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मतदाताओं की घटती रुचि लोकतंत्र के लिए चिंताजनक

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संजय मग्गू
हरियाणा की छोटी सरकार के लिए मतदान हो चुका है। नौ नगर निगमों, पांच नगर परिषदों और 23 नगर पालिकाओं के लिए चुनाव लड़ने वाले सभी उम्मीदवारों का भाग्य मतदाताओं ने लिख दिया है। किसके भाग्य में जय है और किसके पराजय, इसका फैसला तो अब 12 मार्च को ही होगा। लेकिन जिस तरह इस बार निकाय चुनावों में मतदाताओं का मतदान करने के मामले में उत्साह नदारद रहा, वह आश्चर्यजनक जरूर है। 2 मार्च को हुए मतदान में कुल 46 प्रतिशत मतदान हुआ। इतने कम प्रतिशत हुए मतदान ने चुनाव विश्लेषकों और राजनीतिक महारथियों को चिंता में डाल दिया है। यदि भविष्य में भी यही ट्रेंड रहा, तो लोकतांत्रिक प्रक्रिया के लिए अच्छा नहीं माना जा सकता है। वैसे इतने कम प्रतिशत मतदान होने के चलते भविष्य में लोगों का चुनावी प्रक्रिया पर अविश्वास पैदा हो सकता है। 46 प्रतिशत मतदान भी एक तरह से चुनावी प्रक्रिया के प्रति पैदा हुए अविश्वास को ही दर्शाता है। वोटिंग परसेंट बताता है कि 54 प्रतिशत लोगों ने चुनावी प्रक्रिया में भाग ही नहीं लिया। यानी मतदान करने से ज्यादा मतदान न करने वालों की संख्या है। इसमें भी जो उम्मीदवार जीत जाएगा, वह हर बात में कहेगा कि उसने बहुमत हासिल की है। अब यदि इसका विश्लेषण किया जाए, तो पता चलता है कि जीतने वाला बहुमत से नहीं, अल्पमत से जीता है। जो भी प्रत्याशी जीतेगा, यह तय बात है कि उसे वोट न देने वाले 54 प्रतिशत लोगों का समर्थन हासिल नहीं है। इसके बाद जो 46 प्रतिशत वोट डाले गए हैं, जीतने वाले को शत-प्रतिशत यानी सभी 46 प्रतिशत वोट मिलने से रहे। ऐसे में जीतने वाले को 25, 30 प्रतिशत वोट मिल जाएंगे, तो भी वह जीत ही जाएगा। यदि किसी ने 30 प्रतिशत वोट हासिल करके जीत हासिल भी कर ली, तो भी उसे 70 प्रतिशत लोगों का समर्थन हासिल ही नहीं है। जिन 54 प्रतिशत लोगों ने वोट नहीं डाला, वह न जीतने वाले के पक्ष में थे, न हारने वाले के पक्ष में। बाकी 16 प्रतिशत लोगों ने भी जीतने वाले के पक्ष में वोट नहीं डाला। सौ में से तीस प्रतिशत वोट पाकर जीतने वाला क्या सचमुच बहुमत हासिल करने वाला कहा जाएगा? यह स्थिति लोकतंत्र के लिए सचमुच चिंताजनक होनी चाहिए। बात नगर निकाय की ही नहीं, लोकसभा और विधानसभा में भी जिस तरह वोट डाले जा रहे हैं, वह भी चिंतनीय है। साठ प्रतिशत मतदान भी यही साबित करता है कि चालीस फीसदी लोगों की लोकतंत्र में रुचि नहीं है। शासन-प्रशासन को इन हालात से निपटने के लिए कुछ करना होगा। लोगों को मतदान के लिए पोलिंग बूथ तक लाना होगा। उन्हें प्रेरित करना होगा कि लोगों में चुनाव के दौरान मतदान के लिए जोश हो, जुनून हो, ताकि स्वस्थ लोकतंत्र की आधारशिला रखी जा सके।

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