कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और स्वतंत्रता संग्राम सेनानी लाल बहादुर शास्त्री अपनी साफगोई और ईमानदारी के लिए बहुत प्रसिद्ध थे। वैसे उनका नाम लाल बहादुर श्रीवास्तव था, लेकिन जब उन्होंने काशी विद्यापीठ से शास्त्री की उपाधि धारण की तो उन्होंने अपने नाम के साथ लगा श्रीवास्तव शब्द हटाकर शास्त्री जोड़ लिया। वे देश के प्रधानमंत्री बनने से बहुत पहले उत्तर प्रदेश के गृहमंत्री भी रहे। स्वाभाविक है कि पुलिस महकमा उनके पास था। एक बार उनका एक दोस्त उनसे मिलने आया। उन्होंने उससे उसका हालचाल पूछा, गांव-जंवार की बातें हुई। तब उन्होंने मित्र से आने का प्रयोजन पूछा। उसने कहा कि उसका पुत्र थानेदार की भर्ती के लिए गया था, लेकिन मामूली सी लंबाई कम होने की वजह से वह थानेदार भर्ती नहीं हो पाया। यदि वे सिफारिश कर दें, तो उनके पुत्र को थानेदार की नौकरी मिल सकती है।
मैं बहुत उम्मीद लेकर आपके पास आया हूं। यह सुनकर शास्त्री जी मुस्कुराए और बोले, मेरी लंबाई कम होने के कारण मैं भी थानेदार नहीं बन पाया। आप अपने बच्चे से कहें कि वह मन लगाकर पढ़ाई करे और किसी दूसरे पद के लिए प्रयास करे। मैं भी चाहूं , तो थानेदार नहीं बन सकता हूं। उनके मित्र ने कहा कि थानेदार नहीं बन सकते तो क्या? कद छोटा होने के बावजूद प्रदेश के गृह मंत्री तो बन ही गए।
तब लाल बहादुर शास्त्री ने कहा कि यही बात तो मैं आपको समझाना चाहता हूं। आप अपने बेटे से कहें कि वह अपनी योग्यता के अनुसार नौकरी खोजे। मेहनत करे, तो प्रदेश का गृहमंत्री बन सकता है, लेकिन थानेदार नहीं। इसके बावजूद उनके मित्र ने काफी मिन्नत की, लेकिन लाल बहादुर शास्त्री जी अपनी बात पर दृढ़ रहे। आखिरकार निराश होकर उनका मित्र लौट गया।