अभी तक भाजपा लोकसभा या किसी राज्य में चुनाव की तारीखें घोषित होने के बाद ही अपने उम्मीदवारों की घोषणा करती थी। इस रणनीति के पीछे कारण यह माना जाता था कि समय कम होने की वजह से गुटबाजी नहीं हो पाती थी। जिसको टिकट नहीं मिलता था, समय कम होने की वजह से मन मसोस कर रह जाता था। लेकिन इस बार पुरानी रणनीति के ठीक विपरीत कदम भाजपा ने उठया है। भाजपा ने मध्य प्रदेश के लिए 30 और छत्तीसगढ़ के लिए 21 प्रत्याशियों की सूची जारी की है। जिन-जिन सीटों के लिए भाजपा ने पहले से ही प्रत्याशी घोषित किए हैं, वे काफी चुनौती पूर्ण मानी जाती हैं। पिछले विधानसभा चुनावों में इन सीटों पर भाजपा प्रत्याशियों का प्रदर्शन बेहतर नहीं रहा है।
राजनीतिक हलकों में माना जा रहा है कि पहले नाम घोषित होने से प्रत्याशी अपने इलाकों में जनसंपर्क अभियान अभी से शुरू कर सकते हैं। वे अन्य विपक्षी दलों की अपेक्षा अपना चुनाव प्रचार अभी से शुरू करके बढ़त बना सकते हैं। यदि ऐसा होता है, तो मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में भाजपा बाजी मार सकती है। ऐसा भाजपा के वरिष्ठ नेताओं का सोचना है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में ही नहीं राजस्थान में भी भाजपा की स्थिति अच्छी नहीं है। मध्य प्रदेश में भाजपा तो तीन गुटों में बंटी हुई दिखाई देती है। वहां आम जनता में कहा जाता है कि एक भाजपा में तीन भाजपा हैं।
शिवराज भाजपा, महाराज भाजपा और नाराज भाजपा। मध्य प्रदेश भाजपा में शिवराज के समर्थक जहां सिंधिया समर्थकों पर आए दिन हमला करते रहते हैं, तो शिवराज सिंह से नाराज भाजपा नेता अलग अपनी ढफली बजा रहे हैं। ज्योतिरादित्य सिंधिया की स्थिति भी भाजपा में बहुत अच्छी नहीं है। भाजपा के कुछ नेता सिंधिया को भाजपा में लेने के पक्षधर ही नहीं थे, लेकिन केंद्रीय नेतृत्व के दबाव में उनका स्वागत करना पड़ा। वहीं सिंधिया गुट को भी लग रहा है कि उन्हें उतना सम्मान नहीं मिल रहा है, जितना वे चाहते थे।
इस वजह से महाराज गुट भी काफी असंतुष्ट है। छत्तीसगढ़ की पाटन सीट पर मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के खिलाफ उनके भतीजे और दुर्ग से सांसद विजय बघेल को उतारकर भाजपा ने घेरने की कोशिश कर रही है, लेकिन यहां उसे सफलता मिल पाएगी, ऐसा लग नहीं रहा है। पिछले विधानसभा चुनाव में छत्तीसगढ़ की 90 सीटों में से सिर्फ 15 सीटों पर ही उसे जीत हासिल हुई थी।
मध्य प्रदेश में भी भाजपा 230 सीटों में से 109 सीटें ही जीत सकी थी। सरकार बनाने लायक भी आंकड़ा नहीं था। वह तो जोड़तोड़ की गणित से उसने मध्य प्रदेश में सरकार बना ली थी। राजस्थान में भी वसुंधरा राजे सिंधिया को चुनाव प्रबंधन समिति में शामिल न करके भाजपा ने महारानी सिंधिया को दरकिनार करने की कोशिश की है। यहां भी भाजपा को सिंधिया समर्थकों के क्रोध का सामना करना पड़ेगा। इन राज्यों में फिलहाल भाजपा को कड़ा मुकाबला होने की आशंका है।