उत्तर प्रदेश के गौतमबुद्ध नगर जिले के नोएडा सेक्टर—31 स्थित डी-5 के बगल में स्थायी लैंडमार्क पानी की टंकी आज भी वैसा की वैसी ही है। उसी स्थान पर निठारी गांव भी गवाह स्वरूप मौजूद है। इसी जगह पर वर्ष 2006 में हुए निठारी कांड में 19 लोगों की हत्या का पता चला था। इसमें पुलिस की छानबीन से पता चला था कि इस हत्याकांड में मोहिंदर सिंह पंढेर और सुरेंद्र कोली नामक कोठी के मालिक और नौकर दोषी हैं। पुलिस ने अपनी जांच में पाया था कि काम के बहाने नबालिग लड़कियों को कोठी में बुलाया जाता था और उनके साथ सुरेंद्र कोली और मोहिंदर सिंह पंढेर पहले दुष्कर्म करता था, फिर उसकी हत्या करके नरभक्षी सुरेंद्र कोली उसका मांस खाता था। उसके बाद बच्चियों के शरीर को खंड—खंड में काटकर बगल में बहते गंदे नाले में फेंक देता था।
ऐसा एक दो के साथ नहीं, कई लड़कियों के साथ हुआ और जिसने प्रदेश ही नहीं, देश में तहलका मचा दिया। अंत में तथाकथित अपराधियों को अदालत में पेश करके पुलिस ने अपनी पीठ थपथपाते हुए हत्या और दुष्कर्म के 14 मामले में सुरेंद्र कोली को फांसी की सजा तथा पंढेर को दो बच्चियों की हत्या के मामले में फांसी की सजा सुनाई गई। रहस्यमय ढंग से की गई इस हत्याकांड का जब 2006 में खुलासा हुआ था, तो पूरा देश स्तब्ध रह गया था। जोर-शोर से सरकार ने इसकी जांच के आदेश दिए थे। आज भी जब इस रास्ते से आप गुजरेंगे, तो आपके शरीर में झुरझुरी सी महसूस होगी और अचानक आपकी नजर पानी की उस टंकी पर चली जाएगी जिसके नीचे वह कोठी है जहां झाड़-झंखाड़ ने उस कोठी को जकड़ लिया है और जिसे लोग अब भुतहा कोठी के नाम से जानने लगे हैं।
बात 2005 से शुरू होती है। बच्चे कोठी नंबर डी-5 के पास क्रिकेट खेल रहे थे। एक बच्चे ने नाले में एक हाथ देखा। हल्ला हुआ, निठारी पुलिस ने उसकी जांच की और उसने इस बात को झुठला दिया कि वह किसी मानव का हाथ था। पुलिस ने उसे जानवर का हाथ करार दिया। दूसरी घटना यह हुई कि 7 मई, 2006 को पायल नामक एक लड़की रिक्शा से काम करने डी-5 पहुंची और यह कहकर अंदर गई कि अंदर से पैसे लाकर देती हूं, लेकिन वह बाहर नहीं निकली। रिक्शा वाले ने घंटी बजाकर पूछा तो अंदर से नौकर (सुरेंद्र कोली) ने बाहर आकर बताया कि वह तो बहुत पहले बाहर चली गई। रहस्य गहराता गया और स्वजन ने उसकी तलाश की, लेकिन बेटी नहीं मिली, तो पुलिस से शिकायत की गई, पर पुलिस ने रिपोर्ट दर्ज नहीं की थी। इसके बाद मनिंदर सिंह पंढेर के घर के पीछे नाले में कई शव मिलने के बाद मामला सामने आया। इस मामले में 19 केस दर्ज किए गए थे, जिनमें से 17 केस अभी पंजीकृत हैं। इनमें से 14 मामलों में अदालत पहले ही फैसला सुना चुकी है।
बता दें कि सुरेंद्र कोली को 12 मामलों से बरी किया गया है। इन मामलों में उसे ट्रायल कोर्ट ने फांसी की सजा सुनाई थी। वहीं, मोनिंदर सिंह पंढेर को जिन दो मामलों में फांसी की सजा मिली थी, उसे भी रद्द कर दिया गया है। दोनों आरोपियों ने सीबीआई कोर्ट के फैसले को हाई कोर्ट में चुनौती दी थी। दरअसल, निठारी कांड में सीबीआई ने 16 मामले दर्ज किए थे। इनमें से सुरेंद्र कोली को 14 मामलों में फांसी की सजा मिल चुकी है, जबकि मनिंदर सिंह पंढेर के खिलाफ छह मामले दर्ज थे। इनमें से तीन मामलों में फांसी की सजा सुनाई गई थी। दो मामलों में वह पहले ही बरी हो गया था। हाई कोर्ट ने कोली को 12 मामलों में बरी किया है, वहीं पंढेर को दो मामलों में बरी किया गया है। हाई कोर्ट ने सीधे तौर पर कोई सबूत और गवाह न होने के आधार पर इन दोनों को बरी किया है।
जिस जुर्म ने देश ही नहीं, पूरी दुनिया में तहलका मचा दिया था, उसमें अपराधी बरी हो जाएं, इससे बड़ा दुर्भाग्य क्या हो सक्तता है और इससे अधिक लचर जांच एजेंसियां और कहां हो सकती हैं। कानून तो सबूत मांगता है, फिर बच्चों की नृशंस हत्या हो और पुलिस सबूत इकट्ठा न कर पाए, फिर सबूतों के अभाव में कोर्ट द्वारा अपराधियों को बरी कर दिया जाए, इससे अधिक जांच की लचर स्थिति और किस देश की हो सकती है। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि जिस तरह से जांच की गई, उससे हम निराश हैं। साक्ष्य इकठ्ठा करने में, आधारभूत मानकों का उल्लंघन किया गया। अदालत ने कहा कि हम यह नहीं कह सकते कि वास्तव में क्या हुआ? यह बात हम जांच पर छोड़ते हैं। इस मामले में निष्पक्ष ट्रायल नहीं हुआ, जिससे सुरेंद्र कोली और पंढेर के अपराध को साबित करने में अभियोजन विफल रहा।
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने तल्ख टिप्पणी करते हुए यह भी कहा कि अभियोजन पक्ष निम्न बिंदुओं पर विफल रहा— ( 1)कंकाल बरामद में निर्धारित प्रक्रिया नहीं अपनाई गई (2) गिरफ्तारी, बरामदगी व इकबालिया बयान में महत्वपूर्ण बिंदु गायब हैं (3) अभियुक्त की मेडिकल जांच नहीं कराई गई (4) 60 दिन तक पुलिस की अभिरक्षा में रखने का कोई जवाब नहीं। फैसला सुनने के बाद उत्तर प्रदेश के पूर्व डीजीपी विक्रम सिंह कहते हैं कि मैं बहुत निराश हूं। इससे ज्यादा सनसनीखेज मामला नहीं हो सकता है। मेरे जीवन में यह पहला आदमखोर केस था, जिसने न जाने कितने लोगों की हत्या कर उसका मांस खाया।
जो भी हो, अब इस निर्णय पर कोई कुछ भी छींटाकशी करे, कितना ही तर्क-वितर्क करे, उन्नीस बच्चों की किसने और किस प्रकार हत्या की, यह रहस्य अब और गहरा गया है। उन अबोध बच्चों का परिवार इंसाफ की बात भूलकर अब इस रहस्य को सुलझाने में जीवनभर उलझे रहेंगे कि आखिर उनके बच्चे को किसने और क्यों मारा, या फिर क्या सचमुच उस भुतहा बंगले का भूत उन्हें आज के युग में भी निगल गया? उन पीड़ित परिवारजन के साथ आज समाज को भी यह सोचने पर विवश होना पड़ेगा कि ऐसा कैसे हो सकता है कि इतनी नृशंस हत्या इतने बच्चों की हो जाए और हत्यारा साफ बचकर निकल जाए? लगभग यही तो हुआ था आरुषि हत्याकांड में । आरुषि की हत्या का रहस्य वर्षों तक नही सुलझा और आज भी हत्याकांड अनसुलझा रहस्य बना हुआ है । यह एक बहुत बड़ा प्रश्नचिह्न है जिसका उत्तर समाज को ढूंढ़ना ही होगा। अन्यथा ऐसी हत्याएं होती रहेंगी और हत्यारा इन्हीं बिंदुओं का सहारा लेकर बच निकलते रहेंगे।
निशिकांत ठाकुर