कर्नाटक के बेंगलुरु में विपक्ष एकजुट हुआ और उसने अपनी एकता दिखाने की कोशिश भी की लेकिन क्या 2024 के लिए जिस रणनीति को बनाने के लिए वो एकजुट हो रहा है वह परीक्षा इतनी आसान है। क्योंकि कांग्रेस की कोशिश यही है कि उसका इम्तिहान आखिर में हो ऐसा होने से पार्टियों के बीच में उसका भरोसा कायम हो जाएगा।
कई राज्यों में कांग्रेस और क्षेत्रीय दलों में टकराव देखने को मिलता है, टकराव आपस में भी अक्सर देखा जाता है। इसके साथ ही विपक्ष का अभी तक का यही कहना रहा है कि बीजेपी को 37 फ़ीसदी वोट मिले हैं, जबकि 63 फ़ीसदी वोटर्स ने उनके खिलाफ वोट किया है। ऐसे में विपक्ष की यह कोशिश होगी कि वह बिखरे हुए वोटों को इकट्ठा कर ले तो शायद उसका जीतना संभव हो पाए। साल 2019 के आंकड़ों की बात करें तो 224 सीट पर पूरा विपक्ष मिलकर भी सत्तारूढ़ बीजेपी को नहीं हरा सकता क्योंकि बीजेपी को 50 फ़ीसदी से भी ज्यादा वोट मिले और इन आंकड़ों में देखने वाली बात यह है कि बीजेपी ने कांग्रेस के साथ सीधा मुकाबले वाली 100 से ज्यादा सीटों पर 50 फ़ीसदी से भी ज्यादा वोट हासिल किए। दिल्ली की बात की जाए तो सभी सातों सीटों पर बीजेपी को 50 फ़ीसदी से भी ज्यादा वोट मिले, आंकड़ों के मुताबिक देखा जाए तो बीजेपी के लिए उत्तर प्रदेश, बिहार और तमिलनाडु की 159 सीट पर मुश्किल नहीं दिखाई देती है और अगर राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और महाराष्ट्र की बात की जाए तो 113 सीट भी एक ही उम्मीदवार रहेगा।
यानी 272 सीट पर एक उम्मीदवारी तो तय है, तो वही कांग्रेस की बात की जाए तो लोकसभा चुनाव में विपक्षी एकता के लिए कांग्रेस से अपना सबसे बड़ी पार्टी का फर्ज तो निभा दिया है और उसकी तरफ से यह भी देखने को मिल रहा है कि प्रधानमंत्री पद को लेकर कांग्रेस में कोई लालसा दिखाई नहीं दे रही है कांग्रेस का रूप यह दिखाई देता है कि पूरे विपक्ष को एकजुटता के साथ रखना है। अब अगर 2024 के रण को जीतना है तो विपक्ष में शामिल हुई दूसरी पार्टियों को भी यह सोचना होगा कि वह कांग्रेस के साथ अपने विपक्ष की एकजुटता होने का फर्ज निभाए।