हमारे किसी भी व्यक्ति के साथ मतभेद हो सकते हैं। मतभेद होने और अंध समर्थक होने में जमीन आसमान का अंतर है। यदि हम किसी व्यक्ति की प्रतिभा, ज्ञान और उसके कार्यों से प्रभावित हैं, तो इसका यह कतई मतलब नहीं है कि हम उसके हर बात से सहमत हैं। किसी मुद्दे पर हम असहमत भी हो सकते हैं, लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि असहमत होने पर हम उसे अपना दुश्मन मान लें या सामने वाला हमें अपना दुश्मन मान ले। कहते हैं कि महात्मा गांधी और सर्वपल्ली राधाकृष्णन के बीच कई मुद्दों पर मतभेद थे। एक बार की बात है। गांधी जी और राधाकृष्णन की मुलाकात स्वतंत्रा संग्राम सेनानी जीए नटेसन के घर पर हुई।
बातचीत के दौरान गांधी ने कहा कि हमें दूध नहीं पीना चाहिए क्यों कि दूध मांस से उत्पन्न होता है। राधाकृष्णन ने तत्काल कहा कि तो फिर क्या मां का दूध पीने वाले सभी मनुष्य नरभक्षी हैं? गांधी जी ने कहा कि जंगल में हजारों जीव उत्पन्न होते हैं और जीवित रहते हैं। इस पर राधाकृष्णन बोले कि वे हजारों जीव मर भी तो जाते हैं। गांधी जी ने पूछा कि आपको कैसे पता? इस पर तत्काल राधाकृष्णन ने तपाक से प्रश्न पूछ लिया कि आपको कैसे पता चला कि जीव बिना अपनी मां का दूध पिये जिंदा रहते हैं। दोनों में वाद-विवाद काफी कड़ुवाहट भरा होता जा रहा था।
मामला बढ़ता देखकर नटेसन सामने आए और उन्होंने किसी तरह दोनों को शांत कराया और मामले को आगे बढ़ाया। इतना मतभेद होने के बावजूद राधाकृष्णन ने गांधी जी का अनादर कभी नहीं किया। वे हमेशा गांधी को महामानव कहते रहे। जब भी दोनों व्यक्ति एक दूसरे से मिलते थे, तो वे बहुत सहजता से बातचीत करते थे। उसी महान शिक्षक सर्वपल्ली राधाकृष्णन की आज जयंती है। उन्होंने आजीवन शिक्षक के रूप में काम किया। शिक्षकों के लिए एक आदर्श स्थापित किया।