प्रियंका सौरभ
मुख्य बाजारों, चौक-चौराहों, गलियों में दुकानदारों और रेहड़ी-फड़ी वालों का अतिक्रमण दिनोंदिन बढ़ता ही जा रहा है। परिणाम स्वरूप शहर के बाजारों में वाहन चलाना तो दूर पैदल चलना भी मुश्किल हो गया है। स्ट्रीट वेंडर्स, जो अपने जीवनयापन के लिए अपने व्यापार पर निर्भर हैं, ने हर व्यस्त बाजार के पास निर्दिष्ट नो-वेंडिंग जोन पर अतिक्रमण कर लिया है, जिससे यातायात बाधित हो रहा है। स्थानीय दुकानदार शिकायत कर रहे हैं। स्ट्रीट वेंडर दुनिया भर की शहरी अर्थव्यवस्था का एक अभिन्न अंग हैं, जो सार्वजनिक स्थानों पर कई तरह की वस्तुओं और सेवाओं तक आसान पहुँच प्रदान करते हैं। भले ही स्ट्रीट वेंडर्स को अनौपचारिक माना जाता है, लेकिन वे शहरी अर्थव्यवस्था में महत्त्वपूर्ण योगदानकर्ता हैं। 21वीं सदी में ज्यादातर लोग स्ट्रीट वेंडर हैं। अनौपचारिक अर्थव्यवस्था निगरानी अध्ययन ने उन तरीकों का खुलासा किया है जिनसे स्ट्रीट वेंडर अपने समुदायों को मजबूत बना रहे हैं। स्ट्रीट वेंडिंग रोजगार सृजन, उत्पादन और आय सृजन में एक प्रमुख भूमिका निभाती है। स्ट्रीट वेंडर्स को कार्यस्थल पर जनता, पुलिस कर्मियों, नेताओं और स्थानीय उपद्रवियों से कई समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है।
आर्थिक रूप से कमजोर व्यक्ति जीवन यापन के लिए वेंडिंग पर निर्भर हैं। विक्रेताओं द्वारा की गई प्रतिस्पर्धा और भीड़भाड़ के कारण नुकसान का दावा करना उनकी मजबूरी है। व्यस्त बाजार में यातायात का सुचारू प्रवाह और सार्वजनिक सुरक्षा की आवश्यकता भी जरूरी है। विक्रेताओं के लिए मानवीय और टिकाऊ समाधान की वकालत सार्वजनिक व्यवस्था बनाए रखने और न्यायसंगत शासन सुनिश्चित करने का कार्य है। स्ट्रीट वेंडर अपने परिवार का भरण-पोषण करने के लिए वेंडिंग पर निर्भर हैं। हालाँकि, उनकी उपस्थिति से भीड़भाड़ होती है। सार्वजनिक व्यवस्था बाधित होती है। ट्रैफिक प्रवाह और सार्वजनिक सुरक्षा बनाए रखते हुए उनकी आजीविका की रक्षा के लिए एक संतुलन की आवश्यकता है। दुकानदार विक्रेताओं को उनकी कम लागत और अनौपचारिक संचालन के कारण अनुचित प्रतिस्पर्धा के रूप में देखते हैं। हालांकि, यह सुनिश्चित करना चाहिए कि दुकानदारों के हितों को अनुचित रूप से नुकसान न पहुँचाया जाए। आर्थिक विकास एक संपन्न शहर के लिए महत्त्वपूर्ण है। सामाजिक कल्याण नीतियों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि स्ट्रीट वेंडर जैसे कमजोर समूहों को असंगत कठिनाई का सामना न करना पड़े। निष्पक्ष और न्यायपूर्ण नीतियों में आर्थिक विकास और हाशिए पर पड़े समुदायों के कल्याण दोनों को एक साथ देखा जाना चाहिए।
कई विक्रेता अपने परिवारों के लिए कमाने वाले होते हैं, जो बुजुर्ग आश्रितों और स्कूल जाने वाले बच्चों का भरण-पोषण करते हैं। बिना किसी विकल्प के उन्हें विस्थापित करने से उनकी सामाजिक-आर्थिक स्थितियाँ खराब हो सकती हैं जिससे निर्णय लेने में करुणा आवश्यक हो जाती है। निर्णय पारदर्शी और समावेशी होने चाहिए, जिसमें सभी हितधारकों की चिंताओं का समाधान हो। किसी भी समूह को बाहर रखने से अशांति फैल सकती है और प्रशासन की निष्पक्ष रूप से शासन करने की क्षमता पर भरोसा कम हो सकता है।
शहरों की आबादी समय के साथ लगातार बढ़ती जा रही है। इसके चलते वाहनों की संख्या भी बढ़ रही है। रोजगार के लिए लोगों का बाहर आने का सिलसिला बढ़ता जा रहा है लेकिन शहरों में इन समस्याओं का निदान करने के लिए प्रशासनिक स्तर पर जो पहल होनी चाहिए थी, वह नहीं हो रही है। अतिक्रमण के खिलाफ चलाए गए अभियान के बाद शहरों में पार्किंग और रेडी-फड़ी जोन बनाए जाने की बात सामने आती है, लेकिन वह आज तक जमीन पर दिखाई नहीं देती है। लिहाजा ऐसी समस्याओं का बना रहना स्वाभाविक है। इसके स्थायी समाधान के लिए नो-वेंडिंग जोन में समय आधारित वेंडिंग शेड्यूल लागू करें ताकि ट्रैफिक प्रवाह को बनाए रखते हुए गैर-पीक घंटों के दौरान विक्रेताओं को अनुमति दी जा सके।
(यह लेखिका के निजी विचार हैं।)
फुटपाथों और सड़कों पर अतिक्रमण, चलना हुआ मुश्किल
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