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बोधिवृृक्ष : बंकिम चंद्र बोले, दूसरों की मदद क्यों लूं

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अशोक मिश्र
राय बहादुर बंकिम चंद्र चटर्जी का जन्म 27 जून 1838 में बंगाल के चौबीस परगना के नौहाटी में हुआ था। राष्ट्रगीत वंदेमातरम और आनंद मठ जैसी अप्रतिम ग्रंथ की रचना करने वाले बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय एक संपन्न परिवार में पैदा हुए थे। उनकी शिक्षा हुगली कालेज और प्रेसीडेंसी कालेज में हुई थी। उनके जीवन काल में ही बांग्ला साहित्य का नवजागरण काल चल रहा था। उनकी ज्यादातर रचनाएं राष्ट्रवाद से ओतप्रोत हैं। कहा जाता है कि जिन दिनों वह कालेज की शिक्षा ग्रहण कर रहे थे, उन दिनों वह अपने खर्चे के लिए एक माली के यहां काम करते थे। स्वाभिमानी और अपना काम खुद करने की प्रवृत्ति वाले बंकिम चंद्र यदि चाहते, तो अपने घर से कालेज की फीस और खाने-पीने का खर्चा घर से मंगा सकते थे, लेकिन उन्होंने अपना खर्च खुद उठाने का फैसला किया। यही वजह है कि अधिकतर छात्र उन्हें गरीब छात्र समझते थे। उनकी प्रतिभा और लोकप्रियता के देखकर कुछ छात्र उनसे जलते थे। यही वजह है कि एक दिन एक छात्र ने उन पर चोरी का इल्जाम लगाया। कालेज के प्रिसिंपल ने शिकायत करने वाले छात्रों से कहा कि वह मामले की जांच करेंगे। प्रिंसिपल ने जांच के बाद पाया कि वह अपनी फीस ओर अन्य खर्चों के लिए एक माली के यहां काम करते  हैं। उन्होंने बंकिम चंद्र के बारे में सारी जााकारियां जुटाई और एक दिन बोले, आप अपना खर्चा परिवार से मंगा सकते हैं। इसके बावजूद मेहनत करते हैं। तब बंकिम चंद्र ने कहा कि जब मैं अपना खर्च उठा सकता हूं तो दूसरों के सामने हाथ क्यों फैलाऊं? बंकिम चंद्र की बात सुनकर प्रिंसिपल अवाक रह गए। आगे चलकर बंकिम चंद्र देश के बहुत बड़े लेखक बने। हिंदी और बांग्ला साहित्य को समृद्ध किया।

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