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एंकरों का हुआ बॉयकॉट टीआरपी को लगी वॉट

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क्या पत्रकारिता के नए युग की शुरुआत होने वाली है। इसलिए इंडिया गठबंधन ने चौदह एंकरों का बॉयकॉट करने का फैसला किया है। इंडिया गठबधंन के बैन करने से क्या देश की राजनीति की दिशा बदल जाएगी? या फिर इलेक्ट्रानिक मीडिया का स्वरूप। इंडिया गठबंधन ने जिस मीडिया को गोदी मीडिया का नाम दे रखा है, क्या उसका अंत हो जाएगा। अगला लोकसभा का चुनाव गोदी मीडिया बनाम इंडिया मीडिया के बीच होगा। ये सवाल नौ साल बाद उठ रहे हैं।

जिन एंकरों के कार्यक्रमों में इंडिया गठबंधन ने अपने प्रवक्ताओं को नहीं जाने को कहा है,जाहिर सी बात है इससे न्यूज चैनलों की टीआरपी गिर जाएगी। इस समय जिन न्यूज एंकरों के शो को बॉयकॉट किया गया है, वो एंकर भारी नाराज हैं। जैसा कि न्यूज एंकर रुबिका लियाकत ने इंडिया गठबंधन के बहिष्कार की लिस्ट में अपना नाम पर होने पर लिखा है, इसे बैन करना नहीं, डरना कहते हैं।

सवाल यह है कि दिल्ली में शरद पवार के घर पर हुई बैठक के बाद चौदह टीवी एंकरों की सूची क्यों बनी जिनके कार्यक्रम में इंडिया गठबंधन के नेताओं के नहीं जाने की बात कही गयी। इंडिया गठबंधन ने चौदह एंकरो का बॉयकॉट क्यों किया। जबकि मीडिया की ताकत से हर कोई परिचित है। ऐसा पहली बार हुआ है, जब एक राजनीतिक संगठन ने मीडिया के बॉयकॉट का फैसला किया है।

एक कहावत है, किसी की राजनीति को मार देना है तो उसका नाम ही न लो। तो क्या यह मान लिया जाए कि टीवी शो में जब इंडिया गठबंधन का कोई प्रवक्ता नहीं होगा तो बीजेपी की चर्चा नहीं होगी। कोई सियासी बहस नहीं होगा। नतीजा शाम को जो सियासी बहस का बाजार टीवी में दिखता है वो बंद हो जाएगा। यानी चुनाव तक विपक्ष टीवीपर नहीं आएगा। इंडिया गठबंधन का ऐसा फैसला लेने के पीछे वजह साफ है।

टीवी डिबेट शो में एंकर बीजेपी प्रवक्ताओं को ज्यादा समय देते हैं। और पूरा समय मोदी सरकार की तारीफ करते हैं। हैरानी वाली बात है कि एंकर स्वयं बीजेपी का प्रवक्ता बन जाते हैं। सवाल कुछ होता है और बीजेपी प्रवक्ता जवाब कुछ देते हैं,लेकिन एंकर उन्हीं का पक्ष लेते है। चित्रा त्रिपाठी,अंजना ओम कश्यप और रूबिया लियाकत अक्सर ऐसा ही करती है।

टीवी में सार्थक बहस की बजाए सम्प्रदायिक तनाव वाली बातें होती हैं। जैसा कि कांग्रेस प्रवक्ता पवन खेड़ा ने कहा, हर शाम पाँच बजे कुछ चैनलों पर नफरत का बाजार सज जाता है। पिछले नौ साल से यही चल रहा है। अलग-अलग पार्टियों के कुछ प्रवक्ता इन बाजारों में जाते हैं। कुछ एक्सपर्ट जाते हैं। कुछ विश्लेषक जाते हैं। लेकिन सच तो ये है कि हम सब वहां उस नफरत बाजार में ग्राहक के तौर पर जाते हैं।

क्या यह मान लिया जाए कि सन 2014 के बाद से पत्रकारिता का चेहरा बदल गया है। उसे रतौंधी और दिनौधी हो गयी है। इसलिए इंडिया गठबंधन ने नफरती एंकरों की दुकान का बॉयकॉट करने फैसला किया है। गौरतलब है कि 11 मार्च को सुधीर चौधरी के डीएनए प्रोग्राम में एक जिहाद चार्ट दिखाया गया था। जिसमें उन्होंने जिहाद के अलग-अलग रूप बताए थे।

हालांकि इस शो के बाद सोशल मीडिया समेत कई जगहों पर इस कारण उन पर इस्लामिक कट्टरपंथियों और सेकुलरों ने निशाना साधा और उनके खिलाफ कार्रवाई की मांग की थी। उनके खिलाफ कर्नाटक में गंभीर धाराओं में मामला दर्ज हुआ। हाईकोर्ट ने कहा कि, पहली नजर में सुधीर के खिलाफ मामला बनता है। जांच में सही पाया गया तो कार्रवाई होगी।

मीडिया यदि फेक न्यूज के जरिए सत्ता पक्ष की छवि खराब करने की कोशिश करेगा तो उसे लोकतंत्र का निष्पक्ष पाया नहीं माना जा सकता। और यदि मीडिया किसी एक पार्टी के लिए काम करने लगेगा तो बात साफ है कि वह किसी एक पार्टी को खत्म करने की सुपाड़ी ले रखा है। पूंजी का ऐसा खेल देश में पहली बार देखा जा रहा है। सवाल यह है कि चौदह एंकर ही क्यों, और क्यों नहीं?

 इंडिया गठबंधन का मानना है कि ये एंकर लोकतंत्र को खत्म करने का काम कर रहे हैं। इससे इंकार नहीं है कि तमाम चैनलों के भीतर कारपोरेट का पैसा लगा हुआ है। सरकारी विज्ञापनों के लिए वो सरकार का पक्षधर हो गए हैं। एनडीटीवी अडानी का है और नेटवर्क 18 मुकेश अंबानी का। जाहिर सी बात है कि विपक्ष को मीडिया खत्म करने की जो रणनीति बनाई उसके जाल में फंसने से बचने इंडिया गठबंधन ने चुनाव से पहले एंकर के जरिए टीवी चैनल का बॉयकॉट किया है।

रमेश कुमार ‘रिपु’

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