अशोक मिश्र
भारत को आर्थिक संकट से उबारने और उदारीकरण के रास्ते से अर्थव्यवस्था को विकास की नई ऊंचाई तक ले जाने वाले पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह पंचतत्व में विलीन हो गए। रह गईं उनके किए गए कार्य और उपलब्धियां। उनकी सरलता और सादगी की चर्चा होती ही रहेगी। उनके साथ जो भी जुड़ा रहा, वह उनकी ईमानदारी और सादगी का कायल रहा। उनकी मौत के बाद भी हर वह शख्स जो उनके सान्निध्य में रहा, आज वह उनके गुणों को याद कर रहा है। 26 सितंबर 1932 को अविभाजित भारत के पंजाब प्रांत के गाह में जन्मे मनमोहन सिंह को किशोरावास्था में ही अपना पैतृक निवास छोड़कर भारत आना पड़ा था क्योंकि सन 1947 को भारत को विभाजन का दंश झेलना पड़ा था। उसके बाद उन्होंने जिन परिस्थितियों में शिक्षा ग्रहण की, विदेश पढ़ने गए, यह सब उनके लगन और जुनून की एक बहुत लंबी कहानी है। अब जब डॉ. सिंह भौतिक रूप से हमारे बीच नहीं हैं, तो यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि वह देश के वित्त मंत्री के रूप में सफल रहे या प्रधानमंत्री के रूप में?
दरअसल, पूर्व पीएम डॉ. सिंह के कार्य और उपलब्धियों का आकलन एक छोटे से लेख में कर पाना संभव नहीं है। यह सच है कि उन्होंने वित्त मंत्री के रूप में जो पिच तैयार की थी, उसी पिच पर बाद में वह प्रधानमंत्री के रूप में खेलते रहे। 21 जून 1991 में जब पीवी नरसिम्हा राव ने प्रधानमंत्री के रूप में जब देश की कमान संभाली, तब देश की आर्थिक दशा बदतर थी। देश पर आईएमएफ का कर्ज था और पूर्व पीएम चंद्रशेखर को बीस टन सोना गिरवी रखना पड़ा था। इसके बावजूद आर्थिक हालत सुधर नहीं रही थी। ऐसी स्थिति में पीवी नरसिम्हा राव ने डॉ. सिंह पर भरोसा करते हुए वित्त मंत्री के रूप में देश की आर्थिक दशा सुधारने का उत्तरदायित्व उन्हें सौंपा और जिस पर वे सौ प्रतिशत खरे उतरे। दरअसल, वित्तमंत्री का कार्यभार उनके लिए भले ही नया रहा हो, लेकिन एक अर्थशास्त्री के रूप में यह उनकी जानी पहचानी जमीन थी जिस पर उन्हें नई इबारत रखनी थी। सबसे पहले उन्होंने भारत की बंद बाजार व्यवस्था को खोलने की व्यवस्था की। उदारीकरण के जनक के रूप में उन्होंने विदेशी पूंजी को भारत में आने और यहां के उद्योगों में पूंजी निवेश का मार्ग प्रशस्त किया। नतीजा यह हुआ कि भारत की अर्थव्यवस्था की गाड़ी चल निकली और कुछ सालों बाद उसने इतनी रफ्तार पकड़ ली कि तीन प्रतिशत की दर से आगे बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था नौ प्रतिशत की दर से सरपट दौड़ने लगी। वित्तमंत्री के रूप में वह भारत के शायद सबसे सफल वित्तमंत्रियों में सबसे ऊपर रहे। लेकिन उन्होंने सन 2004 में जब प्रधानमंत्री के रूप में देश की कमान संभाली, तो वह अपने पहले शासनकाल में पुरानी नीतियों को ही आगे बढ़ाते रहे। आज जो देश को पांच ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था की बात की जा रही है, उसके सूत्रधार डॉ. सिंह ही थे। लेकिन उनका दूसरा कार्यकाल जरूर थोड़ा बहुत विवादित रहा और वह भी गठबंधन की सरकार होने के नाते। इतना सब कुछ होने के बावजूद पूर्व पीएम डॉ. सिंह पर कोई दाग नहीं लगा पाया। दरअसल, पूर्व पीएम मनमोहन सिंह राजनेता नहीं थे। उनमें नेताओं वाला कोई भी गुण नहीं था। वह चुपचाप काम करने वाले टेक्नोक्रेट की तरह काम करते रहे। वह ब्यूरोक्रेट भी थे, लेकिन राजनेता तो कतई नहीं। उन्होंने कभी यह नहीं कहा कि यह मैंने किया है। इसका श्रेय मुझे मिलना चाहिए। बस, काम किया और चुप रहे। आज जब उनका दिल्ली निगमबोध पर अंतिम संस्कार किया गया, तो सिर्फ यही सवाल उठता है कि क्या वे इस लायक नहीं थे कि उनको राजघाट में कहीं थोड़ी सी जगह दी जाती। डॉ. सिंह ने देश के लिए जो कुछ भी किया, उसके लिए पूरा देश ऋणी रहेगा। शायद यह केंद्र सरकार से थोड़ी सी चूक हो गई।
(यह लेखक के निजी विचार हैं।)
डिरेल्ड अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाए थे डॉ. मनमोहन सिंह
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