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संत की जान के बदले पूरा ईरान ले लो

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बोधिवृक्ष
अशोक मिश्र
बारहवीं शताब्दी में फारस के नेशांपुर में प्रसिद्ध सूफी संत फरीदउद्दीन अत्तार का जन्म हुआ था। वैसे उनका नाम अबू हामिद बिन अबू बक्र इब्राहीम था, लेकिन उनको ख्याति फरीदउद्दीन अत्तार के नाम से मिली। अत्तार सूफीवाद के तीन प्रसिद्ध स्तंभों में से एक माने जाते हैं। अत्तार का सबसे  प्रसिद्ध ग्रंथ फारसी भाषा का मसनवी अत्तार माना जाता है। यह भी माना जाता है कि अत्तार अपने जमाने के प्रसिद्ध रसायनज्ञ के बेटे थे। उन्होंने शुरुआती दौर में वैद्य का काम किया था, लेकिन बाद में यह पेशा छोड़ दिया था। इनके संबंध में एक रोचक घटना बताई जाती है। बात उन दिनों की है, जब तुर्की और ईरान के बीच युद्ध चल रहा था। काफी दिनों से चल रहे युद्ध का कोई फैसला नहीं हो पा रहा था। हालांकि ईरान का पलड़ा युद्ध में भारी था। संयोग से तुर्की से गुजर रहे संत फरीदउद्दीन अत्तार को तुर्कियों ने गिरफ्तार कर लिया। तुर्की के बादशाह ने संत को फांसी की सजा सुनाई। यह सुनकर ईरान में हाहाकार मच गया। संत की सजा सुनकर लोग परेशान हो उठे। एक अमीर आदमी ने तुर्की के सामने प्रस्ताव रखा कि संत का जितना वजन है, उसके बराबर हीरा, मोती या जवाहरात ले लो, लेकिन संत को छोड़ दो। बहुत सारे लोग संत के बदले अपनी जान देने को तैयार थे। लेकिन तुर्की का बादशाह इस पर तैयार नहीं हुआ। तब ईरान का बादशाह आगे आया और उसने तुर्की के बादशाह से कहा कि वह ईरान ले ले, लेकिन संत को छोड़ दे। तुर्की के बादशाह को बहुत आश्चर्य हुआ। उसने कहा कि एक आदमी के लिए आप पूरा राज्य देने को तैयार हैं। ईरानी बादशाह ने कहा कि राज्य तो आज है, कल नहीं रहेगा, लेकिन यदि संत को फांसी हो गई, तो ईरान हमेशा के लिए कलंकित हो जाएगा। यह सुनकर तुर्की के बादशाह ने संत को रिहा कर दिया।

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