भारतीय शास्त्रीय संगीत के प्रतिष्ठित तबला वादक जाकिर हुसैन का निधन हो गया। 73 साल की उम्र में उनका निधन सैन फ्रांसिस्को के एक अस्पताल में हुआ। हुसैन लंबे समय से इडियोपैथिक पल्मोनरी फाइब्रोसिस से जूझ रहे थे। और सोमवार सुबह ही उनके निधन की ख़बर आई।
उनके परिवार ने इस दुखद ख़बर की पुष्टि करते हुए कहा, “जाकिर हुसैन का योगदान भारतीय संगीत में अमूल्य रहेगा। वह न केवल एक महान कलाकार थे, बल्कि एक प्रेरणास्त्रोत भी थे।” पीढ़ीयों तक उन्होंने संगीत की पूजा की है। और कला के क्षेत्र में अपना अद्वितीय योगदान दिया है। उनके निधन की ख़बर आते ही संगीत जगत में शोक की लहर दौड़ पड़ी।
जाकिर हुसैन के निधन से भारतीय शास्त्रीय संगीत जगत को हुआ अपूरणीय नुकसान
भारत के प्रसिद्ध तबला वादक जाकिर हुसैन का निधन हो गया। 73 साल की उम्र में उनका निधन एक बड़ी क्षति है। हुसैन का योगदान भारतीय शास्त्रीय संगीत को अंतरराष्ट्रीय मंच पर पहचान दिलाने में अहम रहा। तबला बजाने का होना उन्हें अपने पिता से मिला था। बचपन से ही कला के मुरीद ज़ाकिर हुसैन
उनकी कला, विशेष रूप से तबला वादन, दुनिया भर में सराही गई। सिर्फ देश ही नहीं विदेश में भी उन्होंने अपने हुनर का लोहा मनवाया। उनके जाने से संगीत जगत ख़ामोश हो गया है।
भारतीय संगीत के शिखर पुरुष ज़ाकिर हुसैन
जाकिर हुसैन, भारतीय तबला वादन के अनमोल रत्न, 3 साल की उम्र से उन्होंने तबले का साथ थामा। आज दिल की बीमारी के कारण अब वह हमारे बीच नहीं रहे। उनका निधन 73 वर्ष की आयु में हुआ। जाकिर हुसैन के अद्वितीय संगीत कौशल ने उन्हें पांच ग्रैमी अवॉर्ड्स सहित कई अंतरराष्ट्रीय सम्मान दिलाए।
उनकी विरासत हमेशा भारतीय संगीत के इतिहास में जीवित एवं अतुल्नीय रहेगी।
करियर में हासिल किए 3 ग्रैमी अवॉर्ड्स
ज़ाकिर हुसैन, जिन्हें तबला वादन की दुनिया में सम्राट के रूप में जाना जाता है, का जाना संगीत प्रेमियों के लिए सबसे बड़ी क्षति है। 3 साल की उम्र से ही उन्होंने तबला सीखना शुरू कर दिया था। अपने करियर में उन्हें 3 ग्रैमी अवार्ड से नवाजा गया साथी पद्म भूषण पद्म विभूषण से भी उन्हें सम्मानित किया गया।
हुसैन ने 12 साल की उम्र में अपने करियर की शुरुआत की थी और भारतीय और पश्चिमी संगीत को जोड़ने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
कैसे मिली उस्ताद की उपाधि
ज़ाकिर हुसैन का निधन संगीत प्रेमियों के लिए एक दुखद पल है। उन्होंने भारतीय शास्त्रीय संगीत को न केवल समृद्ध किया, बल्कि उसे दुनिया भर में एक नई पहचान दी। उनकी कला से प्रभावित होकर पंडित रवि शंकर ने उन्हें उस्ताद की उपाधि दी थी। उनका निधन भारतीय संगीत के इतिहास में एक महत्वपूर्ण अध्याय का समापन है।
हुसैन के योगदान से भारतीय संगीत को वैश्विक मंच पर जो सम्मान मिला, वह हमेशा याद किया जाएगा। और वह हमेशा हमारे दिल में ज़िंदा रहेंगे, अमर रहेंगे।