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आंबेडकर के मान-अपमान की नहीं, दलित वोट बैंक की चिंता

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सुमित कुमार
पिछले सप्ताह राज्यसभा में केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह के बयान को लेकर पूरे देश की राजनीति गरमाई हुई है। कांग्रेस और विपक्षी दल इस मामले को लेकर जगह-जगह प्रदर्शन कर रहे हैं। शायद यह पहली बार है, जब भाजपा किसी मुद्दे को लेकर बैकफुट पर है। गृहमंत्री अमित शाह को पहली बार किसी मामले में सफाई देने के लिए प्रेस कांफ्रेंस करनी पड़ी है। वहीं पूरा विपक्ष भीम राव आंबेडकर के कथित अपमान को लेकर केंद्र सरकार और भाजपा पर आक्रामक है। वैसे 25 नवंबर से शुरू हुए संसद के शीतकालीन सत्र से ही सत्ता पक्ष और विपक्ष आमने-सामने है। कभी अडानी मामले को लेकर, तो कभी मणिपुर मुद्दे को लेकर। संसद में रोज शोर-शराबा ही होता रहा और दोनों सदनों की कार्यवाही दस-पंद्रह मिनट बाद स्थगित होती रही। विपक्ष ने संसद नहीं चलने दी, ऐसा सत्तापक्ष का आरोप था। वहीं, केंद्र सरकार संसद चलने नहीं देना चाहती है, वह अडानी और मणिपुर मुद्दे पर जवाब नहीं देना चाहती है, यह विपक्ष का आरोप रहा।
लेकिन इसमें आंबेडकर के अपमान की बात तब आ जुड़ीस जब राज्यसभा में संविधान पर चर्चा के दौरान केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह के मुंह से यह निकल गया कि अभी एक फैशन हो गया है.. आंबेडकर, आंबेडकर, आंबेडकर, आंबेडकर, आंबेडकर, आंबेडकर. इतना नाम अगर भगवान का लेते तो सात जन्मों तक स्वर्ग मिल जाता। पता नहीं, केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने यह बात जानबूझकर निकली थी या भाषण देते समय बेखयाली में मुंह से निकल गया था। कई बार आदमी की मंशा नहीं होती है कहने की, लेकिन बात उसके मुंह से निकल जाती है। इसके बाद संसद के शीतकालीन सत्र के समाप्त होने से एक दिन पहले धक्का-मुक्की कांड हुआ। यह भी एक संयोग था या प्रयोग, कोई नहीं जानता। लेकिन देश की जनता ने यह तमाशा भी देखा। संसद सत्र समाप्त होने के बाद भी यह प्रकरण खत्म होता नजर नहीं आ रहा है।
आंबेडकर के कथित अपमान को लेकर सत्ता पक्ष और विपक्ष के अपने-अपने तर्क हैं, अपने अपने दावे हैं। आंबेडकर के जीवित रहते अपमान करने का आरोप भाजपा कांग्रेस पर लगा रही है, तो कांग्रेस आंबेडकर द्वारा रचित संविधान को खत्म करने का आरोप भाजपा पर लगा रही है। दरअसल, सच तो यह है कि बाबा साहेब आंबेडकर,  आरक्षण और संविधान अब दलित वोट का आधार बन गए हैं। राहुल गांधी और इंडिया ब्लाक ने लोकसभा चुनाव के दौरान संविधान की कॉपी जनसभाओं में लहराकर भाजपा के तीन प्रतिशत वोट बैंक में सेंध लगाने में सफलता हासिल कर ली थी। दो प्रतिशत दलित वोट भाजपा के एनडीए सहयोगियों के हाथ से भी फिसल गए थे। अब सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों दलित वोट बैंक को अपने पाले में लाने की भरपूर कोशिश में लगे हुए हैं। इस मुद्दे को लेकर जहां कांग्रेस नेता राहुल गांधी और पूरा विपक्ष अपने को दलित, संविधान और आंबेडकर के सम्मान के रक्षक बनने की कोशिश में हैं, वहीं भाजपा भी अपने दलितों की सबसे बड़ी हितैषी होने का दावा करती आ रही है। उसके जनाधार का एक बहुत बड़ा वर्ग दलित और ओबीसी ही हंै। यही वजह है कि वह सोशल इंजीनियरिंग की बदौलत अब तक चुनावों में सफलता हासिल करती रही है।
अब इस मामले में बसपा भी कूद पड़ी है। बसपा सुप्रीमो मायावती ने 24 दिसंबर को पूरे देश में इस कथित अपमान को लेकर आंदोलन का ऐलान किया है। पिछले कुछ दशकों से बसपा का जनाधार लगातार कमजोर हुआ है। उत्तर प्रदेश में ही लोकसभा और विधानसभा चुनावों में उसे अपेक्षित सफलता नहीं मिली है। उम्र हो जाने की वजह से राजनीतिक हलके में मायावती भी ज्यादा सक्रिय नहीं रह पाई हैं। चुनावी रैलियों में भी वह अपने समर्थकों को संबोधित करने नहीं जा पाई हैं। इसकी वजह से बसपा का वोट बैंक भाजपा और सपा की ओर खिसकता चला गया। आंबेडकर के कथित अपमान के बाद मायावती को अपने वोट बैंक को हासिल करने का एक सुनहरा मौका दिख रहा है और वह सक्रिय हो उठी हैं।
(यह लेखक के निजी विचार हैं।)

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