अदालत में भारतेंदु हरिश्चंद्र ने सच बोला
अशोक मिश्र
भारतेंदु हरिश्चंद्र को आधुनिक हिंदी साहित्य का पितामह कहा जाता है। उन्होंने हिंदी साहित्य में आधुनिकता की शुरुआत की थी। वह बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। उन्होंने नाटक, काव्य और निबंध लिखकर हिंदी साहित्य को समृद्ध बनाया था। यही वजह थी कि उन्हें भारतेंदु की उपाधि मिली थी। वैसे तो उनका जन्म वाराणसी के एक प्रतिष्ठित वैश्य परिवार में हुआ था, लेकिन वह जीवन भर अभावों में ही जीते रहे। इसका कारण यह था कि वह बहुत दयालु थे और वे जहां तक संभव होता, हर किसी की सहायता करने में कभी पीछे नहीं हटते थे। यही वजह थी कि उनकी पैतृक संपत्ति धीरे-धीरे खत्म होती गई और वह पूरी तरह कंगाल हो गए। उनकी सौतेली मां ने भी उन्हें काफी परेशान किया था। इसके बावजूद वह अपने सिद्धांतों से कभी पीछे नहीं हटे। एक बार की बात है। उन्होंने एक महाजन से एक नाव खरीदी थी और कुछ रुपये उधार लिए थे, जो तीन हजार रुपये हो गए थे। उन दिनों यह एक बहुत बड़ी रकम हुआ करती थी। महाजन को भारतेंदु हरिश्चंद्र समय पर लौटा नहीं पाए, तो उस महाजन ने उन पर मुकदमा कर दिया। उसने दावे में कहा कि हरिश्चंद्र ने एक नाव और कुछ रुपये उधार लिए थे जो अब कुल तीन हजार रुपये होते हैं। उस समय तक एक लेखक के तौर पर वह काफी प्रसिद्ध हो चुके थे। अंग्रेज जज ने उन्हें अकेले बुलाकर पूछा, क्या सचमुच नाव की कीमत उतनी है जितनी बताई गई है। हरिश्चंद्र जी ने कहा कि हां, महाजन सही कह रहा है। लोगों ने भारतेंदु को समझाया कि वह बड़े लेखक हैं, मना कर दें, तो महाजन साबित नहीं कर पाएगा। हरिश्चंद्र ने कहा कि मैं लेखक हूं और मैं झूठ नहीं बोल सकता। यह सुनकर महाजन चकित रह गया। उसने अपना कर्ज माफ कर दिया।
अशोक मिश्र