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Assembly election: राजनीतिक वादा खिलाफी पर कानूनी कार्रवाई जरूरी

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देश रोज़ाना: विधानसभा चुनाव का समय है। पाँच राज्यों में चुनाव हो रहे हैं। हर दल अपने-अपने तरीके से मतदाताओं को लुभाने के लिए वादे कर रहा है। करना भी चाहिए। वादों में कोई बुराई नहीं, लेकिन वादों के पीछे जो इरादे हैं, उस पर सवाल उठाते रहते हैं। हमने देखा है कि राजनीतिक दल के लोग हाथ में गंगाजल लेकर भी झूठी कसम खा लेते हैं। वादे करते हैं कि हम ऐसा करेंगे, वैसा करेंगे, मगर करते नहीं। पता नहीं हमारे राजनीतिक दल वादे करने के पहले उन वादों पर गहन अध्ययन क्यों नहीं करते हैं। उनको यह विचार करना चाहिए कि हम जो वादे कर रहे हैं, वे वादे क्या सरकार बनने के बाद हम पूर्ण कर सकेंगे? क्या हम उन वादों को पूरा करने के लिए उतने वित्तीय संसाधन जुटा सकेंगे? लेकिन ऐसा होता नहीं है। चुनाव के समय घोषणा-पत्र में ऐसे-ऐसे वादे कर दिए जाते हैं, जिन्हें देखकर लगता है, अब हमारा प्रदेश स्वर्ग में तब्दील हो जाएगा। लेकिन चुनाव जीतने के बाद बड़े-बड़े वादे करने वाले दल जब शासन करने लगते हैं तो अपने वादों को, अपनी घोषणाओं को बिल्कुल राजा दुष्यंत की तरह भूल जाते हैं।

वही राजा दुष्यंत जो अपनी प्रेयसी शकुंतला को भूल गए थे। बहुत बाद में उन्हें सब कुछ याद आया। हमारे नेताओं को भी सब कुछ उस समय याद आता है, जब सत्ता से बाहर हो जाते हैं। बाहर इसलिए होते हैं क्योंकि जनता उनके झूठे वादों से नाराज हो जाती है। इसलिए राजनीतिक दलों को बहुत सोच-समझकर वादे करने चाहिए। इस मामले में मुझे छत्तीसगढ़ के पहले मुख्यमंत्री अजीत जोगी की बात बहुत पसंद आती है। जब वह जीवित थे, तो उन्होंने कांग्रेस से अलग होकर अपनी नई पार्टी बनाई थी छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस। चुनाव लड़ते वक्त उन्होंने जो वादे किए थे, उन चुनावी वादों को स्टांप पेपर में हलफनामे के रूप में प्रस्तुत किया था। इसका मतलब यह था कि अगर मैं कोई वादा पूरा नहीं करता, तो जनता मुझ पर कानूनी कार्रवाई कर सकती है। होना यही चाहिए।

हर दल को कानूनी हलफनामे के साथ अपना घोषणा-पत्र पेश करना चाहिए ताकि जनता को उनकी वादा खिलाफी के विरुद्ध है कानूनी कार्रवाई का अधिकार मिल सके। वादा खिलाफी के विरुद्ध उस पार्टी के मुखिया को दोषी ठहरना चाहिए। सभी राजनीतिक दलों को हिम्मत के साथ अपना कानूनी हलफनामा प्रस्तुत करना ही चाहिए, ताकि जनता को भरोसा हो सके कि उनके वादे पूरे होंगे। मतदाता हर दल के घोषणा पत्र को ध्यान से देखे और अपने विवेक से, जिसे चुनना हो उसे चुने। ऐसे कानूनी घोषणा पत्र पर हर विजयी दल गंभीरतापूर्वक संज्ञान लेगा और जो वादे किए हैं, उन्हें पूरा करने की कोशिश करेगा। उसे यह फिल्मी गीत ध्यान रखना चाहिए, जो वादा किया है निभाना पड़ेगा। अभी तो जनता बेचारी यही गीत गाने पर मजबूर होती है, वादे पर तेरे मारा गया बंदा ये सीधा-साधा/वाद तेरा वादा।

चुनाव जीतने के बाद यह बहाना बिल्कुल नहीं चलेगा कि हम ऐसा नहीं कर सकते। जैसा छत्तीसगढ़ में कांग्रेस ने किया। चुनाव के पहले वादा किया था कि हम शराबबंदी लागू करेंगे। फिर चुनाव जीतने के बाद उसने कहा कि हम इसे धीरे-धीरे लागू करेंगे और धीरे-धीरे करते पाँच साल बीत गए। यह अपने आप में बड़ी वादाखिलाफी है। इसलिए अब समय आ गया है कि कोई भी राजनीतिक दल अगर अपने वादे से मुकरता है तो उसके मुखिया पर कानूनी कार्रवाई पर विचार होना चाहिए। यह विचार राष्ट्रीय स्तर पर फैलाने की जरूरत है, ताकि दल अपने वादों को हल्के से न लें। दल अपने वादे चना-मुर्रे की तरह बांटने की कोशिश करते हैं कि हम आएंगे तो ऐसा कर देंगे, वैसा कर देंगे। यह मुफ्त में देंगे, वो मुफ्त में देंगे। लेकिन लोकतंत्र में लोक को ठगने की कोशिश करने वाले तंत्र पर अंकुश लगाना बहुत जरूरी है। और यह अंकुश कानून द्वारा ही लगाया जा सकता है। (यह लेखक के निजी विचार हैं।)

– गिरीश पंकज

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