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चार्ल्स डिंकन ने जो भोगा, वही लिखा

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चार्ल्स डिंकन अंग्रेजी साहित्य के महान उपन्यासकार और निबंध लेखक थे। वह विक्टोरियन युग के सबसे बड़े साहित्यकार माने जाते हैं। उन्होंने अपने जीवनकाल में कई सामाजिक आंदोलनों में भी भाग लिया। कहते हैं कि उन्होंने अपने जीवन काल में जो कुछ भी भोगा, उसका उन्होंने अपने उपन्यासों और लघुकथाओं में बड़े सलीके से चित्रण किया। 7 फरवरी 1812 में पैदा हुए चार्ल्स डिंकन के माता पिता बहुत गरीब थे। उनकी मां उनकी शिक्षा के खिलाफ थीं।

वह नहीं चाहती थी कि उनका बेटा पढ़े-लिखे। लेकिन सरकारी विभाग में क्लर्क उनके पिता चाहते थे कि वह खूब पढ़ें लिखे ताकि वह आरामदायक जिंदगी बिता सकें। उन्होंने डिंकन की पढ़ाई के लिए बड़ी रकम उधार ले रखी थी जिसे चुका नहीं पाने की वजह से उनको जेल हो गई। चौथी-पांचवीं तक पढ़े डिंकन को मजबूरन एक कारखाने में पर्ची चिपकाने की नौकरी मिल गई। दिन भर डिंकन वहां काम करते थे और रात में वह निबंध या लघु कथा लिखते थे। लिखने के बाद वह उसे छिपा देते थे ताकि दूसरे उसको पढ़कर मजाक न उड़ा सकें। उनके साथ काम करने वाले एक लड़के ने एक दिन उनका लिखा हुआ निबंध पढ़ा और उस समय प्रकाशित होने वाली एक पत्रिका में भेज दिया।

जल्दी ही उस पत्रिका में डिंकन का निबंध प्रकाशित हुआ। संपादक ने उस निबंध पर अपनी टिप्पणी भी लिखी कि डिंकन अच्छे निबंधकार बन सकते हैं। यह पढ़कर बाद में डिंकन में आत्म विश्वास जागा और उन्होंने तत्कालीन पत्र-पत्रिकाओं ने लिखना शुरू किया। धीरे-धीरे उनका नाम चारों ओर फैल गया। वे निबंध लेखक और उपन्यासकार के रूप में जाने जाने लगे। उन्होंने अपने लेखन से अंग्रेजी साहित्य को समृद्ध कर दिया।

अशोक मिश्र

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