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कांग्रेस के पास दिल्ली में खोने को भी कुछ नहीं है

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संजय मग्गू
दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सबसे बड़ी समस्या है दस साल का शासन और भ्रष्टाचार के आरोप। अभी कल ही दिल्ली हाईकोर्ट ने आतिशी सरकार को फटकार लगाई है। कैग की रिपोर्ट को लेकर केजरीवाल की ईमानदारी पर सवालिया निशान खड़ा किया है। आप के पास दिल्ली में खोने के लिए बहुत कुछ है। भाजपा के पास दिल्ली में मामूली सा है जिसके खोने का डर नहीं है। कांग्रेस के पास तो कुछ है ही नहीं जिसके खो जाने का डर हो। अब तीनों राजनीतिक दल अपना-अपना जोर लगा रहे हैं। दिल्ली में केजरीवाल सहित आप के सभी वरिष्ठ नेता चुनाव प्रचार में लगे हुए हैं। भाजपा से पीएम नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह भी चुनावी बिगुल फूंक चुके हैं। कल पहली बार कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने सीलमपुर में रैली की और उन्होंने मोदी और केजरीवाल पर निशाना साधा। दोनों को एक दूसरे जैसा झूठा बताया। ऐसे में सवाल उठता है कि कांग्रेस ने भाजपा पर निशाना साधने की जगह आम आदमी पार्टी को घेरे में लेने का फैसला क्यों किया? सन 2013 से पहले कांग्रेस दिल्ली में लगभग चालीस प्रतिशत वोट हासिल करती थी। लेकिन जैसे ही अन्ना आंदोलन के बाद अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व में भ्रष्टाचार के मुद्दे पर आप का गठन हुआ, कांग्रेस का वोट प्रतिशत अचानक गिर गया। आप को दिल्ली में खड़ा होने में भाजपा का भी कुछ हाथ रहा। सन 2015 में जब विधानसभा चुनाव हुए, तो कांग्रेस का वोट प्रतिशत 40 प्रतिशत से घटकर 9.7 पर आ गया। एक भी सीट नहीं मिली। सन 2020 में तो कांग्रेस का और भी बुरा हाल हुआ। वोट प्रतिशत घटकर 4.26 रह गया और इस बार भी खाता नहीं खुला। ऐसी स्थिति में कांग्रेस के पास खोने को कुछ नहीं है। कांग्रेस का वोट किसके खाते में गया? भाजपा या आप के? भाजपा का वोट प्रतिशत थोड़े बहुत अंतर के साथ पिछले लगभग दस साल से स्थिर सा है। सन 2015 में 32.2 प्रतिशत वोट पाने वाली भाजपा ने 2020 में 38.51 प्रतिशत हासिल किया। हां, सन 1993 में भाजपा का वोट प्रतिशत 42.82 वोट हासिल करके सरकार बनाई थी। ऐसी स्थिति में जो आज हालात दिख रहे हैं, उसमें सबसे ज्यादा घबराहट आम आदमी पार्टी में दिखाई दे रही है। कांग्रेस अपना पारंपरिक वोट अपने पक्ष में करने की लड़ाई लड़ रही है। यदि वह चार, पांच, छह जितनी भी सीटें हासिल करती है, वह आप को ही चोट पहुंचाएगी। यही वजह है कि शीला दीक्षित के शासनकाल की याद मतदाताओं को दिलाई जा रही है। आंबेडकर के नाम पर दलितों को साधने का प्रयास किया जा रहा है। आप नेताओं के भ्रष्टाचार के आरोप में जेल जाने का मुद्दा उछाला जा रहा है। राहुल गांधी ने मोदी और केजरीवाल को एक जैसा बताकर एक नई बहस छेड़ दी है। आप भाजपा से मिलकर कांग्रेस के चुनाव लड़ने का आरोप लगा रही है। मतदाता इस बात को अच्छी तरह जानते हैं कि विरोधी पार्टियां एक दूसरे से मिलकर कोई रणनीति नहीं बनाती हैं।

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