कैलाश शर्मा
शादी दो लोगों का नहीं,बल्कि दो परिवारों का बंधन होता है। शादी के बाद कई नए रिश्ते बनते हैं जिनमें सबसे खास होता है सास-बहू का रिश्ता।रिश्ते बनाना जितना आसान होता है,उसे संजो के रखना और जीवन भर निभाना उतना ही मुश्किल होता है। रिश्ते बनते हैं आपसी प्रेम-स्नेह एवं सामंजस्य से। सास और बहू का रिश्ता भी स्नेह,दुलार एवं आत्मीयता से ही टिकाऊ बनता है। यह एक ऐसा रिश्ता है जिसमें जब दोनों आपस में मिल कर रहते हैं तो पूरा परिवार खुशहाल रहता है।
हर रिश्ते की अपनी अहमियत होती है। एक तरफ सास अनुभवी और जीवन के अलग-अलग रंग देख चुकी होती है तो दूसरी तरफ बहू को अभी काफी कुछ सीखना और नए अनुभवों से गुजरना होता है। चूंकि यह गठजोड़ थोड़े बेमेल होता है,इसमें जनरेशन गैप की समस्या भी साथ होती है इसलिए शुरुआती दिक्कतें आना स्वाभाविक है पर इन सबके बावजूद सास-बहू साथ चलना सीख जाएं तो घर का माहौल सकारात्मक रहता है।यहां प्रकृति से हमें सीखना चाहिए कि कैसे नन्हा पौधा पनपता है तो वह एकदम से बड़ा नहीं हो जाता। उसे बड़ा करने के लिए समय-समय पर खाद-पानी की जरूरत पड़ती ही है। यदि आप इसमें लापरवाही करते हैं तो जितने सुंदर फल-फूल की कामना होती है तो वह कैसे पूरी हो सकती है।पहले संयुक्त परिवार होते थे एक ही चौखट के अंदर दादा दादी चाचा चाची ताऊ ताई आदि रहते थे। एक घर में कई सास और उनकी कई बहुएं रहती थीं। सभी एक दूसरे का सम्मान करते थे और प्यार मोहब्बत से रहते थे। आज मजबूरी बस एकल परिवार हो गए हैं। अब एक परिवार में एक सास अपनी दो-तीन बहुयों के साथ रहती है। आपसी तालमेल न होने व रोज रोज की खटपट के चलते कई जगह एक ही घर में सास बहू अलग अलग रहती हैं। ऐसा क्यों हो रहा है। इसका कारण सास बहू में आपस में मधुर सबंध व आपसी तालमेल ना होना और पुरानी व नई विचारधारा/ रहन-सहन में भिन्नता है। घर की खुशहाली के लिए सास बहू में आपसी सामंजस्य व मधुर सबंध होना बहुत जरूरी है। ससुराल में आने के बाद बहू से यह अपेक्षा की जाए कि वह हमारे अनुरूप ढल जाए तो एकदम तो ऐसा नहीं हो सकता। सास को प्यार से उसे समझाकर बताना चाहिए कि यह कार्य तुम्हें किस तरह करना चाहिए। यदि नहीं आता तो बता दें कि यह काम किस तरह होगा। यह समझना बहुत जरूरी है कि जिस घर से बहू ब्याह कर आई, वहां के तौर तरीके अलग होंगे। साफ-सफाई से लेकर रसोई के काम में समयानुसार कार्य प्रणाली में बदलाव तो आएगा ही। खाना बनाने का तरीका अलग अलग होगा तो स्वाद में भी फर्क तो पड़ेगा। धीरे-धीरे सब ठीक हो जाएगा। एक बात जिसकी वजह से सास बहू के सबंधों में कड़वाहट आती है वह यह है कि ससुराल वालों खासकर सास का बहू के मायके वालों के लिए गलत सलत कहना,उलाहना या ताना देना। एक बहू सब कुछ सहन कर सकती है पर अपने मां-बाप व पीहर वालों की बुराई नहीं सुन सकती है। सास को अगर बहू में व उसके पीहर वालों में कोई कमी दिखाई दे रही है तो उसे सोचना चाहिए कि उसने बहू को और उसके घर वालों व उनकी हालात को विवाह से पूर्व भी तो देखा भाला था। आपसी रजामंदी व सबकी राजी खुशी से तो विवाह हुआ था। तब बहू के पीहर वालों की बुराई करना किसी भी प्रकार से सही नहीं है। बहू ससुराल आने पर इतनी जल्दी अपने पीहर का मोह नहीं छोड़ सकती है क्योंकि उसने जन्म से लेकर 22-25 साल पीहर में बिताए हैं। उसको पीहर की याद आनी स्वाभाविक है। अतः वह अपने मां बाप भाई बहनों से मिलने जाने के लिए पीहर जाने की कहे तो उसे भेज देना चाहिए। बच्चे हो जाने और उनके स्कूल जाने पर वैसे भी वह जल्दी पीहर नहीं जा सकती है। एक बात और,बहू के आते ही सारा काम बहू पर नहीं डालकर थोड़ा-थोड़ा काम करने दें। घर के सदस्य भी यथा योग्य प्यार व सम्मान के साथ कोई काम कहेंगे तो बहू भी खुशी से काम करेगी। प्यार से बोलने में और रौब से कड़क कर बोलने में ऊर्जा व समय तो उतना ही खर्च होगा लेकिन प्यार से बोलने में विशेष क्या खर्च होगा? बहू भी अपने कर्तव्य में सास को सम्मान दे और उसे ही अपनी मां के रुप में देखे। यह समझना चाहिए कि बहू के लिए ससुराल में रहन-सहन मायके से अलग होगा ही उसमें बहू धीरे-धीरे ढल जाएगी। बहू को हमेशा बेटी की तरह मानना,उसे प्यार से पुकारना बहू की सारी थकावट को दूर कर देता है। घर की खुशहाली व सबंधों में मधुरता व जिंदगी का आनंद लेने के लिए सास बहू व घर के सभी सदस्यों को अपने व्यवहार में धैर्य संयम और सहनशीलता लाना चाहिए गलती सभी से हो सकती है, यह सभी को मानना चाहिए पौजिटिव सोच रिश्तों के पोषण के लिए टौनिक का काम करती है। एक खुशहाल परिवार के लिए घर में सास को ही सोच समझ के कदम उठाने होते हैं क्योंकि बहु घर में नई होती है| सास पर निर्भर है कि वह बहू में कमी ढुढंने की बजाए कैसे बहु को घर की बेटी बनाये। सास को एक माँ की तरह बहू की तकलीफों या दुखों को सुनना चाहिए और उसे समझना चाहिए। बहू को नए माहौल में ढलने और वहाँ के लोगों की पसंद-नापसंद को समझने का पर्याप्त समय देना चाहिए। करना चाहिए। सास बहू की नोकझोंक में हमेशा बेटा/पति ही सबसे ज्यादा धर्म संकट में होता है। वह ऐसे रिश्ते में बंधा होता है कि किसी एक का पक्ष ले ही नहीं सकता। लिया तो दोनों में से एक का बुरा बन जाता है। अतः ना तो सास को चाहिए कि वह अपने बेटे को बहू के खिलाफ भड़काए और ना बहू अपने पति को सास के खिलाफ भड़काए। बेटे-बहू में किसी बात पर बहस हो तो ऐसे में सास उसका साथ दे जो सही है या दोनों को समझाए। इससे उनके बीच प्रेम बना रहेगा और बहू के मन में सास के प्रति सम्मान बढ़ जाएगा। सास-बहू का व्यवहार पूरे घर को प्रभावित करता है। सास-बहू के रिश्ते में कभी दरार न आ पाए इसके लिए सास व बहू दोनों को समझदारी व धैर्य से रिश्तों को बांधे रखना जरुरी है। बहू को अगर ससुराल में पूरा मान-सम्मान प्यार स्नेह मिलेगा और उसे बेटी समान समझा जाएगा तो वह सुसराल को ही अपना पीहर जैसा समझेगी। उधर बहू को भी यह सोचना होगा कि ससुराल में पीहर जैसी आजादी नहीं मिल सकती है अब वह बहू है अतः उसे भी अपने व्यवहार व कार्य से सभी दिल जीतना होगा। ऐसा होने से ही सास और बहू का मधुर और आत्मीय रिश्ता हमेशा बना रहेगा और घर भी खुशहाल होगा
परिवार की खुशहाली में सास बहू के रिश्ते में मिठास जरूरी
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