महेन्द्र प्रसाद सिंगला
देश की वर्तमान राजनीति में अभी तक मुख्यत: दो गठबंधन अस्तित्व में हैं – एक एनडीए तथा दूसरा इंडिया। जहॉं एक ओर एनडीए सत्ता में है, तो वहीं दूसरी ओर इंडिया विपक्ष की भूमिका में है। एनडीए राजनीति में लगभग तीन दशक पुराना है, जबकि इंडिया देश के आम लोकसभा चुनावों से लगभग एक वर्श पूर्व बना गठबंधन है। यह गठबंधन कांग्रेस के नेतृत्व में चल रहे गठबंधन यूपीए का ही विस्तार कहा जा सकता है, जो अपने बनने से लेकर अभी तक भी नेतृत्वहीनता के संकट से जूझ रहा है। भाजपा के नेतृत्व में एनडीए की लोकसभा चुनावों में 2014 और 2019 में लगातार दो प्रचंड जीतों ने देश में बिखरे हुए विपक्ष को झकझोर कर रख दिया था। इसका प्रत्यक्ष प्रमाण यह है कि दोनों ही बार देश में कोई विपक्ष का नेता तक नहीं बन सका, जो संसद में नेता प्रतिपक्ष की औपचारिक भूमिका भी निभा सके। 2024 में तीसरी बार भी एनडीए और भाजपा की जीत की प्रबल संभावनाओं ने निष्चित ही विपक्ष को गहन चिंता में डाल दिया था। परिणाम स्वरूप विपक्षी एकजुटता की आवष्यकता महसूस की जाने लगी। इसके लिए कुछ राजनीतिक दलों को छोडकर, बाकी के लगभग सभी विपक्षी दल एकजुटता के साथ एक मंच पर आए ताकि देश की राजनीति में एक मजबूत विपक्षी गठबंधन बनाया जा सके और एनडीए को देश की सत्ता से बेदखल किया जा सके।
अनेक किंतु-परंतुओं एवं विपक्षी दलों के विरोधाभासी विचारों-व्यवहारों के बीच विपक्षी एकता के नाम पर एक राजनीतिक गठबंधन का गठन किया गया, जिसका नामकरण हुआ – इंडिया। इसको लेकर विपक्ष ने बडे-बडे दावे किए। इस गठबंधन को धरातल पर लाने में भगीरथी र्प्रयास किए, बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने, जो इसके अध्यक्ष/संयोजक बनने के स्वाभाविक ही दावेदार थे, लेकिन राजनीतिक समीकरणों के परिप्रेक्ष्य में उनकी यह दावेदारी सफल नहीं हो सकी। इस सबसे निराश-हतास नीतीश कुमार गठबंधन से अलग हो गए और एनडीए के साथ जा मिले। इस गठबंधन के नेतृत्व को लेकर मुख्य घटक दलों में विवाद हो गया, जिससे यह गठबंधन नेतृत्वहीनता का शिकार हो गया।
यदि इंडिया गठबंधन के बनने से लेकर उसकी अब तक की स्थिति को देखें, तो कहीं भी और कभी भी वह एक मजबूत और प्रभावशाली गठबंधन दिखाई नहीं दिया और न ही सिद्ध हुआ। अब तो वह रसातल और पतन की ओर अग्रसर है। परिणामस्वरूप वह अपने अस्तित्व तक को बचाने के लिए संर्घशरत है, बल्कि वास्तविकता तो यह है कि अब तो इसके घटक दल भी इसके प्रति उदासीन ही अधिक दिखाई देते हैं। इनके सभी नेता केवल अपने-अपने दलों के हित में संलग्न और मशगूल हैं।
नि:संदेह गठबंधन में सबसे बडा घटक दल कांग्रेस है, जो 2024 के आम लोकसभा चुनावों में 99 सांसदों के साथ न केवल सबसे बडी विपक्षी पार्टी है, बल्कि संसद में नेता प्रतिपक्ष भी है। इतना ही नहीं बल्कि गठबंधन में कांग्रेस मुख्य रूप से एकमात्र राश्ट्रीय दल भी है, जबकि प्राय: अन्य सभी घटक दल क्षेत्रीय दल ही हैं, जिसमें आम आदमी पार्टी औपचारिक रूप से जरूर एक राश्ट्रीय दल है, लेकिन भारतीय राजनीति में अभी तक उसकी हैसियत भी एक क्षेत्रीय दल से अधिक नहीं है।
2024 के आम चुनाव 2014 और 2019 के चुनावों से भिन्न परिणाम वाले रहे। जहॉ एक ओर 2014 और 2019 में भाजपा अकेले दम पर संसद में पूर्ण बहुमत प्राप्त करने में सफल रही, वहीं दूसरी ओर मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस दोनों ही बार नेता प्रतिपक्ष का पद पाने में भी सफल नहीं हो सकी, जबकि 2024 के चुनावों में न केवल भाजपा बहुमत के आँकडे 272 से बहुत दूर केवल 240 तक ही पहुँच पाई, बल्कि कांग्रेस 99 और इंडिया गठबंधन 234 तक पहुँच कर संसद में एक मजबूत स्थिति दर्ज करने में सफल रहे। यह विपक्ष की एक बहुत बडी जीत मानी गई। विपक्ष ने इसे न केवल अपनी बडी जीत बताया, बल्कि इसे सत्तापक्ष की पराजय तक बता दिया। इससे एकबार तो सत्तापक्ष भी सकते में आ गया और सरकार के गठन को लेकर भी उहा-पोंह की स्थिति भी बनती नजर आने लगी थी। लेकिन एनडीए गठबंधन के बहुमत में होने से तीसरी बार भी केन्द्र में सरकार बनाने में अवष्य सफल रहा।
इस सबके बावजूद विपक्षी गठबंधन की स्थिति कभी भी मजबूत दिखाई नहीं दी। गठबंधन के प्राय: सभी घटक दल किसी न किसी रूप में एक दूसरे के विरोध में खडे दिखाई देते रहे हैं। विपक्ष को इस स्थिति में पहुँचाने में लोकसभा के बाद चार राज्यों में हुए चुनाव परिणामों ने मुख्य भूमिका निभाई है। हरियाणा लोकसभा चुनावों में कांग्रेस ने दस में से पॉंच सीट तथा महाराश्ट्र में महाविकास अघाडी ने 48 में से 31 सीटें जीतकर अपनी मजबूत स्थिति दर्ज करते हुए आगामी विधानसभा चुनावों में दोनों ही राज्यों में विपक्ष की सरकारें बनाने का अपना दावा मजबूत कर दिया था, लेकिन दोनों ही राज्यों में विधानसभा चुनावों में विपक्ष की करारी हार ने गठबंधन के दलों को हतप्रभित व दिग्भ्रमित कर दिया। वे यह सब समझ ही नहीं पाए कि आखिर यह सब क्या हुआ, कैसे हुआ? उत्तर प्रदेश विधानसभा के नौ उपचुनाव भी किसी छोटे राज्य के चुनावों से किसी भी प्रकार से कम नहीं थे। वहॉं का परिणाम भी विपक्ष के लिए सुखद नहीं रहा। विशेष बात यह थी कि हरियाणा और उत्तर प्रदेश के चुनावों में गठबंधन कहीं भी दिखाई नहीं दिया। यही स्थिति पष्चिम बंगाल और केरल के लिए भी कही जा सकती है। विपक्ष सत्तापक्ष की प्रचंड जीत को पचा नहीं पाया। गठबंधन में कांग्रेस अलग-थलग पड गई है। गठबंधन के सभी घटक दल कांग्रेस की उपेक्षा कर रहे हैं। दिल्ली में होने जा रहे विधानसभा चुनावों में भी गठबंधन के दोनों घटक दल -कांग्रेस और आप- एक दूसरे के विरोध में चुनाव लड रहे हैं। इन चुनावों में कांग्रेस और आम आदमी पार्टी एक दूसरे के विरोध में जिस प्रकार आक्रामक है, वैसी स्थिति भाजपा को लेकर भी नहीं है। गठबंधन के सभी घटक दलों ने कांग्रेस के नेतृत्व को अस्वीकार कर दिया है और वे सभी आम आदमी पार्टी के साथ हैं। बेशक गठबंधन के सभी क्षेत्रीय दल अपने-अपने राज्य-क्षेत्रों में प्रभावशाली हैं, लेकिन यह भी उतना ही स्पश्ट है कि अपने-अपने राज्यों से बाहर उनका कोई विशेश राजनीतिक वजूद नहीं है, वहीं कांग्रेस अभी भी राश्ट्रीय पार्टी के रूप में, राजनीतिक रूप से, भारतीय राजनीति में अधिक प्रभावशाली और प्रासंगिक है। इस संदर्भ में कांग्रेस विहीन विपक्ष को राश्ट्रीय विपक्ष बिल्कुल नहीं माना जा सकता। इस सबके बावजूद दिल्ली के चुनाव परिणाम भारतीय राजनीति में विपक्षी गठबंधन की स्थिति को और अधिक स्पश्ट करेंगे, लेकिन फिलहाल तो इंडिया गठबंधन की स्थिति का हाल-बेहाल ही अधिक दृश्टिगोचर होता है। इस समस्त परिप्रेक्ष्य में कहा जा सकता है कि इंडिया बठबंधन, बंधन मुक्ति की ओर अग्रसर है।
बंधन मुक्ति की ओर अग्रसर है इंडिया गठबंधन
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