिता को पीटीएम में बुलाकर साफ साफ कह दिया जाता है कि वे बच्चे का एडमिशन दूसरे स्कूल में करा लें, उन्हें पास की मार्कशीट और टीसी दे दी जाएगी, नहीं तो बच्चे को फेल कर दिया जाएगा। अधिकतर नामी प्राइवेट स्कूलों का यही रवैया रहता है। इस तथाकथित दबाव के चलते मजबूरी में माता-पिता ट्यूशन फीस देने के बावजूद बाहर ट्यूशन कराते हैं या बच्चे को दूसरे स्कूल में एडमिशन दिलाते हैं। पेरेंट्स य़ह बात समझें और जानें कि अगर स्कूल वाले टीसी देने की धमकी दें तो इसकी शिकायत अपने जिले के डीसी व जिला शिक्षा अधिकारी से करें। सीबीएसई व हरियाणा बोर्ड के नियम कानूनों में पढ़ाई में कमजोर बच्चे को स्कूल से निकाले जाने का कोई प्रावधान नहीं है। यदि छात्र फेल भी हो जाए, तो उसे दोबारा उसी क्लास में पढ़ना अनिवार्य होता है। अगर कोई स्कूल प्रबंधन छात्रों या अभिभावकों को टीसी देने या स्कूल से निकाले जाने के लिए दबाव डाले तो यह नियम के खिलाफ है।
स्कूल वाले पीटीएम में टॉपर बच्चों और ज्यादा नंबर लाने वाले बच्चों के माता-पिता को तो शाबाशी देते हैं, लेकिन पढ़ाई में कमजोर बच्चों और उनके माता-पिता को सबके सामने अपमानित करते हैं। साफ-साफ कहते हैं कि बच्चों को खुद पढ़ाओ या ट्यूशन लगाओ अगर अगली बार बच्चा कम नंबर लाया तो उसे स्कूल से निकाल दिया जाएगा।
पैरेंट्स टीचर मीटिंग (पीटीएम) में जब अभिभावक टीचर से यह कहते हैं कि बच्चे को डाला ही स्कूल में इसलिए है, ताकि आप लोग इस पर ध्यान दें तो वे उन आठ-दस बच्चों की कॉपी सामने रख देते हैं, जिनके रिजल्ट अच्छे आए हैं। टीचर कहते हैं कि आप लोग बच्चे पर घर पर ध्यान नहीं देते इसलिए उसका रिजल्ट बिगड़ रहा है। जब अभिभावक कहता है कि आप ही इसको होशियार व प्रतिभाशाली बनाओ तो उनका टका सा जवाब होता है कि सेक्शन में 50 के आसपास बच्चे पढ़ाई करते हैं इतना समय नहीं होता है कि पढ़ाई में कमजोर बच्चों को अलग से पढ़ायें। उनको होशियार बनाने की जिम्मेदारी तो पेरेंट्स की होती है। स्कूल वाले महंगी ट्यूशन फीस लेते हैं फिर कहते हैं कि बच्चों का बाहर ट्यूशन कराओ। जब बच्चे को बाहर ट्यूशन/कोचिंग कराके ही प्रतिभाशाली बनाना है इसमें स्कूल की क्वालिटी शिक्षा का क्या योगदान रहा।
(यह लेखक के निजी विचार हैं।)
यह कैसी क्वालिटी शिक्षा, जब ट्यूशन पढ़ने को मजबूर बच्चे
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