संजय मग्गू
दिल्ली विधानसभा चुनाव प्रचार खत्म होने में सिर्फ दो दिन बचे हैं। भाजपा, आम आदमी पार्टी और कांग्रेस सहित अन्य सियासी पार्टियां मतदाताओं को रिझाने के लिए पूरा जोर लगा रही हैं। आरोप-प्रत्यारोप का दौर जारी है। मुफ्त दी जाने वाली योजनाओं को जीत की गारंटी मानकर जोर-शोर से प्रचार-प्रसार किया जा रहा है। भाजपा, कांग्रेस, आप जैसी तमाम पार्टियां इस होड़ में पीछे नहीं रहना चाहती हैं। यह सिर्फ दिल्ली की ही बात नहीं है, लोकसभा और अन्य राज्यों में हुए विधानसभा चुनावों में भी यही देखने को मिला है। भविष्य में जो भी विधानसभा चुनाव होंगे, कमोबेस यही तस्वीर रहने वाली है। लेकिन सवाल यह है कि इससे अर्थव्यवस्था का क्या होगा? चुनावी वायदों को पूरा करने के लिए पैसा कहां से आएगा? रेवड़ी बांटने से देश और प्रदेश की अर्थव्यवस्था कैसी रहेगी? जिन राज्यों में चुनावी रेवड़ी बांटकर सरकारें बनी हैं, उन राज्यों का हाल देख लीजिए। चुनावी वायदे पूरे करने के लिए उन्हें अपने जीडीपी से भी कहीं ज्यादा कर्ज लेना पड़ रहा है? आखिर, ऐसा कब तक चलेगा? यह तो निश्चित है कि यदि ऐसा काफी दिनों तक चलता रहा, तो एक दिन पूरी की पूरी अर्थ व्यवस्था बैठ जाएगी। इस बात को समझने के लिए दो देशों ब्राजील और चीन की अर्थव्यवस्था मॉडल को समझने कई जरूरत है। बात सन 1970 के दौर की है। उन दिनों पूरी दुनिया में कहा जाता था कि ब्राजील बहुत जल्दी एक बड़ी अर्थव्यवस्था बनकर दुनिया के सामने आएगा। लेकिन चीन की आर्थिक हालत काफी पिछड़ी हुई थी। कारण? ब्राजील उन दिनों कल्याणकारी राज्य बनने की कोशिश में था। उसने अपने देश की जनता को तमाम सुविधाएं मुहैया कराईं। ब्राजीली जनता को चिकित्सा, शिक्षा, राशन जैसी तमाम जरूरतें सरकार ने लगभग मुफ्त मुहैया करवाईं। नतीजा यह हुआ कि ब्राजील की विकास दर सन 1980 और उसके बाद दो पर आकर अटक गई। कर्जा बहुत बढ़ गया। वहीं चीन की सरकार ने आर्थिक मामलों में अपनी भूमिका बहुत सीमित कर ली। चीन ने मुफ्त दी जाने वाली योजनाओं पर अंकुश लगाया। उन्हें लगभग समाप्त ही कर दिया। जनता को कोई भी कल्याणकारी योजना देने से इनकार कर दिया। यहां तक कि पब्लिक सेक्टर की कंपनियों से दस करोड़ लोगों को नौकरी से निकाल दिया। लेकिन उसने अपने देश की जनता को समान रूप से मौके उपलब्ध कराए। लोगों ने सरकार का आसरा छोड़कर छोटे-छोटे पैमाने पर कुटीर उद्योग, लघु उद्योग और मध्यम उद्योग लगाए। नतीजा यह हुआ कि चीन की अर्थव्यवस्था जो सन 1970 में घिसट रही थी, तेज रफ्तार में दौड़ने लगी। हमारे देश की आर्थिक स्थिति भी इन मुफ्त मिलने वाली सुविधाओं की वजह से कराहने लगेगी, यह तय है। आखिर कब तक लोगों को मुफ्त राशन, मुफ्त बिजली, मुफ्त यात्रा, मुफ्त इलाज दिया जा सकेगा? कभी न कभी तो मजबूरन इस पर अंकुश लगाना ही पड़ेगा।
कहीं रेवड़ियां बिगाड़ तो नहीं देंगी अर्थव्यवस्था की चाल?
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