-नम्रता पुरोहित कांडपाल
मानसून में बादल ऐसे मेहरबान हुए हैं, कि शांत होने का नाम नहीं ले रहे। आज भी दिल्ली एनसीआर में रिमझिम फुहारें गिर रहे हैं, धुप खिलती है, चली जाती है, बारिश रुक-रुक के आती है और भिगो कर चली जाती है, मौसम सुहाना तो लगता है लेकिन जब बरसात का पानी सड़कों पर पसरता है और फिर गली मोहल्लों का रुख करता है तो चिंताएं बढ़ने लगती हैं। बस कुछ ऐसे ही हालात इन दिनों देश की राजधानी दिल्ली में बने हुए हैं।
लगातार हुई बारिश के बीच हरियाणा ने यमुना में जो पानी छोड़ा है उससे दिल्ली में यमुना खतरे के निशान पर बहने लगी है। हालात नियंत्रण में रहे, इसके लिए दिल्ली सरकार मुस्तैद तो है, लेकिन बेरोक बारिश और फिर इसका हर तरफ जमा होता पानी स्थिति को ऐसे बेकाबू करता है कि चौकसी भी काम नहीं आती। खासतौर पर तब, जब ऐसे मुद्दों पर राजनीतिक खींचतान होने लगे। फिलहाल दिल्ली ऐसी ही परिस्थितियों से दो-चार हो रही है, एक तरफ दिल्ली सरकार के लिए यमुना का खतरे के निशान पर बहना सिरदर्द बना हुआ है तो दूसरी तरफ सियासत चल रही है।
दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल का कहना है कि इतनी ज्यादा बारिश बरदाश्त करने के लिए दिल्ली का सिस्टम डिजाइन नहीं है। हालांकि उन्होंने लोगों को भरोसा भी दिलाया है कि एक्सपर्ट के मुताबिक दिल्ली में बाढ़ की स्थिति नहीं बनेगी। वहीं स्थिति का जायजा लेने बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों का ब्यौरा कर रहे दिल्ली के उपराज्यपाल वीके सक्सेना का कहना है कि दिल्ली की आबाद 2014 के बाद से 50 लाख के करीब बढ़ी है, लेकिन बढ़ी हुई आबादी के हिसाब से सीवर लाइनें और पानी की निकासी के लिए काम नहीं हुआ। इसके लिए पहले से तैयारी करनी चाहिए थीं।