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भ्रष्टाचार में डूबी अनियोजित सीवरेज प्रणाली झेलने को मजबूर जनता

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देश के बड़े भाग में पिछले दिनों बाढ़ व जलभराव के दृश्य देखने को मिले। हरियाणा पंजाब व हिमाचल के तो बहुत से ग्रामीण व शहरी इलाके अभी तक भारी बारिश व जल भराव का सामना कर रहे हैं। जहाँ जहाँ जमीन का स्तर नीचा है, वहां अभी जलभराव के दृश्य देखे जा सकते हैं। रुका हुआ पानी काला हो गया है। पास पड़ोस के लोग सड़ांध भरी दुर्गन्ध में जीने के लिए मजबूर हैं। शहरों में  बारिश और जलभराव के सीधे  प्रभाव से जहां नालियां व नाले उफान पर रहते हैं और ओवर फ़्लो  होकर बहते हैं वहीं सीवरेज प्रणाली भी जवाब दे जाती है। बारिश में देश के विभिन्न राज्यों में सीवर के मैनहोल के ओवर फ़्लो होकर बहने के नजारे देखे जा सकते हैं। इससे लोगों का रास्ता चलना दुश्वार हो जाता है। पूरे प्रभावित क्षेत्र में प्रदूषण व दुर्गन्ध का माहौल रहता है।

बेशक देश में बढ़ती आबादी के मद्देनजर सीवरेज प्रणाली मल मूत्र निपटाने की अंतर्राष्ट्रीय स्तर की सुगम एवं निर्बाध व्यवस्था है। यही व्यवस्था यदि गलत योजना का शिकार हो जाये तो नागरिकों के लिये बड़ी असुविधा का कारक बन जाती है। खुदा न ख़्वास्ता अनियोजित सीवरेज प्रणाली होने के साथ साथ इसके निर्माण में भारी भ्रष्टाचार भी हुआ हो, फिर तो ऐसी योजना को जनता के लिए नासूर ही समझा जा सकता है। ऐसी योजनाएं केवल बारिश ही नहीं बल्कि प्रत्येक ऋतु में बाधित व कष्टदायक रहती हैं। उदाहरण के तौर पर अंबाला सहित अन्य कई शहरों  में बिछाई गयी सीवरेज प्रणाली तो पूरी तरह से फेल हुई दिखाई देती है। यहां कभी-कभी बिना बारिश के ही सीवर लाइन का प्रवाह बाधित हो जाता है। इसमें कई तकनीकी खामियां हैं।

उदाहरण के तौर पर सीवरेज लाइन में ही सड़कों पर बहने वाली नालियों यहाँ तक कि नालों को भी कई जगह जोड़ दिया गया है। आम तौर पर लोगों ने अपने घरों की जल निकासी का पाइप भी सीवर में होल में जोड़ दिया है। परिणामस्वरूप नालियों की प्लास्टिक, कपड़ा, बोतल व अन्य कचरा कबाड़ भी नाली के माध्यम से सीवर पाइप लाइन में चला जाता है। सीवर लाइन के प्रवाह को बाधित करता है। कहीं भी सरकार की ओर से ऐसी व्यवस्था नहीं है कि नाली से सीवर में जाने वाले पानी के साथ बहने वाले कचरे कबाड़ को किसी जाली या बाधा से रोका जा सके।

दूसरी समस्या यह है कि भूतलीय सीवर पाइपलाइन अपेक्षाकृत कम क्षमता वाली बिछाई गयी है। निरंतर बढ़ती आबादी के मद्देनजर इसे आने वाले समय व जरूरत के अनुरूप बनाना चाहिए था। परन्तु अफसोस तो यह कि जिस समय इसे बिछाया जा रहा था, तभी से इस बात की चर्चा जोरों पर थी कि जिस ढंग से इस योजना को कार्यान्वित किया जा रहा है, उसे देखकर इस सीवर प्रणाली का सफल होना मुश्किल ही लगता है। जगह जगह मैनहोल पर लगे कवर आपको टूटे फूटे मिल जायेंगे। कई टूटे ढक्कनों के लोहे के रिंग बाहर निकले होते हैं। कई मैनहोल के पास गड्ढे होते हैं। इनमें कई बार स्कूटर व साइकिल सवार गिरकर घायल हो चुके हैं।

तमाम जगहों पर तो सीवर मैनहोल कवर और सड़क के लेवल में इतना अंतर है कि दुर्घटना हो जाती है। कहीं मैनहोल कवर जमीन की सतह से ऊपर निकला है तो कहीं लेवल से इतना नीचे है कि वहां गड्ढा सा बना हुआ है। इसी तरह मुख्य मार्गों पर पड़ने वाले वे बड़े मैनहोल जिनमें कई दिशाओं की सीवर पाइप लाइन जुड़ती है वह तो कई जगह पर पूरा जंक्शन बॉक्स ही बैठा मिलता है। नतीजतन वहां बड़ा गड्ढा बन जाता है। इसकी मरम्मत का काम भी आसान नहीं। नियमानुसार इस जगह नये जंक्शन के निर्माण का नये सिरे से टेंडर होता है। जब तक वह सरकारी औपचारिकताएं पूरी नहीं होतीं तब तक राहगीर,ट्रैफिक सभी परेशानी में पड़े रहते हैं।इसके अतिरक्त सबसे बड़ी बात यह कि तब तक उस क्षतिग्रस्त स्थान से जुड़ने वाली सभी दिशाओं की सीवर लाइंस ओवर फ़्लो रहती हैं।

निर्मल रानी

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