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किसान और जनता की जागरूकता से ही कम होगा हर तरह का प्रदूषण

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संजय मग्गू
प्रदूषण वैसे तो एक वैश्विक समस्या बनता जा रहा है। लेकिन पिछले दो दशक से भारत में इसने एक गंभीर रुख हासिल कर लिया है। प्रदूषण इतना ज्यादा हो गया है कि लगता है किसी ने सांसों पर पहरा बिठा दिया है। दम घुटता हुआ सा प्रतीत होता है। बच्चे, बूढ़े, जवान, स्त्री-पुरुष सब परेशान हैं। वायु गुणवत्ता सूचकांक तो आकाश छू रहा है। ऐसी स्थिति में सरकार और सुप्रीमकोर्ट तक सारे उपाय करके थक गए हैं, लेकिन हालात बेकाबू होते जा रहे हैं। किसी की समझ में नहीं आ रहा है कि किया क्या जाए? किसान खेतों में धान की पराली जला रहे हैं, नगर निगम कर्मचारी और कुछ लापरवाह लोग सड़कों पर कूड़ा जला रहे हैं। केंद्र और प्रदेश सरकार बार-बार अपील कर रही है, लेकिन बाज नहीं आ रहे हैं। लेकिन, इस बीच एक अच्छी खबर भी आई है। हरियाणा सरकार की अपील का कुछ प्रभाव किसानों पर पड़ता हुआ दिखाई दे रहा है। किसानों का एक छोटा सा ही सही, एक समूह जागरूक हो रहा है। प्रदेश के 83 हजार किसानों ने पराली के निस्तारण के लिए सरकारी पोर्टल पर पंजीकरण कराया है। इससे सात लाख 11 हजार एकड़ फसल पर पराली प्रबंधन हो सकेगा। अभी यह मौका किसानों के पास 31 नवंबर तक है। प्रदेश सरकार पराली प्रबंधन हेतु पंजीकरण कराने वाले किसानों को प्रति एकड़ एक हजार रुपये प्रदान करती है। वहीं मेरा पानी मेरी विरासत योजना के तहत कोई किसान धान की जगह कोई दूसरी फसल बोता है, तो उसे प्रति एकड़ सात हजार रुपये की प्रोत्साहन राशि प्रदान की जाती है। अच्छी बात यह है कि इस बार 33712 किसानों ने 66181 एकड़ खेत में धान की फसल की जगह दूसरी फसल बोने के लिए पंजीकरण कराया है। इस मामले में सन 2018 से अब तक किसानों को 223 करोड़ रुपये की प्रोत्साहन राशि दी जा चुकी है। सरकार गांवों के निकट उन लघु उद्योगों को बढ़ावा दे रही है जिसमें पराली की खपत होने की आशंका है। यह प्रदेश के जागरूक किसान हैं जिनकी संख्या अभी बहुत कम है। अभी बहुत से ऐसे किसान भी हैं जो पराली जलाने से बाज नहीं आ रहे हैं। हालांकि यह भी सही है कि प्रदेश में बढ़ते प्रदूषण के लिए सिर्फ पराली ही जिम्मेदार नहीं है। कल-कारखानों से निकलते कार्बन डाईआक्साइड, विभिन्न धातुओं के छोटे-छोटे कण, कोयले से चलने वाली उद्योग, सड़कों पर बेलगाम दौड़ते डीजल और पेट्रोल चालित वाहनों के धुएं से निकलता कार्बन डाई आक्साइड और शीशा प्रदूषण के लिए जिम्मेदार है। जब तक प्रदेश में जीवाश्म ईंधन का उपयोग होता रहेगा, प्रदूषण से निजात मिलने वाली नहीं है। प्रदूषण की समस्या कोई भी सरकार या व्यवस्था तब तक खत्म नहीं कर सकती है, जब तक आम लोग जागरूक होकर सहयोग नहीं करते हैं।

संजय मग्गू

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