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सौ साल बाद मिली ब्रेल लिपि को मान्यता
अशोक मिश्र

फ्रांस के लुइस ब्रेल एक ऐसे व्यक्ति थे जिनकी ब्रेल लिपि को उनकी मौत के ठीक सौ साल बाद पूरी दुनिया ने मान्यता दी। उनके द्वारा छह बिंदुओं पर तैयार की गई ब्रेल लिपि को 1952 में मान्यता मिली, जबकि उनकी मृत्यु 06 जनवरी 1852 को हो गई थी। दरअसल, फ्रांस के कुप्रे गांव में पैदा हुए लुइस ब्रेल जन्म से अंधे नहीं थे। जब वह केवल तीन साल के थे, तो उनके पिता साइमन रेले ब्रेल उन्हें अपने कारखाने में ले जाने लगे। साइमन रेले ब्रेल बढ़ई का काम करते थे और शाही घोड़ों के लिए काठी और जीन बनाया करते थे। खेलते समय एक चाकू लुइस ब्रेल की आंखों में लग गया और उनके पिता ने थोड़ा बहुत उपचार किया, लेकिन बाद में पता चला कि इस चोट में उनकी दोनों आंखें चली गई हैं। वे हमेशा के लिए अंधे हो गए। उन दिनों फ्रांस के पादरी वेलेंटाइन की खूब चर्चा थी। ब्रेल किसी तरह उन तक पहुंचे और उनकी सिफारिश पर रॉयल इंस्टीट्यूट फॉर ब्लाइंड में बारह साल की उम्र में पढ़ने का मौका मिला। उन दिनों फ्रांस की सेना के एक कैप्टन चार्ल्स बार्बर ने अंधेरे में पढ़े जा सकने वाले कूटभाषा की खोज की थी। उनकी कूटभाषा बारह डॉट वाली थी। बुद्धिमान ब्रेल ने आठ डॉट तक लिपि को लाने का सुझाव दिया जिसे उन्होंने स्वीकार कर लिया। लुइस ब्रेल ने इस प्रणाली पर काम करना शुरू किया और आठ साल की मेहनत के बाद सन 1829 में छह डॉट वाली ब्रेल प्रणाली का आविष्कार करने में सफल हो गए। उनकी इस प्रणाली को शिक्षाविदों ने मान्यत नहीं दी, लेकिन दृष्टिहीनों के बीच यह लिपि धीरे-धीरे प्रसिद्ध होने लगी। छह जनवरी 1852 में उनकी मृत्यु के ठीक सौ साल बाद दुनिया भर शिक्षाविदों ने ब्रेल लिपि को स्वीकार किया।

अशोक मिश्र

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