Monday, December 23, 2024
14.1 C
Faridabad
इपेपर

रेडियो

No menu items!
HomeEDITORIAL News in Hindiधर्म और विज्ञान का अंतर्विरोध

धर्म और विज्ञान का अंतर्विरोध

Google News
Google News

- Advertisement -

पूरी दुनिया में धर्म और विज्ञान एक दूसरे के विरोधी माने जाते हैं। कहते हैं कि धर्म के मामले में तर्क की कोई गुंजाइश नहीं होती है, वहीं विज्ञान तर्क पर ही आधारित है। सारा विज्ञान जिज्ञासा और तर्क के ही भरोसे आगे बढ़ता है। उसकी कसौटी ही तर्क, जिज्ञासा और प्रमाण हैं। लेकिन दुनिया भर की बहुसंख्यक आबादी धर्म को ही सत्य मानती है, लेकिन जीवन के हर पल में लाभ वह विज्ञान का ही उठाती है। धर्म और विज्ञान के टकराव की एक बड़ी रोचक घटना हिंदुस्तान में भी हुई थी। वैसे तो प्राचीन काल से लेकर अधुनातन काल तक कई घटनाएं हुई हैं, लेकिन बात करते हैं 1837 में पूरे उत्तर भारत में पड़े अकाल के परिप्रेक्ष्य में। 1837 में समय पर मानसून नहीं आया तो गंगा, यमुना सहित कई नदियां सूख गईं। पूरा उत्तर भारत इसकी चपेट में था। कहते हैं 8 लाख लोगों को यह अकाल निगल गया। लाखों लोग अपना घर द्वार छोड़कर पलायन करने को मजबूर हुए। तब भारत के गवर्नर जार्ज आॅकलैंड हुआ करते थे।

उन्होंने अपने सहयोगियों से इस समस्या का हल निकालने को कहा। इससे पहले भी उत्तर भारत में अकाल पड़े थे, तभी से समस्या का हल खोजा जा रहा था। तब विचार किया गया कि कृत्रिम नहर की बदौलत उत्तर भारत में अकाल को दूर किया जाए। इसके लिए तय हुआ कि हरिद्वार से कानपुर तक 560 किमी नहर बनाई जाए।

लेकिन तत्कालीन ब्राह्मण समाज नहर परियोजना के खिलाफ उठ खड़ा हुआ। ब्राह्मण समाज ने जनमानस को समझाया कि देवी गंगा पर बैराज बनने से हमारे देश के लिए अपशकुन होगा। नहर तक पानी लाने के लिए बैराज बनना जरूरी था।

इसके लिए जिस जगह का चुनाव हुआ था, वह हरिद्वार के हर की पैड़ी के नजदीक स्थित भीमगोड़ा था। कहते हैं कि महाभारत काल में महाबली भीम ने यहां पैर पटका था जिससे गंगा की एक धारा बह निकली थी। ब्रिटिश इंजीनियर प्रोबी थॉमस कॉटली को जमीन के सर्वे और नहर निर्माण का जिम्मा सौंपा गया था। लोग अकाल और भूख के चलते रहे, लेकिन ब्राह्मण समाज नहीं पसीजा तो नहीं पसीजा। कॉटली मानवता की दुहाई देते रहे, बैराज बनाने की इजाजत देने के लिए नाक रगड़ने की हद तक गिड़गिड़ाते रहे, लेकिन कई साल तक इसकी इजाजत नहीं मिली।

कॉटली ने ब्राह्मण और पूरे भारतीय जनमानस के सामने प्रस्ताव रखा कि वह बैराज बनाते समय भीमगोड़ा में एक अच्छा खासा स्थान छोड़ देंगे ताकि गंगा अबाध रूप से हर की पैड़ी तक प्रवाहित होती रहें। उन्होंने हर की पैड़ी पर नए घाट बनाने का आश्वासन तक दिया। कई सालों बाद काफी समझाने-बुझाने के बाद उन्हें हिंदू समाज ने बैराज बनाने की इजाजत दी। गंगा के ऊपर गंगा नहर बनकर तैयार हुई तो 8 अप्रैल 1854 को इसे खोला गया। हरिद्वार से कानपुर तक 560 किमी लंबी नहर में से बाद में 492 किमी की ब्रांचेज और 4800 किमी की छोटी नहरें निकाली गईं। नतीजा यह हुआ कि अकाल खत्म हुआ। लोगों को पीने और कृषि के लिए पानी सुलभ हुआ। बाद में लोगों ने ब्रिटिश इंजीनियर प्रोबी थॉमस कॉटली के प्रति आभार जताया क्योंकि उनकी जो शंकाएं थीं, वे निर्मूल साबित हुई थीं। नहर बनने का लाभ भी सबने उठाया था।

संजय मग्गू

- Advertisement -
RELATED ARTICLES
Desh Rojana News

Most Popular

Must Read

Palwal News:हसनपुर के पूर्व विधायक गिरिराज किशोर कोली का निधन

हसनपुर(Palwal News:) विधानसभा क्षेत्र के पूर्व विधायक गिरिराज किशोर कोली का आज सुबह आकस्मिक निधन हो गया। उनका अंतिम संस्कार आज दोपहर 4 बजे...

srinagar-freezes:श्रीनगर में न्यूनतम तापमान -7 डिग्री, डल झील जमी

सोमवार को(srinagar-freezes:) कश्मीर घाटी में भीषण शीतलहर के चलते डल झील की सतह जम गई। भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (IMD) के अनुसार, शहर में...

Punjab UP:पुलिस चौकी पर बम फेंकने वाले तीन अपराधी मुठभेड़ में मारे गए

उत्तर प्रदेश के (Punjab UP:)पीलीभीत में सोमवार तड़के जिला पुलिस और पंजाब पुलिस की संयुक्त टीम के साथ हुई मुठभेड़ में गुरदासपुर (पंजाब) में...

Recent Comments