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अमेरिकी समाज को महिला राष्ट्रपति स्वीकार नहीं

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संजय मग्गू
अमेरिका में राष्ट्रपति पद की दौड़ में कमला हैरिस नहीं, बल्कि महिला हार गई। कमला यदि महिला नहीं होतीं तो शायद जीत भी सकती थीं। दुनिया भर के देशों को समानता और मानवाधिकारों की घुट्टी पिलाने वाले अमेरिकी समाज को भला यह कैसे स्वीकार हो सकता था कि कोई महिला उनके देश की राष्ट्रपति बने। उपराष्ट्रपति पद तक पहुंचने वाली कमला हैरिस अमेरिकी इतिहास की पहली महिला रहीं। यही बहुत बड़ी बात थी। किसी महिला को उपराष्ट्रपति पद तक पहुंचने में ही 221 साल लग गए। अमेरिका के 231 साल के इतिहास से सिर्फ दो बार ही महिला राष्ट्रपति पद का चुनाव लड़ पाई हैं। सन 2016 में हिलेरी क्लिंटन और 2024 में कमला हैरिस। इससे पहले जिसने भी राष्ट्रपति पद की दौड़ में शामिल होने की बात सोची भी, तो उस पर या तो अश्लीलता का आरोप लगाकर जेल में डाल दिया गया या फिर पैसे के अभाव में उम्मीदवारी की रेस में ही पिछड़ गई। अमेरिकी समाज में कोई अश्वेत और वह भी महिला राष्ट्रपति पद का चुनाव लड़ने की सोचे, यह और भी असंभव है। सन 1870 में सबसे पहले विक्टोरिया क्लेफिन वुडहल ने राष्ट्रपति चुनाव लड़ने का दावा किया। इक्वल राइट्स पार्टी ने उन्हें अपना उम्मीदवार भी बनाया, लेकिन विरोधियों ने उन पर अश्लीलता का आरोप लगाकर उन्हें जेल में डलवा दिया। सन 1964 में रिपब्लिकन पार्टी मेें मार्ग्रेट चेथ स्मिथ ने उम्मीदवारी का दावा पेश किया, लेकिन पैसे के अभाव में वह भी बहुत आगे तक नहीं जा पाईं। उन्हें अमेरिकी अखबारों ने अगंभीर घोषित करते हुए विरोध किया। सन 1968 में पहली बार न्यूयार्क की सांसद चुनी गईं शर्ली चिसहोम ने सन 1972 में दावा पेश करने का साहस जुटाया, लेकिन एक तो महिला और ऊपर से अश्वेत भला अमेरिकी समाज को कैसे स्वीकार हो सकती थी। सन 1984 में अमेरिकी महिलाओं के विभिन्न संगठनों की मांग पर जेनी फेरारो को उपराष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाया गया, तो उनके प्रतिद्वंद्वी जार्ज बुश के इशारे पर इंटरव्यू के दौरान एक पुरुष टीवी एंकर ने उनसे पूछा कि मिस फेरारो! क्या आप न्यूक्लियर बम का बटन दबा पाएंगी? और अंतत: वही हुआ, जो आज कमला हैरिस का हुआ है। असल में अमेरिकी समाज पूरी तरह पुरुष प्रधान है। सन 1937 में एक सर्वे के दौरान अमेरिका के 64 प्रतिशत लोगों ने माना था कि महिलाएं राष्ट्Ñपति पद के लायक नहीं हैं। खुद को आधुनिक मानने वाले अमेरिकी समाज से बेहतर तो श्रीलंका वाले हैं जिन्होंने सन 1960 में पूरी दुनिया में पहली बार श्रीमती सिरिमावो भंडारनायके को प्रधानमंत्री चुना। सन 1966 में भारत में इंदिरा गांधी पीएम चुनी गईं। इजरायल की पहली महिला प्रधानमंत्री गोल्डा मेयर सन 1969 में चुनी गईं। इंग्लैंड में भी मार्ग्रेट थेचर भी इसके बाद 1979 में चुनी गईं। पाकिस्तान में भी बेनजीर भुट्टो को पीएम बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। दुनिया के सभी लोकतांत्रिक देशों में महिलाएं चुनाव लड़ती हैं और जीतती हैं। पर अमेरिकी समाज को महिला राष्ट्रपति स्वीकार नहीं है।

संजय मग्गू

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