वाणिज्य मंत्रालय आगामी बजट में एक महत्वपूर्ण योजना का विस्तार करने का अनुरोध कर सकता है। यह योजना है ब्याज समानीकरण योजना (Interest Equalization Scheme) जो निर्यातकों को मदद करती है। इस योजना के तहत निर्यातक अपने रुपया निर्यात ऋण पर कम ब्याज दरों का लाभ उठा सकते हैं। मंत्रालय का उद्देश्य निर्यात को बढ़ावा देना और देश की अर्थव्यवस्था को सशक्त बनाना है।
यह योजना 1 अप्रैल 2015 से लागू की गई थी और इसकी अवधि पहले 31 मार्च 2020 तक निर्धारित की गई थी। लेकिन इसे बाद में बढ़ाकर 31 दिसंबर 2024 तक कर दिया गया था। इस योजना के अंतर्गत, खासकर छोटे और मझोले उद्यमों (MSMEs) को प्रतिस्पर्धी दरों पर निर्यात ऋण मिलने में मदद मिलती है। यह योजना निर्यात से पहले और बाद में रुपया निर्यात ऋण पर ब्याज पर सब्सिडी देती है।
निर्यातकों का कहना है कि इस योजना से उन्हें वैश्विक बाजारों में प्रतिस्पर्धा करने में काफी मदद मिलती है, खासकर जब दुनिया भर में आर्थिक हालात चुनौतीपूर्ण हैं। भारतीय निर्यातकों को अगर कम ब्याज दर पर ऋण मिलता है तो वे अपने उत्पादों को विदेशों में सस्ती दरों पर बेच सकते हैं, जिससे उनकी प्रतिस्पर्धात्मक क्षमता बढ़ जाती है।
निर्यातकों के संगठन फियो (Federation of Indian Export Organizations) के अध्यक्ष अश्विनी कुमार ने कहा कि चीन में ब्याज दरें दो से तीन प्रतिशत हैं, जो उनके निर्यातकों के लिए काफी सहायक साबित होती हैं। उन्होंने सरकार से इस योजना का विस्तार करने की अपील की है ताकि भारतीय निर्यातक भी वैश्विक प्रतिस्पर्धा में आगे रह सकें।
वाणिज्य मंत्रालय और सरकार निर्यातकों के इस सुझाव पर विचार कर सकती है और योजना को पांच और वर्षों तक जारी रखने का निर्णय ले सकती है। भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) और विदेश व्यापार महानिदेशालय (DGFT) इस योजना के संचालन और निगरानी में शामिल हैं।
कुल मिलाकर, यह योजना भारतीय निर्यातकों के लिए एक महत्वपूर्ण सहायता प्रदान करती है, जो वैश्विक बाजार में भारत के निर्यात को बढ़ावा देने में मदद करती है। सरकार का इस योजना को बढ़ाने का निर्णय निर्यातकों के लिए राहतकारी साबित हो सकता है और भारतीय अर्थव्यवस्था को भी मजबूती मिल सकती है।