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HomeEDITORIAL News in Hindiमिसिंग गर्ल्स के बारे में समाज को होना पड़ेगा गंभीर

मिसिंग गर्ल्स के बारे में समाज को होना पड़ेगा गंभीर

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पिछले तीन साल में देश से 13 लाख से अधिक लड़कियां और महिलाएं गायब हैं। मानसून सत्र के दौरान गृहमंत्रालय ने यह आंकड़ा जारी किया है। इस खबर पर किसी की प्रतिक्रिया नहीं आई। न नेताओं की, न अफसरों की, न स्वयंसेवी संस्थाओं और महिला संगठनों। इतना ही नहीं, आम जनता ने भी इन खबरों को पढ़ा और भुला दिया। किसी पर कोई फर्क नहीं पड़ा। सन 2019 में अगस्त महीने में ही ईस्ट दिल्ली के एक सरकारी अस्पताल से 14 साल की लड़की लापता हो गई थी। लड़की की मां दवा लेने की लाइन में खड़ी थी। दवा लेने के बाद जब उसने अपनी बेटी की तलाश शुरू की, तो वह नहीं मिली। उसने सौ नंबर पर शिकायत दर्ज कराई। पुलिस आई भी, लेकिन कुछ नहीं हुआ। पंद्रह दिन तक एफआईआर भी नहीं दर्ज की गई। बाद में किसी ने लड़की की मां को बताया कि वह एक हमउम्र लड़के के साथ देखी गई थी। जो उसे एक किन्नर के पास ले गया था। चार साल भी लड़की का पता नहीं चला।

यदि पुलिस तत्काल सक्रिय हुई होती, तो शायद लड़की का पता लगाया जा सकता था। अब वह लड़की कहां है, किन परिस्थितियों में रह रही है, किसी को नहीं मालूम। वह गृहमंत्रालय द्वारा दिए गए आंकड़े में शामिल होकर रह गई। बच्चियों को खोने की पीड़ा भोगने वाले परिवारों की कहानियां पुलिस की फाइल में दर्ज होकर रह गई हैं। आखिर क्यों लापता होती हैं या भाग जाती हैं लड़कियां? विशेषज्ञों का कहना है कि जिन परिवारों में लड़कियों को पर्याप्त आजादी नहीं मिलती है, उनके मन में परिवार के प्रति एक असंतोष पनपने लगता है जिसका फायदा मानव तस्करी करने वाले लोग उठाते हैं। परिवार में प्यार न मिलने से लड़कियां बागी हो जाती हैं। ऐसी लड़कियों को बहलाना फुसलाना आसान होता है। पारिवारिक कलह, धर्म, जाति, संप्रदाय और क्षेत्रवाद के साथ-साथ दिनोंदिन बढ़ता साइबर क्राइम लड़कियों के घर से भागने का एक कारण हो सकता है।

समाजशास्त्रियों का मानना है कि जिन घरों में लड़के-लड़की का भेद किया जाता है, वहां घर का मौहाल स्वस्थ नहीं रहता है। ऐसी स्थिति में लड़कियां अपने को उपेक्षित महसूस करती हैं। कई राज्यों में घटते लिंगानुपात का कारण भी यही फैक्टर है। लैंगिक असमानता, आर्थिक स्थिति का खराब होना लड़कियों को एक उम्र के बाद आजाद होने की ओर प्रवृत्त कर देता है। ऐसी स्थिति में यदि इन लड़कियों के साथ घर में मारपीट की जाए, उनको बात-बात पर डांटा-फटकारा जाए, तो वे घर छोड़ने या किसी के साथ भाग जाने का मन बना लेती हैं। मानव तस्कर ऐसी लड़कियों को आसानी से निशाना बना लेते हैं। वे जानते हैं कि घर में उपेक्षित लड़कियों को प्यार या रोमांस के नाम पर आसानी बहलाया जा सकता है। कच्ची उम्र की लड़कियां उनके फंदे में आसानी से फंस जाती हैं। कई बार मनपसंद शादी न होने या जबरदस्ती शादी कराए जाने पर भी महिलाएं घर छोड़कर भाग जाती हैं।

संजय मग्गू

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