देश रोज़ाना: चणक के पुत्र होने की वजह से ही विष्णुगुप्त चाणक्य कहलाए। इनके जन्म स्थान को लेकर विद्वानों में बहुत ज्यादा मतभेद है। कोई इन्हें द्राविड ब्राह्मण कहता है, तो कोई इनका जन्मस्थान चंड़ीगढ़ को मानता है। कुछ विद्वानों का कहना है कि यह केरल के मूल निवासी थे और वाराणसी आने के बाद वे उत्तर भारत में ही बस गए थे। सच क्या है, यह कहा नहीं जा सकता है। चाणक्य का जन्म 376 ईसा पूर्व माना जाता है। बौद्ध साहित्य में भी इनका जिक्र आता है। इन्होंने अर्थशास्त्र नाम की पुस्तक की रचना की थी जिसमें राजा से लेकर प्रजा तक के कर्तव्य, राज्य की व्यापार प्रणाली आदि पर विस्तार से चर्चा की है। चाणक्य चंद्रगुप्त मौर्य के महामंत्री थे, लेकिन वह महलों की जगह अपनी एक कुटिया बनाकर रहते थे।
एक बार एक साधु इनके पास आया और धर्म की चर्चा करने लगा। बातचीत के दौरान काफी देर हो गई तो उन्होंने साधु से कहा कि आइए, भोजन किया जाए। वह बगल वाले कुटिया में गए जहां दो महिलाएं भोजन बना रही थीं। जब भोजन परोसा गया, तो साधु ने देखा कि चावल, कढ़ी और एक सब्जी परोसी गई थी। इस पर साधु ने आश्चर्य व्यक्त किया, तो चाणक्य ने कहा कि मैं अपने भोजन की व्यवस्था अपनी कमाई से करता हूं। पुस्तकें लिखता हूं। उससे होने वाली कमाई से मैं भोजन करता हूं। बातचीत के दौरान साधु ने बताया कि पड़ोस के गांव वाले बहुत दुखी हैं क्योंकि कोई चोर उनके कंबल चुरा ले जा रहा है।
यह जानकर चाणक्य ने राजकोष से बांटने के लिए कंबल मंगवाए और अपनी कुटिया में रख लिया। रात में जब चोर आया तो उसने देखा कि चाणक्य अपना पुराना कंबल ओढ़े सो रहे हैं और कंबलों का ढेर बगल में लगा हुआ है। यह देखकर चोर को पश्चाताप हुआ और उसने चोरी छोड़ दी।
– अशोक मिश्र