संजय मग्गू
इन दिनों दिल्ली में सियासी घमासान मचा हुआ है। विधानसभा चुनाव की तारीख घोषित हो चुकी है। भाजपा, आप और कांग्रेस एक दूसरे पर हमलावर हैं। भाजपा ने जहां शीश महल, कैग की रिपोर्ट, यमुना का प्रदूषण, स्कूल, गली और चौराहों की दुर्दशा के साथ-साथ हिंदुत्व और बांग्लादेशी-रोहिंग्या को लेकर आप को घेरने में जुटी हुई है। वहीं आम आदमी पार्टी राजमहल, फर्जी वोटर, वोटर लिस्ट से नाम काटने जैसे तमाम आरोपों को लेकर चुनाव मैदान में है। इसमें सबसे अलग-थलग कांग्रेस पड़ती दिखाई दे रही है। इंडिया गठबंधन में भी कांग्रेस को किनारे करने का प्रयास किया जा रहा है। वहीं अब कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और संसद में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने इंडिया गठबंधन की जगह यूपीए की बात करनी शुरू कर दी है। पिछले दिनों आईआईटी छात्र-छात्राओं के सवाल पूछने पर उन्होंने इंडिया गठबंधन की जगह यूपीए बात कही थी। पिछले कुछ महीनों से दिल्ली विधानसभा चुनावों को लेकर कांग्रेस ने जो रवैया अख्तियार किया है, उससे लगने लगा है कि कांग्रेस ने अब ‘एकला चलो’ की नीति अपना ली है। दिल्ली में कांग्रेस अपने दम भर चुनाव लड़ने की कोशिश करती दिखाई दे रही है। उसकी भरपूर कोशिश है कि इस बार दिल्ली में भले ही भाजपा की सरकार बन जाए, लेकिन आप सरकार रिपीट नहीं होनी चाहिए। ऐसा प्रतीत होता है कि कांग्रेस ने अब उन पार्टियों से निपटने की रणनीति बना ली है जो उसके वोट बैंक पर कब्जा करके सत्ता में आ गए हैं या सत्ता में सहयोगी होने का दर्जा हासिल कर लिए हैं। दिल्ली की बात करें, तो शीला दीक्षित के बाद जब कांग्रेस का वोट बैंक बिखरा, तो वह सीधे-सीधे आम आदमी पार्टी की ओर गया। भाजपा के पक्ष में बहुत कम प्रतिशत लोग गए। दिल्ली में कांग्रेस तब तकनहीं उभर सकती है, जब तक आम आदमी का जनाधार बरकरार है। यही वजह है कि कांग्रेस भाजपा की जगह आम आदमी पार्टी पर हमलावर है। राजस्थान के पूर्व सीएम अशोक गहलोत ने तो साफ कहा है कि कांग्रेस की विपक्षी पार्टी आप है, न कि भाजपा। दिल्ली ही नहीं, उत्तर प्रदेश, बिहार, बंगाल जैसे तमाम राज्यों में क्षेत्रीय दलों ने कांग्रेस के ही वोटबैंक में सेंध लगाई है। राजद, जदयू, टीएमसी, समाजवादी पार्टी जैसी न जाने कितनी पार्टियां हैं जो कांग्रेस के ही वोटबैंक को अपने पक्ष में करने से कामयाब हुई हैं। ऐसा लगता है कि अब कांग्रेस अपने उसी वोटबैंक को वापस पाने की लड़ाई लड़ रही है। वहीं भाजपा की हर संभव कोशिश होगी कि भले ही दिल्ली में आम आदमी पार्टी की तीसरी बार सरकार बन जाए, लेकिन किसी भी हालत में कांग्रेस मजबूत नहीं होनी चाहिए। भाजपा के लिए राष्ट्रीय स्तर पर सबसे बड़ी विरोधी कांग्रेस है। यही वजह है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर प्रदेश के मंत्री और विधायक तक कांग्रेस को ही हमेशा निशाने पर रखते हैं। भाजपा की नीति भी यही है कि अगर भाजपा की सरकार नहीं बन पाती है, तो भले ही तीसरा दल सरकार बना ले, लेकिन कांग्रेस कतई नहीं।
कांग्रेस में पारंपरिक वोटबैंक वापस पाने की छटपटाहट
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