बोधिवृक्ष
अशोक मिश्र
जीवन में अगर संघर्ष न हो, तो जीवन बहुत नीरस, ऊबाऊ हो जाता है। जीवन का संघर्ष ही मनुष्य और प्रकृति में पाए जाने वाले जीवों में ऊर्जा का संचार करता है। वही उन्हें आगे बढ़ने की प्रेरणा देता है। यदि जीवन में संघर्ष न हो, तो व्यक्ति आलसी हो जाएगा, प्रकृति का सर्वांगीण विकास ही रुक जाएगा क्योंकि संघर्ष ही प्रकृति के विकास और विनाश का मूल है। इस बात को समझाने के लिए एक कल्पित कथा कही जाती है। बहुत पहले एक किसान रहता था। वह हमेशा ईश्वर से नाराज रहता था क्योंकि जब भी वह फसल बोता था, कभी आंधी आ जाती थी, तो कभी बारिश हो जाती थी। जब जरूरत होती थी, तब बारिश नहीं होती थी और जब जरूरत नहीं होती थी, बारिश हो जाती थी। कभी-कभी तो भयंकर रूप से ओले पड़ जाते थे। उसकी पूरी फसल खेत में ही लोट जाती थी। इससे किसान को भगवान पर बहुत गुस्सा आता था। वह कहता था कि भगवान को यदि खेती करनी पड़ती, तो समझ में आता कि किसानों को कितनी दिक्कत होती है, उनकी मनमानी की वजह से। उसने सुन रखा था कि संसार में जो कुछ होता है, भगवान की इच्छा से होता है। एक दिन उसने भगवान से शिकायत करते हुए कहा कि यदि एक साल तक मेरी इच्छा के हिसाब से मौसम हो, तो मैं दिखा दूंगा कि अच्छी खेती कैसे की जाती है।भगवान उसी बात मान गए। साल भर तक किसान के हिसाब से मौसम रहा। जब फसल तैयार होने का समय आया, तो उसने बड़े गर्व से फसल काटने लगा, लेकिन यह क्या, फसल में दाने ही नहीं थे। तब भगवान ने कहा कि आंधी, पानी, ओले, तूफान में फसलें संघर्ष करती हैं। वह इन सबसे अपने को बचाती हैं तो उनमें दाने पड़ते हैं। तुमने संघर्ष करनो का मौका ही नहीं दिया फसलों को। अन्न कहां से होगा।
संघर्ष के बिना जीवन हो जाता नीरस
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