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सिर्फ मरे हुए लोग रहते हैं हमारे जिंदा देश में

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क्या फर्क पड़ता है हमें ऐसी घटनाओं से? क्योंकि हम तो विश्व गुरु बनने की दौड़ में शामिल हैं। बेशक हमारी संस्कृति चीख-चीख कर कह रही हो कि यत्र नारी पूज्यंते रमन्ते तंत्र देवता। मगर हमारे कर्म और विकृत मानसिकता यह बता रही है कि हम बेहद बर्बर लोग हैं। हम सिर्फ भाषणों में दहाड़ सकते हैं। आकंड़ों की बाजीगरी दिखाकर शेखी बघार सकते हैं, पर असल में हम पूर्णतया गिरे हुए लोग हैं क्योंकि हमारा खून नहीं खौलता। कारण कि हमने अपना खून फ्रिज में रख दिया है। पर रुकिए! हमारा खून खौलता है धर्म के मुद्दों पर, राजनीतिक बातों पर,सत्ता की चाशनी, फिल्मों को न चलने देने पर। वैसे हमारी भावनाएं इतनी संवदेनशील हैं कि कभी भी आहत हो सकती हैं बशर्ते कि बात आहत होने वाली ना हो पर बात आहत होने वाली हो तो फिर हमारी भावनाएं हैं कि आहत होने का नाम तक नहीं लेती?

वैसे भी जहाँ कुलगुरु बैठे हों, धर्मराज खुद आसीन हों, अपनी बात के लिए जाने, जाने वाले भीष्म बैठे हों, वहाँ पर भी जब एक महिला को निर्वस्त्र करने का घिनौना काम किया जा सकता है फिर वर्तमान दौर को दोष क्यों दें? जी नहीं, वर्तमान दोष को दोष देना ही पड़ेगा और खुलकर बोलना ही होगा क्योंकि यह देश संविधान से चलता है। मगर अब इसे भावनाओं से चलाने का काम किया जा रहा है। जात-धर्म का खेल खेलकर सत्ता हथियाने का काम हो रहा है। तमाम दल इसमें बराबर के भागीदार हैं। मठाधीश खड़े किए जा रहे हैं जो प्लाट खाली होने के प्रवचन देते हैं और हम उनके कार्यक्रमों की भीड़ बनते हैं और सोशल मीडिया पर उन्हें धर्मरक्षक बताते हैं। लानत है ऐसे लोगों पर कि वो मणिपुर की घिनौनी घटना पर मुँह तक नहीं खोलते? क्या ऐसे लोगों को आप जिंदा लोग भी कह सकते हैं। मणिपुर की घटना हमारी सबकी पोल खोलती है। हमारे आदर्शों की धज्जियां उड़ा रही हैं। विश्वगुरु के नारे का मखौल है। हमारी विदेशों में तूती बोलती है, उसका नंगा नाच है मणिपुर की वीभत्स घटना। उस पर गजब है कि लगभग सत्तर दिन पहले हुई, क्या किसी को भी इस घटना का पता नहीं था?

अगर नहीं तो यह बात हम सबके लिए डूब मरने की है। सत्तर दिन बाद आनन-फानन में एफआईआर दर्ज होती है। सत्ता पक्ष और विपक्ष के बयान आते हैं। क्या होता है इन सबसे? ये सिर्फ एक तरह का अत्याचार है? बख्शा नहीं जाएगा, कानून अपना काम करेगा, हमें बहुत पीड़ा हुई है, सिर शर्म से झुक गया, ये सिर्फ जुमले हैं। अगर जुमले नहीं होते तो क्या हम हाथरस की बेटी को आधी रात रात को पेट्रोल डालकर जलाते? क्या हम टुकड़े करने वाली घटनाएं नहीं जानते? पिछले दिनों मेडल जीतने वाली लड़कियों के साथ हमने क्या किया? महिलाओं के प्रति हमारी सोच क्या है? सच तो यह है कि हमारी सोच संकीर्ण है, उसे कुंद कर दिया गया है, सोच पर ही पहरे बिठा दिया गए हैं। ऐसा वातावरण बना दिया गया है जिससे मानसिकता विकृत हो और हम हर घटना को भूलते रहें। सिर्फ उन बातों को याद रखें जो तथाकथित एक खास किस्म का मीडिया हमें याद करवाना चाहता है। ऐसी-ऐसी बातें हमारे सामने परोसी जाती हैं जैसे कि देश की सभी समस्याओं को हल केवल इस बात में है कि एक विशेष धर्म का राष्ट्र घोषित कर दो और एक विशेष धर्म/जाति के लोगों के कारण देश में समस्याएं हैं। धर्म के प्रतीकों में उलझाया जा रहा है। हर रोज बाजारी मीडिया द्वारा जहर भरा जा रहा है। जबकि सत्य से परे रखा जा रहा है और सत्य यह है कि हमें जाति-धर्म ने नहीं बल्कि सत्ता प्राप्त करने लोगों की सोच ने परेशान कर रखा है।

हमें हमारी ही विकृत मानसिकता, संकीर्ण सोच ने परेशान कर रखा है वरना ऐसी घटना नहीं घटती जो मणिपुर में घट चुकी है जिससे पूरा देश शर्मसार है। मगर हमारे अंदर भूलने की जबरदस्त बीमारी है। हर घटना को हम आसानी से भूल जाते हैं, वरना तो क्या जाति के नाम पर अत्याचार होते। जो आज पहले से भी भयंकर रूप में जारी है। आज भी हर तरह की घटना में महिला के साथ अन्याय होता है। क्यों? आखिर क्यों? बोलना पड़ेगा, जागना होगा, सोच बदलनी पड़गी वरना वह दिन दूर नहीं जब केवल पछताना होगा, सिर्फ पछतावा बाकी कुछ नहीं। अभी वक्त है संभलिए! मणिपुर की घटना ने इतना विचलित कर दिया है कि आज तो जय राम जी भी कहने का मन नहीं है। बस हम सबको अपनी संकीर्ण सोच बदल लेनी चाहिए।

कृष्ण कुमार निर्माण

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