– महेन्द्र प्रसाद सिंगला
दिल्ली में विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैं। यह चुनाव त्रिकोणीय है, जो आप-कांग्रेस-भाजपा के मध्य है। सभी दल अपनी-अपनी जीत सुनिष्चित करने में लगे हुए हैं, अपनी-अपनी जीत के दावे-प्रतिदावे किए जा रहे हैं। चुनावी चर्चा-परिचर्चा और वाद-प्रतिवाद जोरों पर है। चुनावी माहौल गर्म और हंगामापूर्ण है। यूॅं तो दिल्ली अपने आप में एक पूर्ण राज्य भी नहीं है, बल्कि एक केन्द्र षासित प्रदेष ही है, लेकिन इसके होने वाले चुनाव बहुत बडे और विषेश हैं, क्योंकि दिल्ली देष की राजधानी भी है। यूॅं तो सभी चुनाव महत्त्वपूर्ण होते हैं, लेकिन कुछ चुनावों का देष की राजनीति में विषेश महत्त्व और प्रभाव होता है और दिल्ली विधानसभा के चुनाव इसी श्रेणी में आतेे हैं।
यदि हम दिल्ली में हुए विधानसभा के पिछले तीन चुनावों -2013, 2015 तथा 2020- तथा वहॉं की राजनीति की बात करें, तो उनकी स्थिति बहुत ही विचित्र और अदभुत कही जाऐगी। दिल्ली में 2013 तक मुख्य रूप से केवल दो पार्टियॉं -कांग्रेस और भाजपा- ही राजनीति में रही हैं। 2013 तक षीला दीक्षित के नेतृत्व में लगातार 15 वर्शों तक कांग्रेस का षासन रहा। वैसे तो तब भाजपा, कांग्रेस के विरोध में सत्ता की स्वाभाविक ही प्रबल दावेदार व प्रतिद्वंदी पार्टी थी, लेकिन 2013 में अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी के चुनावों मेें उतरने से चुनावी मुकाबला त्रिकोणीय हो गया। केजरीवाल कांग्रेस षासन के भ्रश्टाचार के विरोध में बडे आक्रामक अंदाज में चुनावों में उतरे और सत्ता के लिए प्रबल दावेदारी ठोक दी।
इसका प्रभाव यह रहा कि चुनाव परिणामों में भाजपा बहुमत में तो नहीं आ सकी, लेकिन सबसे बडे दल के रूप में उभरने में जरूर सफल रही। आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस को हराने में ही बडी भूमिका नहीं निभाई, बल्कि भाजपा को भी सत्ता में आने से रोक दिया। 70 सदस्यी विधानसभा में भाजपा 32 तथा आप 28 सीटें जीतने में सफल रहीं, तो कांग्रेस मात्र आठ सीटों तक ही सिमट कर रह गई। त्रिषंकु विधानसभा में कोई भी दल अकेले सरकार बनाने में समर्थ नहीं था। कहा जा सकता है कि उन चुनावों में भाजपा ने आप तथा कांग्रेस को तथा आप ने कांग्रेस को पराजित किया था। उस समय तीनों दलों की जो राजनीतिक स्थिति तथा संबंध थे, उसमें सरकार बनने की कहीं कोई नैतिक और आदर्ष स्थिति और संभावना नहीं थी, लेकिन कांग्रेस ने अप्रत्यासित रूप से आप को समर्थन देकर दिल्ली में आप की सरकार बनवा दी और केजरीवाल दिल्ली के मुख्यमंत्री बन गए। यह कांग्रेस का आत्मघाती कदम था। कांग्रेस ने भाजपा के अंधविरोध में आप को समर्थन देकर केजरीवाल को दिल्ली का मुख्यमंत्री तो बनवा दिया, लेकिन वह स्वयं राजनीतिक अंधकूप में जा गिरी, जिससे निकलने में वह सफल नहीं हो पा रही है और न ही निकट भविश्य में उसमें से निकलने की कोई संभावना नजर आती है। कांग्रेस का समर्थन लेकर केजरीवाल तो मुख्यमंत्री बन गए, लेकिन केजरीवाल को समर्थन देकर आखिर कांग्रेस को क्या मिला? ऐसा करके निष्चित ही कांग्रेस ने एक अपरिपक्व राजनीतिक पार्टी होने का ही परिचय दिया था।
लगातार तीन बार चुनाव जीतकर, निर्विघ्न 15 साल तक सत्ता में बने रहने के बाद चुनावों में पराजय कोई बहुत बडी बात (पराजय) नहीं मानी जाऐगी। बेषक 2013 के चुनावों में कांग्रेस को भाजपा और आप ने हराया था, लेकिन कांग्रेस ने आप को सरकार बनाने के लिए समर्थन देकर 2015 और 2020 में भी अपनी पराजय की इबारत लिख दी थी, जिसे वह स्वयं न तो पढ पाई और न ही समझ पाई। 2015 और 2020 के चुनावों में कांग्रेस की घोर पराजय उसी समर्थन की परिणति थी। अपनी स्थिति को देखते हुए, जहॉं उसे तटस्थ और खामोष रहना चाहिए था, वहॉं वह अनावष्यक रूप से मुखर और सक्रिय हो गई। इस संबंध में कह सकते हैं कि भाजपा और आप ने कांग्रेस को हराया था, लेकिन स्वयं कांग्रेेस ने कांग्रेस को बुरी तरह हराया था। 2015 और 2020 के चुनाव परिणाम इस बात के स्पश्ट प्रमाण हैं। यदि यह कहा जाए कि आज आप, कांग्रेस की कीमत पर ही सत्ता में है, तो गलत नहीं होगा। कटु सत्य तो यह है कि इन चुनावों में भी कांग्रेस की स्थिति तीसरे स्थान पर ही रहने की संभावना अधिक है और कांग्रेस को इस सत्य को स्वीकार कर भी लेना चाहिए। इसके साथ ही उसे यह बात भी समझ लेनी चाहिए कि भाजपा की जीत में कांग्रेस की छोटी हार निहित है, जबकि आप की जीत में कांग्रेस की बडी हार छिपी हुई है, क्योंकि आप की जीत और भाजपा की हार में कांग्रेस की जीत का मार्ग अवरूद्ध होगा, जबकि भाजपा की जीत और आप की हार से ही भविश्य में कांग्रेस की जीत का मार्ग प्रषस्त होगा।
2013 से ही कांग्रेस और आप के संबंध बहुत ही अजीबो-गरीब और अदभुत स्थिति में रहे हैं। बेषक दिल्ली में तीनों ही दल एक दूसरे के विरोधी हैं। इन चुनावों में कांग्रेस की स्थिति बहुत ही विचित्र है। वह समझ नहीं पा रही है कि उसकी मुख्य प्रतिद्वंदी पार्टी कौन सी है – भाजपा या फिर आप। चुनाव प्रचार में आरोप-प्रत्यारोप के दौर से तो लगता है कि कांग्रेस, आप के विरूद्ध अधिक आक्रामक है। षायद इसीलिए आम आदमी पार्टी, कांग्रेस को भाजपा की ‘बी’ टीम बताने और जताने में लगी हुई है। इससे यह भी सिद्ध होता है कि कांग्रेस और आप के संबंध बहुत ही विरोधाभाशी भी हैं। बडी अजीब बात है कि जिस कांग्रेस को हराकर और फिर उसी के सहयोग से सरकार बनाने वाली आप, कांग्रेस को ही भाजपा की ‘बी’ टीम बताने में किसी भी प्रकार का कोई भी संकोच नहीं करती है। लोकसभा चुनावों से पूर्व बने विपक्षी गठबंधन में दोनों ही -कांग्रेस और आप- सहयोगी दल बनते हैं, 2024 के लोकसभा चुनावों में पंजाब में एक दूसरे के विरूद्ध चुनाव लडते हैं तथा दिल्ली लोकसभा का चुनाव मिलकर लडते हैं और अब 2025 में दिल्ली विधानसभा के चुनावों में एक दूसरे के विरूद्ध आक्रामक हैं, जबकि एक बार तो दिल्ली चुनावों में भी दोनों के मिलकर चुनाव लडने के प्रयास हुए थे, लेकिन जो अंततः सफल नहीं हो सके थे। अब सवाल यह भी उठ रहा है कि क्या कांग्रेस इन चुनावों के प्रति गंभीर भी है या नहीं। ऐसी स्थिति में तो दोनों दलों के राजनीतिक संबंधों की समीक्षा करने में कोई राजनीतिक पंडित और चुनावी विष्लेशक भी दिग्भ्रमित हो जाएगा।
यदि दिल्ली के चुनावी परिदृष्य की बात की जाए, तो मुख्य मुकाबला भाजपा और आप में ही दिखाई देता है, लेकिन यह निष्चित है कि इसके बावजूद कांग्रेस की भूमिका भी बहुत ही महत्त्वपूर्ण होगी, क्योंकि भाजपा या आप बहुमत की सरकार बनाएगी या फिर त्रिषंकु विधानसभा होगी, यह सब चुनावों में कांग्रेस के प्रदर्षन पर अधिक निर्भर करेगा। निष्चित ही कांग्रेस तीसरे स्थान पर ही रहेगी, लेकिन पिछले चुनावों की तुलना में अवष्य ही बेहतर स्थिति में होगी। यह देखने वाली बात होगी कि वह कितने वोट प्राप्त कर पाती है और कितनी सीटें जीत पाने में सफल होती है, लेकिन इस सबके बावजूद यह कहा जा सकता है कि इन चुनावों में कांग्रेस ने आप से समझौता न करके एक समझदारीपूर्ण कदम अवष्य उठाया है।