सरकार को स्थानीय विनिर्माण को बढ़ावा देने के लिए आगामी बजट में कुछ विशेष उद्योगों में इस्तेमाल होने वाले कच्चे माल (इनपुट) पर सीमा शुल्क में कटौती करनी चाहिए। कर विशेषज्ञों ने यह सुझाव दिया है, ताकि चिकित्सा उपकरण, इलेक्ट्रॉनिक्स सामान, और फुटवियर उद्योग जैसे प्रमुख क्षेत्रों को प्रोत्साहन मिल सके।
डेलॉयट इंडिया के भागीदार (अप्रत्यक्ष कर) हरप्रीत सिंह का मानना है कि आगामी 2025-26 के बजट में सीमा शुल्क संबंधित प्रमुख मांगें युक्तिसंगत दरों, व्यवस्था को सरल बनाने और मुकदमेबाजी और विवाद प्रबंधन के उपायों को लेकर होंगी। सिंह ने पीटीआई-भाषा से कहा, “एक फरवरी को संसद में पेश किए जाने वाले बजट में हम उम्मीद करते हैं कि सरकार इलेक्ट्रॉनिक्स, घरेलू उपकरणों, स्वास्थ्य सेवा उत्पादों और फार्मास्युटिकल्स के कच्चे माल पर शुल्क घटाएगी, ताकि इन क्षेत्रों में विनिर्माण को बढ़ावा दिया जा सके।”
उन्होंने यह भी कहा कि जुलाई 2024 में पेश किए गए बजट में सीमा शुल्क युक्तिकरण पर प्रस्तावित कदमों के तहत, सरकार को उन क्षेत्रों में जहां करों को तर्कसंगत किया जा सकता है, सुधार लाना चाहिए। इनमें स्वास्थ्य सेवा, चिकित्सा उपकरण, बड़े इलेक्ट्रॉनिक सामान जैसे रेफ्रिजरेटर, एसी, इलेक्ट्रॉनिक्स, जूते और खिलौने शामिल हैं।
वित्त वर्ष 2024-25 के बजट में कारोबार सुगमता के लिए सीमा शुल्क ढांचे की व्यापक समीक्षा की घोषणा की गई थी। इसमें कहा गया था कि अगले छह महीने में सीमा शुल्क ढांचे की समीक्षा की जाएगी, जिससे कारोबार करना आसान होगा और शुल्क ढांचे तथा विवादों को कम करने में मदद मिलेगी। इसके तहत विभिन्न उत्पादों के लिए अलग-अलग सीमा शुल्क स्लैब लाने पर विचार किया जा सकता है, ताकि इस प्रक्रिया को और अधिक पारदर्शी और सरल बनाया जा सके।
प्राइस वॉटरहाउस एंड कंपनी एलएलपी के प्रबंध निदेशक अनुराग सहगल का कहना है कि सरकार उत्पादों की मूल्य शृंखला के आधार पर अलग-अलग सीमा शुल्क स्लैब ला सकती है। उन्होंने कहा, “वस्तुओं को मूल्य वर्धित/प्राथमिक और कच्चे माल/मध्यवर्ती के रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है, और उसी के अनुरूप स्लैब तय किए जा सकते हैं।”
नांगिया एंडरसन एलएलपी के कार्यकारी निदेशक-अप्रत्यक्ष कर शिवकुमार रामजी का मानना है कि सीमा शुल्क ढांचे में सुधार की आवश्यकता है। उनका कहना है, “वर्तमान में दरों की बहुलता को कम करने की आवश्यकता है, और वर्गीकरण विवादों को कम करने के लिए दरों को सुसंगत बनाना जरूरी है।”
ग्रांट थॉर्नटन भारत के भागीदार मनोज मिश्रा ने सीमा शुल्क विवादों के समाधान के लिए माफी योजना की आवश्यकता पर जोर दिया। उनका कहना है कि वर्तमान में लगभग 50,000 करोड़ रुपये सीमा शुल्क विवादों में फंसे हुए हैं, और माफी योजना से इन विवादों का समाधान हो सकता है, जिससे कारोबार को सुगम बनाया जा सके।
अंत में, कर विशेषज्ञों का यह भी कहना है कि सरकार को उन उद्योगों को प्राथमिकता देनी चाहिए, जो भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए महत्वपूर्ण हैं और जिनमें वैश्विक प्रतिस्पर्धा को देखते हुए स्थानीय विनिर्माण को प्रोत्साहित किया जा सकता है। इससे देश के रोजगार, उत्पादन और निर्यात को बढ़ावा मिलेगा।