हमेशा आगे बढ़ने से ही मिलती है उपलब्धियां
अशोक मिश्र
जब तक व्यक्ति में सतत आगे बढ़ने की प्रबल आकांक्षा नहीं होगी, वह किसी भी प्रकार की उपलब्धि हासिल नहीं कर पाएगा। किसी स्थान या बिंदु पर ठहर जाने से उपलब्धियां हासिल नहीं होती हैं। सदैव गतिशील रहना ही जीवन है। स्थिरता का नाम जीवन नहीं है। इसलिए कहा गया है कि चरैवेति..चरैवेति यानी सिर्फ चलते रहो। यदि ऐसा करते रहे, तो निश्चित रूप से सफलता हासिल होगी। एक बार की बात है। स्वामी रामकृष्ण परमहंस अपने शिष्यों के साथ बैठे धर्म चर्चा कर रहे थे। उसी समय एक लकड़हारा आया। वह बहुत गरीब दिख रहा था। परमहंस जी उसके मन की बात जान गए, लेकिन अनजान बनकर स्वामी जी ने उससे पूछा, कैसे हो? उस लकड़हारे ने उदास होकर कहा कि स्वामी जी, मैं बहुत परेशान हूं। इतनी मेहनत करता हूं, इसके बावजूद परिवार का पेट पालने लायक नहीं कमा पाता हूं। कई बार तो परिवार को भूखा सोना पड़ता है। स्वामी जी ने कहा कि तुम लकड़ियां कहां काटते हो? उसने कहा कि स्वामी जी, जंगल में। परमहंस जी ने कहा कि थोड़ा आगे बढ़ो। अगले दिन वह जंगल में थोड़ा और आगे जाकर उसने लकड़ियां काटी। वहां चंदन के पेड़ थे। कुछ दिन बाद वह रामकृष्ण परमहंस के पास फिर आया, तो स्वामी जी ने उससे सिर्फ इतना कहा कि और आगे बढ़ो। वह और आगे बढ़ा, तो उसे चांदी की खान मिली। अब वह अमीर हो गया था। फिर स्वामी जी के पास गया, तो उन्होंने फिर वही कहा। इस बार उसे हीरे जवाहरात की खान मिली। अब वह बहुत अमीर हो गया था। एक दिन वह बड़ी श्रद्धा के साथ स्वामी जी के पास पहुंचा, तो स्वामी जी ने समझाते हुए कहा कि हमेशा आगे बढ़ते रहना चाहिए। चाहे वह धर्म का क्षेत्र हो या जीवन का क्षेत्र। यही उन्नति का मार्ग है।
अशोक मिश्र