मदर टेरेसा कैथोलिक नन थीं। उनका वास्तविक नाम आन्येजे गोंजा बोयाजियू था। उनका जन्म एक अल्बेनीयाई परिवार में उस्कुब, उस्मान साम्राज्य (वर्त्तमान सोप्जे, मेसेडोनिया गणराज्य) में हुआ था। मदर टेरेसा ने वर्ष 1948 में भारत की नागरिकता ली थी। उन्होंने पश्चिमी बंगाल की राजधानी कलकत्ता (अब कोलकाता) को अपनी कर्मभूमि बनाया था। उन्होंने लगभग 45 सालों तक गरीब, बीमार, अनाथ और मरते हुए लोगों की सहायता की। उन्होंने ईसाई मिशनरियों की सहायता से कई ट्रस्ट बनवाए और उनकी सहायता से भारत में सेवा कार्य किया। उनको जब भी किसी बीमार, भूखे व्यक्ति के बारे में जानकारी मिलती, तो वह उसकी सहायता करने तुरंत पहुंच जाती थीं।
कहते हैं कि एक बार उनके किसी परिचित ने आकर उन्हें बताया कि एक परिवार में दस लोग हैं। उनमें से आठ बच्चे हैं। वे कई दिनों से भूखे हैं। यह सुनते ही मदर टेरेसा उनकी सहायता करने को तैयार हो गईं। उन्होंने तत्काल बारह-तेरह लोगों का भोजन तैयार करवाया और उस परिवार के पास पहुंच गईं। उन्होंने उस परिवार को आठ आदमियों के लायक भोजन दिया। भोजन पाकर सभी लोग भोजन आपस में बांटकर खाने लगे।
यह देखकर उस व्यक्ति ने पूछा कि आपने थोड़ा भोजन बचा क्यों लिया? मदर टेरेसा ने जवाब दिया कि यदि मैं इन्हें पूरा खाना दे देती, तो इनमें भोजन को मिल बांटकर खाने की प्रवृत्ति पैदा नहीं होती। कम भोजन देखकर ही इनके मन में आया कि इसे मिल बांटकर खाया जाए, ताकि कोई भूखा न रह जाए। ये बच्चे जब बड़े होंगे तो मिल बांटकर खाने की प्रवृत्ति के चलते दूसरों का भी ख्याल रखेंगे। मिल बांटकर खाने की सीख इनके पूरे जीवन काम आएगी। यह सुनकर वह व्यक्ति मदर टेरेसा के प्रति श्रद्धा से झुक गया। मानव के प्रति उनके प्रेम के चलते ही वे मदर कहलाईं और ईसाई धर्म में वे संत कहलाईं।
अशोक मिश्र