बोधिवृक्ष
अशोक मिश्र
आदमी जब तक जिंदा है, तब तक उसके शरीर का मोल है। मर जाने के बाद इंसान किसी काम का नहीं रह जाता है। दूसरे कुछ जीव-जंतु और पेड़-पौधे अपना जीवन समाप्त करने के बाद भी मूल्यवान बने रहते हैं। उनके अंग उपांग किसी न किसी काम आ जाते हैं। आधुनिक युग में मरने के बाद इंसान अगर अपने अंग दान कर दे, तो जरूर वे किसी के काम आ सकते हैं। यह बात एक राजा ने समझी थी। उसने अपने जीवन में कभी अहंकार नहीं किया। एक बार की बात है। वह राजा पड़ोसी राज्य से युद्ध करके लौट रहा था। हालांकि युद्ध की शुरुआत भी उसने नहीं की थी, लेकिन मजबूरी में उसे युद्ध लड़ना पड़ा और वह जीत गया। जंग जीतकर जब वह लौट रहा था, तो रास्ते में उसने एक साधु को एक पेड़ के नीचे बैठा पाया, तो वह अपने रथ से उतरा और जाकर साधु को साष्टांग प्रणाम किया। यह बात राजा के मंत्री को पसंद नहीं आई। इतना बड़ा राजा एक साधारण से साधु के चरणों में गिर गया। राजा को क्या जरूरत थी साधु को प्रणाम करने की। राजा जब अपनी सेना के साथ राज महल में पहुंचा, तो मंत्री से रहा नहीं गया। उसने कहा कि आप इतने बड़े राजा हैं। आपको उस साधु के सामने झुकने की जरूरत ही नहीं थी। राजा ने मंत्री को एक थैला देते हुए कहा कि इस थैले में जो कुछ है, उसे बेच आओ। बाजार पहुंचने से पहले थैले को मत खोलना। मंत्री बाजार पहुंचा, तो उसने देखा कि थैले में मुर्गे का सिर, मछली का सिर और एक आदमी का सिर था। मुर्गे और मछली का सिर तो बिक गया, लेकिन आदमी का सिर लेने को कोई तैयार नहीं हुआा। मंत्री ने लौटकर राजा को यह बात बताई। तब राजा ने कहा कि जिस सिर को कोई मुफ्त में लेने को तैयार नहीं हुआ, उसका क्या मोल है? इस सिर को झुकाने पर कम से कम आशीर्वाद तो मिला। यह सुनकर मंत्री सारी बात समझ गया।
मरने के बाद इंसान का कोई मोल नहीं
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